शुगर रोगियों के लिए विशेष मधुमेह दमन चूर्ण :
रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक होना और मूत्र में शर्करा होना ‘मधुमेह’ रोग होना होता है। यहाँ मधुमेह रोग को नियन्त्रित करने वाली परीक्षित और प्रभावकारी घरेलू चिकित्सा में सेवन किए जाने योग्य आयुर्वेदिक योग ‘मधुमेह दमन चूर्ण’ का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।
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घटक द्रव्य:
नीम के सूखे पत्ते 20 ग्राम
ग़ुडमार 80 ग्राम
बिनोले की मींगी 40 ग्राम
जामुन की गुठलियों की मींगी 40 ग्राम
बेल के सूखे पत्ते 60 ग्राम।
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निर्माण विधि :
सब द्रव्यों को खूब कूट-पीसकर मिला लें और इस मिश्रण को 3 बार कपडे से छानकर एक जान कर लें। छानकर शीशी में भर लें।
मात्रा और सेवन विधि:
आधा-आधा चम्मच चूर्ण, ठण्डे ताज़े पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करें।
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लाभ:
यह योग मूत्र और रक्त में शर्करा को नियन्त्रित करता है। इसका प्रभाव अग्न्याशय और यकृत के विकारों को नष्ट कर देता है। इसका सेवन कर मधुमेह रोग को नियन्त्रित किया जा सकता है। इसके साथ वसन्त कुसुमाकर रस (आयुर्वेद दवा) की 1 गोली प्रतिदिन लेने से यह रोग निश्चित रूप से नियन्त्रित रहता है।
मधुमेह रोग में सभी आयुर्वेदिक नुस्खे बहुत रामबाण ही होते हैं। मगर ये कुछ कारणों से उतना रिजल्ट नहीं दे पाते जितना हम सोचते हैं जिसका कारण है के हम सिर्फ मधुमेह को कंट्रोल करने के बारे में सोचते रहते हैं। इसके साथ में सुबह हलकी रनिंग(जॉगिंग), नंगे पाँव सैर, मंडूकासन ज़रूर करेंगे तो ज़रूर मनमाफिक रिजल्ट मिलेगा।
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मधुमेह होता क्यों है :
98% मधुमेह भारतीयों में टाइप टू वैरायटी का होता है यह 40 की उम्र के आसपास शुरु होता है।
जो कारबोहाइड्रेट हम खाते हैं, वह ग्लुकोज बनकर रक्त में चला जाता है। यह शरीर के सेल (कोशिका) में पँहुचे इसके लिए इंन्सुलीन नामक हारमोन की जरुरत होती है। इंन्सुलीन के बिना रक्त से सेल के अन्दर ग्लुकोज जा ही नहीं सकता। यह इंन्सुलीन पैंक्रियाज नामक ग्रन्थि के बीटा सेल्स से स्रावित होता है। आनुवांशिक एवं गलत खान-पान एवं शारीरिक व्यायाम के आभाव में बीटा सेल्स से इन्सुलीन स्रावित होने की क्षमता खत्म होने लगती है। तब इंन्सुलीन का शरीर में अभाव हो जाता है या जो इंन्सुलीन है वह नाकाम हो जाता है। तब ग्लुकोज रक्त में बढता जाता है मगर सेल्स के अन्दर घुस नहीं पाता। यही मधुमेह की अवस्था।
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मधुमेह मुख्यतः दो तरह का होता है :
टाइप – 1
इसमें पैन्क्रियाज की बीटा कोशिकाएँ पूर्णतः नष्ट हो जाती हैं और इस तरह इंन्सुलीन का बनना सम्भव नहीं होता है। जनेटिक, आँटो इम्युनिटी एवं कुछ वाइरल संक्रमण के कारण बचपन में ही बीटा कोशिकाएँ पूर्णतः नष्ट हो जाती हैं।
यह बीमारी मुख्यतः 12 से 25 साल से कम अवस्था में मिलती है। स्वीडेन एवं फिनलैण्ड में टाइप-1 मधुमेह का खूब प्रभाव है। भारत में 1% से 2% केसों में ही टाइप-1 वेराइटी पाया जाता है।ऐसे मरीजों को बिना इंसुलीन की सूई दिए कोई उपाय नहीं है।
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टाइप – 2
भारत में 98% तक मधुमेह के रोगी टाइप-2 वैराइटी के हैं। और यही हमारी मुख्य समस्या है। ऐसे मरीजों में बीटा कोशिकाएँ कुछ-कुछ इन्सुलीन बनाती है। कुछ बना हुआ इंसुलीन मोटापे, शारीरिक श्रम की कमी के कारण असंवेदनशील हो जाता है। ऐसे मरीजों में ईलाज के लिए कई तरह की दवाईयाँ उपलब्ध है। मगर कई बार इंसुलीन भी देना पड़ता है।
क्या बच्चों में टाइप-2 बीमारी हो सकती है।
इन दिनों शुरुआती दौर से ही व्यायाम के अभाव और फास्ट फूड कल्चर के कारण बच्चों में टाइप-2 बीमारी होने लगी है।
यह भारत में खास कर हो रही है।
15 साल के नीचे के लोग, खासकर 12 या 13 साल के बच्चों में यह हो रही है।
लड़कियों में ज्यादा है होने की दर।
खासकर मोटे लोगों में जिनका बी.एम.आई. 32 से ज्यादा है।
60 से 70% केसों में चमड़े में खास काले रंग का दाग होता है जिसे एकैनथोसिस निगरिकेन्स कहते हैं, यह इंसुलीन की नाकामी का संकेत देता है।
इनके फैमली में(95% से ज्यादा) डायबिटीज होने की हिस्ट्री रहती है।
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इस तरह की बीमारी को टाइप-1 से अलग करने के लिए निम्नलिखित जाँचों को किया जाता है।
1. सी-पेपटाइड लेवेलः
यह टाइप-2 वैराइटी नें 0.6 पीमोल/एम.एल. से ज्यादा होता है।
2. सीरम इंसुलीन लेवेलः
यह टाइप-2 में ज्यादा होता है।
3. गैड 65 एन्टीबाऑडी टेस्टः
ऑटोएन्टीबाऑडी टेस्ट टाइप-1 में पोजेटिव एस टाइप-2 में निगेटिव होता है।
अन्य प्रकार के डायबिटीज
1. MODY 1 से 4 – इसे मैचुरीटी आनसेट डायबिटीज ऑफ यंग कहते हैं। यह खास जेनेटिक प्रभाव के कारण होता है।
2. MRDM – मालन्यूट्रीशन रिलेटेड डायबिटीज मैलिटस यह कुपोषण की वजह से उड़ीसा, बंगाल एवं झारखंड के कुछ भागों में मिलता है।
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