प्राचीन तरीका जिनसे मुफ्त स्वास्थ्य जांच संभव
चिकित्सा के क्षेत्र में रोग के निदान के लिए नाड़ी परीक्षा पर फिर से जोर दिया जाने लगा। इक्का दुक्का जानकारों के अलावा अभी तक यह विद्या नीमहकीमों और टेंट तंबू में बैठ कर कारोबार कर रहे यायावर किस्म के कथित वैद्यराजों तक ही सिमटती जा रही थी।
इस दिशा में भारत में तिरुअनंतपुरम और पांडिचेरी के आयुर्वेद संस्थानों ने काम शुरु किया है। पांडिचेरी के वैद्यराज प्रो. हरिविष्णु शांडिल्य ने आयुर्वेद के क्षेत्र में चालीस से ज्यादा साल बिताए। उनका कहना है कि नाड़ी देख कर रोग का पता लगाना यंत्रों के जरिए रोगनिदान की तुलना में ज्यादा सटीक है।
महान चिकित्सकों का महान प्रयोग
दरअसल इस तरह वैद्य लक्षणों की परीक्षा करने के बजाय रोगी की चेतना से अपने आपको जोड़ता है और उससे खुद पूछता है कि तकलीफ क्या है? वैद्य शांडिल्य के अनुसार वैद्यक कोई तकनीक या शास्त्र के बजाय योगविद्या ज्यादा है।
चरक संहिता का संदर्भ देते हुए वे बताते है परंपरा चले आ रहे शास्त्र अग्निवेशतंत्र में नए अध्याय और उल्लेख जोड़ कर उन्होंने इस विद्या को जिस तरह उपयोगी बनाया, उसमें योग का ही खासतौर पर उपयोग किया।
कहते हैं कि चरक ने करीब आठ लाख औषध वनस्पतियों और जीव जंतुओं का परीक्षण किया और उनके गुण दोषों का सटीक विवेचन कर दिया है। माना जाता है कि चरक को इस काम में मुश्किल से कुछ महीने लगे थे। हकीम लुकमान के बारे में भी प्रसिद्ध है कि जड़ी बूटियां उनके पास आते ही खुद बोल उठती थी और अपने चिकित्सकीय गुणों को बता देती थी।
स्वास्थ्य लाभ के लिए सस्ता तरीका
चिकित्सा विज्ञान के जानकार बताते हैं कि इस तरह के उल्लेख चरक या उनसे पहले पुनर्वसु और अग्निवेश आदि विद्वानों ने औषधियों की विवेचना करने वाले ऋषिजनों ने शोध अनुसंधान से पहले अपने आपको योग की भूमिका में खास मुकाम तक पहुंचाते थे और नाड़ी या बिना नाड़ी के भी केवल रोगी की चेतना से संबंध जोड़ कर उसके बारे में निदान कर लेते थे।
महर्षि आयुर्वेद संस्थान के विष्णु शास्त्री के अनुसार इस दिशा में खोज के लिए साधनों से हजार गुना ज्यादा साधकों की जरूरत है जो इस क्षेत्र में कमाई के बजाय आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए आए। कमाई की चिंता न करें तो गारंटी है कि आमदनी के हिसाब से घाटा नहीं रहेगा।