मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे-
बिजली का झटका लगना, नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना,
किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज बुखार
तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना आदि। इस रोग के होने
का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर, संक्रमक
ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है।

मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत
ज्यादा चिंतित रहते हैं। हालांकि रोग चाहे जो भी हो,
हमेशा परेशान करने वाली तथा घातक होती है। इसलिए हमें
किसी भी मायने में किसी भी रोग के साथ कभी भी बेपरवाह
नहीं होना चाहिए। खासतौर पर जब बात मिर्गी जैसे
रोगों की हो तो हमें और भी सतर्क रहना चाहिए।

मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम
लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज
करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल
परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है।
जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं,
मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और
रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।
दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच
आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है।
हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।

उपचार :

1.अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार
माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल
खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से
आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।

2. मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त
करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे
दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।
मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान
देह है। इनसे बचना जरूरी है।

3. मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के
पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे
बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।
रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में
गिरावट देखी जाती है।

4. पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें
पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित
हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है।
पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से
ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और
मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।

5. गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने
वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।

गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और
बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल
और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे
सकती है।
मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है।
इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार
दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर
नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच
कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार
दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी।
गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग
की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।