व्यायाम करना तन व मन के कईरोगों से दूर रखता है। लेकिन कुछ आसन ऐसे भी हैं, जो न सिर्फ शरीर को शेप में रखते हैं, बल्कि चेहरे का निखार भी बढ़ाते हैं। ऐसे ही कुछ आसन जो हमारी बूढ़ा दिखने की गति  को धीमा करते हैं, जाने ऐसे योग के बारे में जो  आपके लिए लाभकारी है 

सर्वांगासन 

पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। दो गहरे सांस लें और छोड़ें। दोनों पैरों को जमीन से धीरे-धीरे 90 डिग्री तक ऊपर उठाएं। फिर कूल्हे को हल्का-सा जमीन के ऊपर उठा कर हाथों से कमर को सहारा देते हुए पैर तथा धड़ को गर्दन पर सीधा रखते हुए क्षमतानुसार रुकें। पैर व धड़ बिल्कुल सीधा रखें। शुरुआत में दस सेकेंड तक रुकें। अभ्यास से 5 मिनट तक ले आएं।
न करें: उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, स्लिप डिस्क व थाइरॉएड के रोगी।
उपासन: इसके साथ इतनी ही अवधि के लिए सुप्त वज्रासन, मत्स्यासन, उष्ट्रासन जरूर करें।

सुप्त वज्रासन 

घुटने के बल जमीन पर बैठें। दोनों पैर की एड़ियों के मध्य नितंब को रखें। दो गहरे सांस लें और छोड़ें। दोनों हाथों को पीठ के पीछे जमीन पर रखते हुए शरीर को धीरे-धीरे पीछे झुका कर सिर को जमीन तक ले आएं।  फिर सिर का ऊपरी भाग जमीन पर रखें तथा दोनों हाथों को पेट पर रखें। आरामदायक अवधि तक रुकते हुए वापस पूर्व स्थिति में आएं। शुरु में 15 सेकेंड तक रुकें। बाद में 4 से 5 मिनट तक कर सकते हैं।
लाभ: शरीर सुडौल व ऊर्जावान होता है। सौंदर्य में वृद्धि होती है। नितंब, जांघ व पेट की चर्बी घटती है। चेहरे की झुर्रियां भी दूर होती हैं।

त्रिकोणासन

सीधे खड़े हो जाएं। दोनों पैरों के बीच लगभग 3 से 4 फुट का अंतर रखें। दोनों हाथों को कंधों की ऊंचाई तक अगल-बगल उठाएं। अब ऊपरी धड़ को दायीं ओर इस तरह झुकाएं कि दायां हाथ दाएं पैर के पंजे पर आ जाए व बायां पैर बाएं कान के पास सीधा ऊपर की ओर हो। दृष्टि बाएं हाथ के पंजे पर रखें। घुटने मुड़ने न पाएं। कुछ देर रुकें और फिर पूर्व स्थिति में लौट आएं। इसे दूसरी तरफ से भी करें।
लाभ: यह आसन शरीर के सामने वाले हिस्से के सभी अंगों की मांसपेशियों, नसों व हड्डियों को मजबूत करता है।  किडनी प्रक्रिया दुरुस्त होती है।

कपालभाति प्राणायाम

ध्यान की किसी भी मुद्रा यानी पद्मासन, सिंहासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा करके बैठ जाएं। दो गहरे सांस लें व छोड़ें। इसके बाद नासिका द्वारा एक हल्के झटके के साथ सांस बाहर निकालें और नाक से सहज श्वास अंदर लें। यह एक आवृत्ति है। शुरुआत में इसे 25 से 30 बार करें।  धीरे-धीरे नियमित व लगातार करें।

न करें: उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, स्लिप डिस्क, हाइपरथाइरॉएड व अधिक एसिडिटी से पीड़ित।

लाभ: विषाक्त तत्व बाहर निकलते हैं। प्राण वायु का संचार होता है। सौंदर्य में वृद्धि होती है। झुर्रियां व धब्बे दूर होते हैं। मोटापा कम करने में मदद मिलती है।

नाड़ी शोधन प्राणायाम

नाड़ी शोधन प्राणायामों का राजा माना जाता है। यह मन की स्थिरता  में वृद्धि करता है। इससे सौंदर्य के साथ-साथ सर्वांगीण विकास होता है।
विधि: ध्यान मुद्रा या कुर्सी पर सीधे बैठें। दो गहरे सांस लें व छोड़ें। इसके बाद दाएं हाथ के अंगूठे को दायीं नासिका पर रखते हुए बायीं ओर से गहरी, लंबी व धीमी सांस अंदर लें। अब बायीं नासिका को दायीं  कनिष्ठा से बंद कर, दायीं नासिका से गहरी, धीमी व लंबी श्वास बाहर निकालें। फिर इसी दायीं नासिका से सांस भर कर बायीं  नासिका से बाहर निकालें। यह नाड़ी  शोधन प्राणायाम का एक चक्र है। शुरु में 6 से 12 बार इसे करें। धीरे-धीरे संख्या 36 से 72 तक ले जाएं।