बबूल

परिचय :बबूल का पेड़ बहुत ही पुराना है, बबूल की छाल एवं
गोंद प्रसिद्ध व्यवसायिक द्रव्य है। वास्तव में बबूल
रेगिस्तानी प्रदेश का पेड़ है। इसकी पत्तियां बहुत
छोटी होती है। यह कांटेदार पेड़ होता है। सम्पूर्ण भारत वर्ष
में बबूल के लगाये हुए तथा जंगली पेड़ मिलते हैं। गर्मी के
मौसम में इस पर पीले रंग के फूल गोलाकार गुच्छों में लगते है
तथा सर्दी के मौसम में फलियां लगती हैं।
बबूल के पेड़ बड़े व घने होते हैं। ये कांटेदार होते हैं।
इसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है। बबूल के पेड़ पानी के
निकट तथा काली मिट्टी में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
इनमें सफेद कांटे होते हैं जिनकी लम्बाई 1 सेमी से 3
सेमी तक होती है। इसके कांटे जोड़े के रूप में होते हैं। इसके
पत्ते आंवले के पत्ते की अपेक्षा अधिक छोटे और घने होते
हैं। बबूल के तने मोटे होते हैं और छाल खुरदरी होती है। इसके
फूल गोल, पीले और कम सुगंध वाले होते हैं
तथा फलियां सफेद रंग की 7-8 इंच लम्बी होती हैं। इसके
बीज गोल धूसर वर्ण (धूल के रंग का)
तथा इनकी आकृति चपटी होती है।

विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत बबूल, बर्बर, दीर्घकंटका
हिन्दी बबूर, बबूल, कीकर
बंगाली बबूल गाछ
मराठी माबुल बबूल
गुजराती बाबूल
तेलगू बबूर्रम, नक दुम्मा, नेला, तुम्मा
पंजाबी बाबला
अरबी उम्मूछिलान
फारसी खेरेमुधिलान
तमिल कारुबेल
अंग्रेजी एकेशियाट्री
लैटिन माइमोसा अराबिका

गुण : बबूल कफ (बलगम), कुष्ठ रोग (सफेद दाग), पेट के
कीड़ों-मकोड़ों और शरीर में प्रविष्ट विष का नाश करता है।
गोंद : यह गर्मी के मौसम में एकत्रित किया जाता है। इसके
तने में कहीं पर भी काट देने पर जो सफेद रंग का पदार्थ
निकलता है। उसे गोंद कहा जाता है।

मात्रा : इसकी मात्रा काढ़े के रूप में 50 ग्राम से 100 ग्राम
तक, गोंद के रूप में 5 से 10 ग्राम तक तथा चूर्ण के रूप में 3
से 6 ग्राम तक लेनी चाहिए।

विभिन्न रोंगों का बबूल से उपचार :

1 मुंह के रोगः – *बबूल की छाल, मौलश्री छाल, कचनार
की छाल, पियाबांसा की जड़ तथा झरबेरी के पंचांग
का काढ़ा बनाकर इसके हल्के गर्म पानी से कुल्ला करें।
इससे दांत का हिलना, जीभ का फटना, गले में छाले, मुंह
का सूखापन और तालु के रोग दूर हो जाते हैं।
*बबूल, जामुन और फूली हुई फिटकरी का काढ़ा बनाकर उस
काढ़े से कुल्ला करने पर मुंह के सभी रोग दूर हो जाते हैं।
*बबूल की छाल को बारीक पीसकर पानी में उबालकर
कुल्ला करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
*बबूल की छाल के काढ़े से 2-3 बार गरारे करने से लाभ
मिलता है। गोंद के टुकड़े चूसते रहने से भी मुंह के छाले दूर
हो जाते हैं। बबूल की छाल को सुखाकर और पीसकर चूर्ण
बना लें। मुंह के छाले पर इस चूर्ण को लगाने से कुछ दिनों में
ही छाले ठीक हो जाते हैं। बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर दिन
में 2 से 3 बार गरारे करें। इससे मुंह के छाले ठीक होते हैं।

2 दांत का दर्द :- *बबूल की फली के छिलके और बादाम के
छिलके की राख में नमक मिलाकर मंजन करने से दांत का दर्द
दूर हो जाता है। बबूल की कोमल टहनियों की दातून करने से
भी दांतों के रोग दूर होते हैं और दांत मजबूत हो जाते हैं।
*बबूल की छाल, पत्ते, फूल और फलियों को बराबर मात्रा में
मिलाकर बनाये गये चूर्ण से मंजन करने से दांतों के रोग दूर
हो जाते हैं। बबूल की छाल के काढ़े से कुल्ला करने से
दांतों का सड़ना मिट जाता है।
*रोजाना सुबह नीम या बबूल की दातुन से मंजन करने से दांत
साफ, मजबूत और मसूढे़ मजबूत हो जाते हैं।
*मसूढ़ों से खून आने व दांतों में कीड़े लग जाने पर बबूल
की छाल का काढ़ा बनाकर रोजाना 2 से 3 बार कुल्ला करें।
इससे कीड़े मर जाते हैं तथा मसूढ़ों से खून का आना बंद
हो जाता है। “

3 वीर्य के रोग:- *बबूल की कच्ची फली सुखा लें और
मिश्री मिलाकर खायें इससे वीर्य रोग में लाभ होता है।
*10 ग्राम बबूल की मुलायम पत्तियों को 10 ग्राम मिश्री के
साथ पीसकर पानी के साथ लेने से वीर्य-रोगों में लाभ
होता है। अगर बबूल की हरी पत्तियां न हो तो 30 ग्राम
सूखी पत्ती भी ले सकते हैं।
*कीकर (बबूल) की 100 ग्राम गोंद भून लें इसे पीसकर इसमें
50 ग्राम पिसी हुई असगंध मिला दें। इसे 5-5 ग्राम सुबह-
शाम हल्के गर्म दूध से लेने से वीर्य के रोग में लाभ होता है।
*50 ग्राम कीकर के पत्तों को छाया में सुखाकर और पीसकर
तथा छानकर इसमें 100 ग्राम चीनी मिलाकर 10-10 ग्राम
सुबह-शाम दूध के साथ लेने से वीर्य के रोग में लाभ
मिलता है।
*बबूल की फलियों को छाया में सुखा लें और इसमें बराबर
की मात्रा मे मिश्री मिलाकर पीस लेते हैं। इसे एक चम्मच
की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप से पानी के साथ सेवन से
करने से वीर्य गाढ़ा होता है और सभी वीर्य के रोग दूर
हो जाते हैं।
*बबूल के गोंद को घी में तलकर उसका पाक बनाकर खाने से
पुरुषों का वीर्य बढ़ता है और प्रसूत काल स्त्रियों को खिलाने
से उनकी शक्ति भी बढ़ती है।
*बबूल का पंचांग लेकर पीस लें और आधी मात्रा में
मिश्री मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित
सेवन करने से कुछ ही समय में वीर्य रोग में लाभ मिलता है। “

4 बलवीर्य की वृद्धि :- बबूल के गोंद को घी में भूनकर
उसका पकवान बनाकर सेवन करने से मनुष्य के सेक्स करने
की ताकत बढ़ जाती है।
*बबूल के पत्तों को चबाकर उसके ऊपर
से गाय का दूध पीने से कुछ ही दिनों में गर्मी के रोग में लाभ
होता है।
*बबूल की कच्ची फलियों का रस दूध और मिश्री में मिलाकर
खाने से वीर्य की कमी दूर होती है।”

6 धातु पुष्टि के लिए :- बबूल की कच्ची फलियों के रस में
एक मीटर लंबे और एक मीटर चौडे़ कपड़े को भिगोकर
सुखा लेते हैं। एक बार सूख जाने पर उसे दुबारा भिगोकर
सुखा लेते है। इसी प्रकार इस प्रक्रिया को 14 बार करते हैं।
इसके बाद उस कपड़े को 14 भागों में बांट लेते हैं, और
रोजाना एक टुकड़े को 250 ग्राम दूध में उबालकर पीने से
धातु की पुष्टि होती है।

7 स्तन :- बबूल की फलियों के चेंप (दूध) से किसी कपड़े
को भिगोकर सुखा लें। इस कपड़े को स्तनों पर बांधने से ढीले
स्तन कठोर हो जाते हैं।

8 मासिक-धर्म संबन्धी विकार : – *4.5 ग्राम बबूल
का भूना हुआ गोंद और 4.5 ग्राम गेरू को एकसाथ पीसकर
रोजाना सुबह फंकी लेने से मासिक-धर्म में अधिक खून
का आना बंद हो जाता है।
*20 ग्राम बबूल की छाल को 400 मिलीलीटर पानी में
उबालकर बचे हुए 100 मिलीलीटर काढ़े को दिन में तीन बार
पिलाने से भी मासिक-धर्म में अधिक खून का आना बंद
हो जाता है।
*लगभग 250 ग्राम बबूल की छाल को पीसकर 8 गुने पानी में
पकाकर काढ़ा बना लेते हैं। जब यह
काढ़ा आधा किलो की मात्रा में रह जाए तो इस काढ़े
की योनि में पिचकारी देने से मासिक-धर्म जारी हो जाता है
और उसका दर्द भी शान्त हो जाता है।
*100 ग्राम बबूल का गोंद कड़ाही में भूनकर चूर्ण बनाकर रख
लेते हैं। इसमें से 10 ग्राम की मात्रा में गोंद, मिश्री के साथ
मिलाकर सेवन करने से मासिक धर्म की पीड़ा (दर्द) दूर
हो जाती है और मासिक धर्म नियमित रूप से समय से आने
लगता है।”

9 बांझपन दूर करना :- कीकर (बबूल) के पेड़ के तने में एक
फोड़ा सा निकलता है। जिसे कीकर का बांदा कहा जाता है।
इसे लेकर पीसकर छाया में सुखाकर चूर्ण बना लेते हैं। इस
चूर्ण को तीन ग्राम की मात्रा में माहवारी के खत्म होने के
अगले दिन से तीन दिनों तक सेवन करें। फिर पति के साथ
संभोग करे इससे गर्भ अवश्य ही धारण होगा।

10 प्रदर रोग : – *14 से 28 मिलीलीटर बबूल की छाल
का काढ़ा दिन में दो बार पीने से प्रदर रोग में लाभ होता है।
*40 मिलीलीटर बबूल की छाल और नीम की छाल
का काढ़ा रोजाना 2-3 बार पीने से प्रदर रोग में लाभ
मिलता है।
*2-3 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण और 1 ग्राम वंशलोचन
दोनों को मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से प्रदर
रोग मिट जाता है।”

11 रक्तप्रदर :- 5-5 ग्राम बबूल, राल, गोंद और रसौत
को लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसे 5 ग्राम की मात्रा में दूध
के साथ रोजाना सेवन करने से रक्तप्रदर मिट जाता है।

12 योनि का संकुचन : – *10 ग्राम बबूल की छाल को 400
मिलीलीटर पानी में पकायें। जब यह 100 मिलीलीटर
की मात्रा में बचे तो इसे 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम
पीने से और इस काढे़ में थोड़ी-सी फिटकरी मिलाकर योनि में
पिचकारी देने से योनिमार्ग शुद्ध होता है और श्वेतप्रदर ठीक
हो जाता है, इसके साथ ही योनि टाईट हो जाती है।
*बबूल की 1 भाग छाल को लेकर उसे 10 भाग पानी में
रातभर भिगोकर उस पानी को उबाल लेते हैं। जब
पानी आधा रह जाए तो उसे छानकर बोतल में भर लेते हैं।
लघुशंका (शौचक्रिया) के बाद इस पानी से योनि को धोने से
प्रदर एवं योनि शौथिल्य (ढीलापन) में लाभ मिलता है।
*बबूल की फलियों के चेंप (दूध) से मोटे कपड़े को भिगोकर
सुखा लें। सूख जाने फिर भिगोकर सुखायें। इस क्रिया को 7
बार तक करके सुखा लेते हैं। स्त्री-प्रसंग (संभोग) से पहले
इस कपड़े के टुकड़ों को दूध या पानी में भिगोकर, *दूध और
पानी को पी लें तो इससे स्तम्भन (वीर्य का देर से निकलना)
होता है। यदि इस कपड़े के टुकड़े को स्त्री अपनी योनि में रख
ले तो भी योनि तंग हो जाती है।
*बबूल, बेर, कचनार, अनार, नीलश्री को बराबर मात्रा में
लेकर पानी में उबाल लें उसी समय उसमें कपड़ा डालकर
भिगो लेते हैं। फिर उसमें पानी के छींटे दें और कपड़े
को योनि में रखें इससे योनि सिकुड़ जाती है। “

13 सूतिका रोग : – 10 ग्राम बबूल की आन्तरिक छाल और
3 कालीमिर्च को एक साथ पीसकर, सुबह-शाम खाने से और
पथ्य में सिर्फ बाजरे की रोटी और गाय का दूध पीने से
भयंकर सूतिका रोग से पीड़ित स्त्रियां भी बच जाती है।

14 संतान :- बबूल के पत्तों का 2-4 ग्राम चूर्ण
रोजाना सुबह खिलाने से सुन्दर बालक का जन्म होगा।

15 अतिसार (दस्त) : – *बबूल के पत्तों के रस में
मिश्री और शहद मिलाकर पीने से अतिसार में लाभ
मिलता है।
*बबूल के 3-6 ग्राम कोमल पत्तों का चूर्ण दिन में दो बार
लेने से अतिसार का रोग ठीक हो जाता है।
*बबूल के 8 से 10 पत्तों का रस रोगी को पिलाने से
अतिसार का रोग मिट जाता है।
*बबूल की फलियों और कायफल के बीज का काढ़ा बनाकर
पीना चाहिए। इस काढ़े को पीने के बाद आप जितनी बार
भी पान खाएंगे उतने बार ही दस्त होंगे। बबूल की 8-10
मुलायम पत्तियों को थोडे़ से जीरे और अनार की कलियों के
साथ 100 मिलीलीटर पानी में पीस लें, फिर उस पानी में एक
गर्म ईंट के टुकड़े को बुझाकर उस पानी को 2 चम्मच दिन में
2-3 बार रोगी को पिलाने से भयंकर अतिसार का रोग भी मिट
जाता है।
*50 ग्राम गोंद बबूल का, 100 ग्राम हरड़, 50 ग्राम पोस्ते
की डोडी को पीसकर देशी घी में भूनकर रख लें, फिर इसमें
250 ग्राम मिश्री को मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में सुबह
और शाम पीने से आंव का आना बंद हो जाता है। ध्यान रहें
कि छाछ, दूध और चावल का सेवन करें।
*बबूल की पत्तियों के रस को छाछ में मिलाकर
रोगी को पिलाने से हर प्रकार के अतिसार में लाभ मिलता है।
*बबूल के पेड़ के कोमल पत्तों को 5 ग्राम मात्रा में लेकर
अच्छी तरह से पीसकर 150 मिलीलीटर पानी में मिलाकर
एक दिन में 2 से 3 बार सेवन करने से अतिसार (दस्त) में
लाभ मिलता है।
*बबूल की गोंद को 3 ग्राम से लेकर 6 की मात्रा में दिन में
सुबह और शाम पीने से अतिसार में लाभ होता है।
*बबूल के 2 ग्राम पत्तों को पीसकर चीनी के साथ पीने से
आंव (एक प्रकार का सफेद चिकना पदार्थ जो मल के
द्वारा बाहर निकलता है) का आना बंद हो जाता है। बबूल के
पत्तों को पीसकर पीने से अतिसार यानी दस्त में लाभ
होता है।
*बड़े बबूल के पत्तों का रस का सेवन करने से सभी प्रकार के
अतिसार खत्म हो जाते हैं।
*बबूल की दो फलियां खाकर ऊपर से छाछ (मट्ठा) पीने से
अतिसार में लाभ मिलता है।”

16 आंखों का दर्द एवं सूजन : – *बबूल के नर्म
पत्तों को पीसकर, रस निकालकर 1-2 बून्द आंख में टपकाने
से अथवा स्त्री के दूध के साथ आंख पर बांधने से
आंखों की पीड़ा और सूजन मिट जाती है।
*बबूल के पत्तों को बारीक पीसकर उसकी टिकिया बनाकर
रात को सोते समय आंख पर बांधने से आंखों का दर्द और
जलन के रोग में लाभ मिलता है।
*बबूल की पत्तियों को पीसकर टिकिया बनाकर रात को सोते
समय आंखों पर बांध लें और सुबह खोल उठने पर खोल दें।
इससे आंखों का लाल होना और आंखों का दर्द आदि रोग दूर
हो जाते हैं।”

17 आंखों से पानी बहना :- बबूल के पत्ते को बारीक पीस
लेते हैं। इसके बाद उसमें थोड़ा सा शहद मिला लें, फिर इसे
काजल के समान आंखों पर लगाने से आंखों से
पानी निकलना खत्म हो जाता है।

18 कंठपेशियों का पक्षाघात :- बबूल की छाल के काढ़े से
रोजाना दो बार गरारा करने से गले की शिथिलता समाप्त
हो जाती है।

19 गले के रोग : – *बबूल के पत्ते और छाल एवं बड़
की छाल सभी को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 गिलास पानी में
भिगो देते हैं। इस प्रकार तैयार हिम से कुल्ले करने से गले के
रोग मिट जाते हैं।
*बबूल के रस में कली का चूना मिलाकर चने के बराबर
गोली बनाकर चूसने से सर्दी के कारण बैठा हुआ गला ठीक
हो जाता है।
*बबूल की छाल को पानी में डालकर उबालकर इस पानी से
गरारे करने से गले की सूजन दूर हो जाती है।”

20 पेट के सभी रोगों में :- बबूल की आन्तरिक छाल
का काढ़ा बनाकर, उस काढ़े को 1-2 ग्राम की मात्रा में मट्ठे
के साथ पीने से और पथ्य में सिर्फ मट्ठे का आहार लेने से
जलोदर सहित सभी प्रकार के पेट के रोग ठीक हो जाते हैं।

21 पेट में पानी की अधिकता (जलोदर) :- बबूल की छाल
को पानी में अच्छी तरह से पकायें, फिर उसे उतारकर छान
लें, फिर इस पानी को छानकर दूसरे बर्तन में डालकर
दोबारा पकाकर गाढ़ा लेप बनाकर उतार लें और ठण्डा हो जाने
पर उसे छाछ में मिलाकर पीने से जलोदर (पेट में पानी अधिक
होना) के रोग में लाभ होता है। ध्यान रहें कि इसके सेवन के
दौरान केवल छाछ (मट्ठे) का ही सेवन करें।

22 आमाशय का घाव :- बबूल की गोंद पानी में घोलकर पीने
से आमाशय (पेट) और आंतों के घाव तथा पीड़ा मिट जाती है।

23 पेट दर्द :- बबूल की छाल का रस दही के साथ मिलाकर
पीने से पेट के दर्द और दस्त में आराम मिलता है।

24 नहारू :- बबूल के बीजों को पीसकर गाय के पेशाब के साथ
मिलाकर पेट पर लेप करने से नहारू रोग में लाभ प्राप्त
होता है।

25 हड्डी टूटने पर :- *6 ग्राम बबूल की जड़ के चूर्ण
को शहद और बकरी के दूध में मिलाकर पीने से तीन दिन में
ही टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है।
*6 ग्राम बबूल के पंचाग का चूर्ण शहद और बकरी के दूध में
मिलाकर पीने से तीन दिन में ही टूटी हुई हड्डी जुड़ जाती है।
*बबूल के बीजों को पीसकर तीन दिन तक शहद के साथ लेने
से अस्थि भंग दूर हो जाता है और हडि्डयां वज्र के समान
मजबूत हो जाती हैं।
*बबूल की फलियों का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में सुबह-
शाम नियमित रूप से सेवन करने से टूटी हड्डी जल्द ही जुड़
जाती है।”

26 उपदंश (सिफलिस) : – *बबूल के फूलों को रात को ठंडे
पानी में भिगो दें। सुबह इसे मसलकर छान लें और पी लें।
इससे उपदंश का रोग मिट जाता है।
*बबूल की छाल के शर्बत या काढ़े से कुल्ला करने से उपदंश
के कारण उत्पन्न मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
*बबूल के बारीक चूर्ण को घाव पर छिड़कने से लाभ होता है।
बबूल के पत्तों को बारीक पीसकर उसका लेप घावों पर लगाने
से लाभ मिलता है।
*बबूल और बेर की जड़ का शर्बत, फांट या काढ़ा में से
किसी भी एक चीज से कुल्ला करने से उपदंश द्वारा होने
वाले मुंह के छाले दूर होते हैं।”

27 दाद के लिए :- सांप की केंचुली में बबूल का गोंद मिलाकर
दाद के स्थान पर पट्टी बांधने से लाभ होता है।

28 अम्लपित्त (एसीडिटी) :- बबूल के
पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें 1 ग्राम आम का गोंद मिला देते
हैं। इस काढ़े को शाम को बनाते हैं और सुबह पीते हैं। इस
प्रकार से इस काढ़े को सात दिन तक लगातार पीने से
अम्लपित्त का रोग मिट जाता है।

29 रक्त बहने पर :- बबूल की फलियां, आम के बौर, मोचरस
के पेड़ की छाल और लसोढ़े के बीज को एकसाथ पीस लें
और इस मिश्रण को दूध के साथ मिलाकर पीने से खून
का बहना बंद हो जाता है।

30 प्रमेह :- बबूल के अंकुर को सात दिन तक सुबह-शाम
10-10 ग्राम चीनी के साथ मिलाकर खाने से प्रमेह से
पीड़ित रोगियों को लाभ प्राप्त होता है।

31 कान के बहने पर :- बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर तेज
और पतली धार से कान में डालें। इसके बाद एक सलाई लेकर
उसमें बारीक कपड़ा या रूई लपेटकर धीरे-धीरे कान में इधर-
उधर घुमाएं और फूली हुई फिटकरी का थोड़ा-सा पानी कान में
डालें। इससे कान का बहना बंद हो जाता है।

32 शक्तिवर्द्धक :- बबूल के गोंद को घी के साथ तलकर
उसमें दुगुनी चीनी मिला देते हैं इसे रोजाना 20 ग्राम
की मात्रा में लेने से शक्ति में वृद्धि होती है।

33 कफ अतिसार :- बबूल के पत्ते, जीरे और स्याह जीरे
को बराबर मात्रा में पीसकर इसकी 10 ग्राम की फंकी रात के
समय रोगी को देने से कफ अतिसार मिट जाता है।

34 रक्तातिसार (खूनी दस्त) :- *बबूल की हरी कोमल
पत्तियों के एक चम्मच रस में शहद मिलाकर 2-3 बार
रोगी को पिलाने से खूनी दस्त बंद हो जाते हैं।
*10 ग्राम बबूल के गोंद को 50 मिलीलीटर पानी में भिगोकर
मसलकर छानकर पिलाने से अतिसार और रक्तातिसार मिट
जाता है।”

35 प्रवाहिका (पेचिश) :- बबूल की कोमल पत्तियों के रस में
थोड़ी सी हरड़ का चूर्ण मिलाकर सेवन करना चाहिए इसके
ऊपर से छाछ पीना चाहिए।

36 प्यास :- प्यास और जलन में इसकी छाल के काढ़े में
मिश्री मिलाकर पिलाना चाहिए इससे लाभ होता है।

37 अरुचि :- बबूल की कोमल फलियों के अचार में सेंधानमक
मिलाकर खिलाने से भोजन में रुचि बढ़ती है
तथा पाचनशक्ति बढ़ जाती है।

38 कान के रोग :- बबूल के फूलों को सरसों के तेल में
डालकर आग पर पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद इसे
आग पर से उतारकर छानकर रख लें। इस तेल की 2 बूंदे कान
में डालने से कान में से मवाद का बहना ठीक हो जाता है।

39 कान का दर्द :- रूई की एक लम्बी सी बत्ती बनाकर
उसके आगे के सिरे में शहद लगा दें और उसमें लाल
फिटकरी को पीसकर उसका चूर्ण लपेट दें। इस
बत्ती को कान में डालकर एक दूसरे रूई के फाये से कान
को बंद कर दें। ऐसा करने से कान का जख्म, कान का दर्द
और कान से मवाद बहना जैसे रोग ठीक हो जाते हैं।

40 पीलिया :- *बबूल के फूलों को मिश्री के साथ मिलाकर
बारीक पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। फिर इस चूर्ण की 10
ग्राम की फंकी रोजाना दिन में देने से ही पीलिया रोग मिट
जाता है।
*बबूल के फूलों के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर
10 ग्राम रोजाना खाने से पीलिया रोग मिट जाता है।”

41 सुजाक : – *बबूल की 10-20 मुलायम पत्तियों को 1
गिलास पानी में भिगोकर आसमान के नीचे रखें और सुबह उस
पानी को छानकर पीयें। इससे सुजाक रोग और पेशाब
की जलन में आराम मिलता है।
*30 ग्राम बबूल की मुलायम पत्तियों को रातभर पानी में
भिगोकर सुबह मसलकर और छानकर उसमें गर्म घी मिलाकर
रोगी को पिलायें, दूसरे दिन भी ऐसा ही करें, तीसरे दिन
घी मिलाना छोड़ दें, और 4-5 दिन इसका हिम
रोगी को पिलाने से सुजाक रोग में लाभ मिलता है।
*बबूल के 10 ग्राम गोंद को 1 गिलास पानी में डालकर
उसकी पिचकारी देने से मूत्राशय की सूजन, सुजाक की जलन
दूर हो जाती है।
*बबूल के 5-10 पत्तों को एक चम्मच शक्कर और चम्मच
कालीमिर्च के साथ अथवा 5-6 अनार के पत्तों के साथ
पीसकर छानकर पिलाने से सुजाक रोग मिट जाता है। “

42 कमर में दर्द : – *बबूल की छाल, फली और गोंद बराबर
मिलाकर पीस लें, एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार
सेवन करने से कमर दर्द में आराम मिलता है।
*बबूल के फूल और सज्जी बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह
सूरज उगते समय 1 ग्राम की मात्रा में खाने से कमर दर्द में
आराम होता है।”

43 पसीना अधिक आना :- बबूल के पत्ते और बाल हरड़
को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक पीस लेते हैं, इस
चूर्ण की सारे शरीर पर मालिश करते हैं और कुछ समय बाद
रुककर स्नान कर लेते हैं। नियमित रूप से यह प्रयोग करते
रहने से कुछ समय बाद पसीने का आना बंद हो जाता है।

44 घाव :- बबूल के पत्तों का लेप घावों को भरता है और
गर्मी की सूजन को दूर करता है।

45 खांसी : – बबूल का गोंद मुंह में रखकर चूसने से
खांसी ठीक हो जाती है। बबूल की छाल को पानी के साथ
काढ़ा बनाकर पीने से खांसी दूर हो जाती है।

46 पायरिया :- बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर गरारे व
कुल्ला करने से पायरिया रोग में लाभ होता है।

47 कनीनिका प्रदाह :- बबूल के पत्तों के काढ़े को उबालकर
गाढ़ा कर लें। इस गाढ़े काढ़े में शहद को मिलाकर आंखों में
रोजाना 3 से 4 बार लगाने से कनीनिका प्रदाह, व्रण (घाव),
या ढलका रोग (आंखों से पानी आना) पूरी तरह से दूर
हो जाता है।

48 गुदा पाक :- बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर
गुदा को रोजाना 3 से 4 बार धोयें। रोजाना इससे गुदा को धोने
से गुदा पाक जल्दी ठीक हो जाता है।

49 उर:क्षत (सीने में घाव) :- 10 ग्राम बबूल की मुलायम
पत्तियां, 10 ग्राम अनार की पत्ती, 10 ग्राम आंवला और 6
ग्राम धनिया लेकर रात को ठंडे पानी में भिगो देना चाहिए। इसे
सुबह मसलकर और छानकर इसमें थोड़ी-सी मिश्री मिलाकर
रख लेते हैं। यह पानी दिन में 3-4 बार पीने से मुंह से खून
का आना बंद हो जाता है।

50 जीभ और मुंह का सूखापन : – मुंह व जीभ का सूखापन
खत्म करने के लिए बबूल की गोंद मुंह में रखकर चूसें। इससे
मुंह का सूखापन पूरी तरह से ठीक हो जाता है।

51 जीभ की सूजन और जलन : – बबूल की मुलायम
पत्तियों को पीसकर पानी में मिलाकर पीयें। इससे
गर्मी अथवा सर्दी के कारण मुंह में छाले, जीभ
सूखना तथा जीभ पर दाने हो जाने की बीमारी दूर हो जाती है।

52 मसूढ़ों का फोड़ा : – 1 ग्राम भुनी सुपारी का चूर्ण, 1
ग्राम फिटकरी, 2 ग्राम सेलखड़ी एवं 1 ग्राम
कत्था को मिलाकर बारीक पॉउडर (मंजन) बना लें। रोजाना 2
से 3 बार मंजन करने से मसूढ़ों का दर्द और फोड़े खत्म
हो जाते हैं।

53 मसूढ़ों का रोग :- मसूढ़ों की सूजन तथा गले के दर्द में
बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करें। इसके
रोजाना प्रयोग से मसूढ़ों का रोग ठीक हो जाता है।

54 हिचकी का रोग: – *500 मिलीलीटर पानी में बबूल के
कांटे को पकायें। जब 3 हिस्सा पानी जल जायें, तब इसे
छानकर रोगी को पिलायें इससे हिचकी में लाभ होता है।
*बबूल के सूखे या गीले कांटों को आधा किलो पानी में
डालकर उबाल लें। 250 मिलीलीटर पानी शेष रह जाने पर
उसमें शहद मिलाकर पीने से हिचकी दूर हो जाती है।”

55 पेशाब का अधिक मात्रा में आना :- बबूल
की कच्ची फली को छाया में सुखाकर उसे घी में तलकर
पाउडर बना लें। इस पाउडर की 3-3 ग्राम
मात्रा रोजाना सेवन करने से पेशाब का ज्यादा आना बंद
होता है।

56 बवासीर (अर्श) :- बबूल के बांदा को कालीमिर्च के साथ
पीस लें। इस मिश्रण को पानी के साथ रोजाना सुबह-शाम
पीने से बवासीर में खून का निकलना बंद हो जाता है।

57 मधुमेह के रोग :- *बबूल की कोमल पत्तियों को सिलपर
पानी के साथ पीस लें, साथ ही उसमें 4-5 कालीमिर्च
भी डाल दें और छानकर सुबह-शाम पियें। इससे मधुमेह के रोग
में लाभ होता है।
*3 ग्राम बबूल के गोंद का चूर्ण पानी के साथ या गाय के दूध
के साथ दिन में 3 बार रोजाना सेवन करने से मधुमेह रोग में
लाभ पहुंचता है।”

58 मोटापा दूर करने के लिए :- बबूल के पत्तों को पानी के
साथ पीसकर शरीर पर लगाने से मोटापे के रोग में लाभ
होता है।

59 बिस्तर पर पेशाब करना :- बबूल
की कच्ची फलियों को छाया में सुखाकर, घी में भूनकर उसमें
मिश्री मिलाकर 4-4 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम गर्म
दूध के साथ पीने से बिस्तर पर पेशाब करने का रोग ठीक
हो जाता है।

60 हाथ-पैरों में पसीना आना :- बबूल के पत्ते को पीसकर
उसमें हरड़ का चूर्ण मिलाकर रोजाना मालिश करने से हाथ-
पैरों में पसीना आना बंद हो जायेगा। बबूल के सूखे पत्ते
को हाथ-पैरों पर मलने से भी लाभ होता है।

61 नहरूआ (स्यानु) :- नहरूआ को बबूल के बीजों के साथ
पीसकर घाव पर लेप करने से रोगी को लाभ मिलता है।

62 हाथ-पैरों के फटने पर :- फटी एड़ी या हाथ की घाईयों में
कीकर की पिसी हुई गोली देने से देने लाभ मिलता है।

63 कुष्ठ (कोढ़) :- 30 ग्राम बबूल की छाल का हिम (शर्बत)
बनाकर पीने से कोढ़ रोग समाप्त हो जाता है।

64 होंठों के लिए : – बबूल की छाल का चूर्ण बनाकर होठों पर
लगाने से होठों के छाले और उपदंश मिट जाता है।

65 जलने पर :- बबूल की गोंद को पानी में घोलकर शरीर के
जले हुए भाग पर लगाने से जलन दूर हो जाती है।

66 लिंगोद्रेक (चोरदी) :- 3 ग्राम कीकर (बबूल) की गोंद
को मिश्री के साथ रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से 3
दिनों में ही लिंगोद्रक (चोरदी) रोग दूर हो जाता है।

67 सिर का दर्द :- पानी में बबूल का गोंद घिसकर सिर पर
लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।

68 विनसेण्ट एन्जाइना के रोग में : – बबूल की छाल
को पीसकर पानी में मिलाकर काढ़ा बनाकर उससे गरारे करने
से विनसेण्ट एन्जाइना के रोग में आराम आता है।