★ ब्राह्मी अनेक जटिल रोगो के लिए एक चमत्कारिक महा औषिधि है ★

ब्राह्मी बुद्धि तथा उम्र को बढ़ाने वाली अनेक जटिल रोगो की दवा हैं, ब्राह्मी – मंदबुद्धि, महामूर्ख, अज्ञानी को श्रुतिधर, त्रिकालदर्शी बनाने वाली महा औषधि हैं।
ब्राह्मी मस्तिष्क, सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह, खून की खराबी, खांसी, पित्त, सूजन, गले, दिल, मानसिक रोग जैसे पागलपन, कब्ज, गठिया, याददाश्त, नींद, तनाव, बालों आदि रोगो के लिए बेहतरीन औषिधि हैं।
ब्राह्मी का प्रभाव मुख्यतः मस्तिष्क पर पडता है। यह मस्तिष्क के लिए एक पौष्टिक टॉनिक तो है ही साथ ही यह मस्तिष्क को शान्ति भी देती है। लगातार मानसिक कार्य करने से थकान के कारण जब व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी का आश्चर्यजनक असर होता है। ब्राह्मी स्नायुकोषों का पोषण कर उन्हें उत्तेजित कर देती है और हम पुनः स्फूर्ति का अनुभव करने लगते हैं।
सही मात्रा के अनुसार इसका सेवन करने से निर्बुद्ध, महामूर्ख, अज्ञानी भी श्रुतिधर (एक बार सुनकर जन्म भर न भूलने वाला) और त्रिकालदर्शी (भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य को जानने वाला) हो जाता है, व्याकरण को पढ़ने वाले अक्सर इस क्रिया को करते हैं। ब्राह्मी घृत, ब्राही रसायन, ब्राही पाक, ब्राह्मी तेल, सारस्वतारिष्ट, सारस्वत चूर्ण आदि के रूप में प्रयोग किया जाता हैं। अग्निमंदता, रक्त विकार तथा सामान्य शोथ में यह तुरंत लाभ करती है। ब्राह्मी बुद्धि तथा उम्र को बढ़ाता है। यह रसायन के समान होती है। बुखार को खत्म करती है। सफेद दाग, पीलिया, प्रमेह और खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन को रोकती है। बैठे हुए गले को साफ करती है। ब्राह्मी का उपयोग दिल के लिए लाभदायक होता है। यह उन्माद (मानसिक पागलपन) को दूर करता है। ब्राह्मी कब्ज को दूर करती है।
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★ आइये जाने इसके बारे में :
ब्राह्मी हरे और सफेद रंग की होती है। ब्राह्मी का पौधा हिमालय की तराई में हरिद्धार से लेकर बद्रीनारायण के मार्ग में अधिक मात्रा में पाया जाता है। जो बहुत उत्तम किस्म का होता है। यह मुख्यतः जला सन्न भूमि में पाई जाती है इसलिए इसे जल निम्ब भी कहते हैं । विशेषतः यह हिमालय की तराई, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि में नदी नालों, नहरों के किनारे पाई जाती है । गंगा के किनारे बारहों महीने हरी-भरी पाई जाती है । इसका क्षुप फैलने वाला तथा मांसल चिकनी पत्तियाँ लिए होता है । पत्तियाँ चौथाई से एक इंच लम्बी व 10 मिलीमीटर तक चौड़ी होती है । ये आयताकार या सु्रवाकार होती है तथा काण्ड व शाखाओं पर विपरीत क्रम में व्यवस्थित रहती हैं । फूल नीले, श्वेत या हल्के गुलाबी होते हैं, जो पत्रकोण से निकलते हैं । फल लंबे गोल आगे से नुकीले होते हैं, जिनमें छोटे-छोटे बीज निकलते हैं । काण्ड अति कोमल होता है । इसमें छोटे-छोटे रोम होते हैं व ग्रंथियाँ होती हैं । ग्रन्थि से जड़ें निकल कर भूमि पकड़ लेती हैं, जिस कारण काण्ड 2 से 3 फुट ऊँचा होने पर भी छोटा व झुका हुआ दिखाई देता है । ब्राह्मी का पौधा पूरी तरह से औषधीय है। इसके तने और पत्तियां मुलायम, गूदेदार और फूल सफेद होते हैं। ब्राह्मी की जड़ें छोटी और धागे की तरह पतली होती है। इसमें गर्मी के मौसम में फूल लगते हैं। यह पौधा नम स्थानो में पाया जाता है, तथा मुख्यत: भारत ही इसकी उपज भूमि है।
इसे भारत वर्ष में विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे हिंदी में सफेद चमनी, संस्कृत में सौम्यलता, मलयालम में वर्ण, नीरब्राम्ही, मराठी में घोल, गुजराती में जल ब्राह्मी, जल नेवरी आदि, इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी(Bacapa monnieri) है। इस पौधे में हायड्रोकोटिलिन नामक क्षाराभ और एशियाटिकोसाइड नामक ग्लाइकोसाइड पाया जाता है।
इसे बुद्धिवर्धक होने के कारण ‘ब्राह्मी’ नाम दिया गया है । मण्डूकपर्णी मण्डूकी से इसे अलग माना जाना चाहिए जो आकार में मिलते-जुलते हुए भी इससे अलग है ।
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★ स्वभाव :
यह शीतल (ठंडी) होती है।
पहचान तथा मिलावट-
शुद्ध ब्राह्मी हरिद्वार के आसपास गंगा के किनारे सर्वाधिक होती है । यहीं से यह सारे भारत में जाती है । उसमें दो पौधों की मिलावट होती है ।
 मण्डूकपर्णी (सेण्टेला एश्याटिका) तथा बकोपा फ्लोरीबण्डा । गुण एक समान होते हुए भी मण्डूकपर्णी ब्राह्मी से कम मेद्य है और मात्र त्वचा के बाह्य प्रयोग में ही उपयोगी है ।
‘जनरल ऑफ रिसर्च इन इण्डियन मेडीसिन’ के अनुसार (डॉ. सिन्हा व सिंह) विस्तृत अध्ययनों ने अब यह सिद्ध कर दिया है कि ‘बकोपा मोनिएरा’ ही शास्रोक्त गुणकारी है । ब्राह्मी के पत्ते मण्डूकपर्णी की अपेक्षा पतले होते हैं । पुष्प सफेद व नीलापन लिए होते हैं जब कि मण्डूकपर्णी के पुष्प रक्त लाल होते हैं । ब्राह्मी का सारा क्षुप ही तिक्त कड़वापन लिए होता है जबकि मण्डूकपर्णी का पौधा मात्र तीखा होता है तथा मसलने पर गाजर जैसी गंध देता है । सूखने पर मण्डूकपर्णी के सभी गुण प्रायः जाते रहते हैं । जबकि ब्राह्मी का हरा या हरा-भरा रंग का सूखा चूर्ण एक वर्ष तक इसी प्रकार प्रयोग किया जा सकता है ।

★ संग्रह-संरक्षण कालावधि-
गंगादि पवित्र नदियों के किनारे पायी जानेवाली ब्राह्मी वस्तुतः गुणकारी होती है । इसकी पत्तियों को छाया में सुखाकर पंचांग का चूर्ण कर बोतल में बंद करके रखना चाहिए । इसे एक वर्ष तक प्रयोग किया जा सकता है ।
गुण कर्म संबंधी विभिन्न मत-महर्षि चरक के अनुसार ब्राह्मी मानस रोगों की एक अचूक गुणकारी औषधि है ।
सुश्रुत संहिता के अनुसार ब्राह्मी का उपयोग मस्तिष्क विकृति, नाड़ी दौर्बल्य, अपस्मार, उन्माद एवं स्मृति नाश में किया जाना चाहिए ।
भाव प्रकाश के अनुसार ब्राह्मी मेधावर्धक है ।
श्री खोरी एवं नादकर्णी ने इसे एक प्रकार का नर्वटॉनिक माना है । उनके अनुसार ब्राह्मी पंचांग का सूखा चूर्ण रोगियों को देने पर मानसिक कमजोरी, तनाव तथा घबराहट एवं अवसाद की प्रवृत्ति में लाभ हुआ । पागलपन तथा मिर्गी के लिए डॉ. नादकर्णी ब्राह्मी पत्तियों का स्वरस घी में उबाल कर दिए जाने पर पूर्ण सफलता का दावा करते हैं । हिस्टीरिया जैसे मनोरोगों में ब्राह्मी तुरंत लाभ करती है तथा सारे लक्षण तुरंत मिट जाते हैं । सिर दर्द, चक्कर, भारीपन तथा चिंता में ब्राह्मी तेल का प्रयोग कई वैज्ञानिकों ने बताया है । सी.एस.आई.आर. द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘ग्लासरी ऑफ इण्डियन मेडीसिन प्लाण्ट्स’ में ब्राह्मी को पागलपन व मिर्गी की औषधि बताया गया है ।
‘वनौषधि चन्द्रोदय’ के विद्वान लेखक के अनुसार ब्राह्मी की मुख्य क्रिया मस्तिष्क और मज्जा तंतुओं पर होती है । मस्तिष्क को शांति देने के अतिरिक्त यह एक पौष्टिक टॉनिक का काम भी करती है । मस्तिष्कीय थकान से जब व्यक्ति की कार्य क्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी के घटक स्नायु कोषों का पोषण कर उत्तेजित करते हैं तथा मनुष्य स्फूर्ति का अनुभव करता है । अपस्मार के रोगों में वे विद्युतीय स्फुरणा के लिए उत्तरदायी केन्द्र का शमन करते हैं । स्नायुकोषों की उत्तेजना कम होती है व धीरे-धीरे मिर्गी के दौरों की दर घटते-घटते नहीं के बराबर हो जाती है । उन्माद में भी यह इसी प्रकार काम करती है । दो परस्पर विरोधी मनोविकारों पर विरोधी प्रकार के प्रभाव इस औषधि की विलक्षणता है । उसे सरस्वती पत्रकों का घटक मानकर इसी कारण मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन के लिए चिर पुरातन काल से प्रयुक्त किया जा रहा है ।
होम्योपैथी मतानुसार एकान्त को अधिक पसंद करने वाले अवसाद ग्रस्त व्यक्तियों को ब्राह्मी व मण्डूकपर्णी दोनों ही लाभ करते हैं । चक्कर, नाड़ियों में खिंचाव, सिर दर्द में ब्राह्मी का प्रभाव अधिक होता पाया गया है । यूनानी चिकित्सा में इसे ‘वाष्पन’ नाम दिया गया है । इसका प्रधान प्रयोग मस्तिष्क व नाड़ी बलवर्धक के रूप में है ।
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★ आधुनिक मत एवं वैज्ञानिक प्रयोग निष्कर्ष-
ब्राह्मी की प्रख्यात मेधावर्धक शकित पर प्रायोगिक रूप से विशद अध्ययन हुआ है । वैज्ञानिक बताते हैं कि इससे डायजेपाम औषधि समूह की तरह सोमनस्यकारक-तनावनाशक गुण है । इण्डियन जनरल ऑफ मेडिकल रिसर्च में डॉ. मल्होत्रा और दास (40, 290, 1951) लिखते हैं कि ब्राह्मी का सारभूत निष्कर्ष प्रायोगिक जीवों पर शामक प्रभाव डालता है । इसी प्रभाव को बाद में अन्य वैज्ञानिकों ने भी प्रमाणित किया । ब्राह्मी की इस शामक सामर्थ्य की तुलना में प्रचलित एलोपैथिक औषधि ‘क्लोरप्रोमाजीन’ से की गई है । इससे न केवल तनाव समाप्त होकर प्रसन्नता का भाव आता है, अपितु सीखने की क्षमता भी बढ़ जाती है । व्यक्ति की संवेदना तंतुओं से ब्राह्म संदेशों को ग्रहण करने की सामर्थ्य में अप्रतिम वृद्धि होती है ।
ब्राह्मी का एक रासायनिक घटक हर्सेपोनिन सीधे पीनियल ग्रंथि पर प्रभाव डालकर ‘सिरॉटानिन’ नामक न्यूरोकेमीकल का उत्सर्ग कर सचेतन स्थिति को बढ़ाता है । यह हारमोन मस्तिष्कीय क्रियाओं के लिए अनिवार्य माना जाता है ।
ब्राह्मी का दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रभाव है इसका आक्षेपहर एण्टीकन्वल्सेण्ट-मिर्गीनाशक होना । डॉ. डे और डॉ. चटर्जी के अनुसार इस औषधि के घटक सीधे विद्युत्सक्रिय उत्तेजक केन्द्र तक जाकर उसे शांत करते हैं तथा अन्य स्नायुओं को उत्तेजित होने से रोकते हैं । इस क्रिया के लिए उत्तरदायी केमिकल प्रक्रिया की अवधि को यह बढ़ा देता है । प्रायोगिक जीवों में सेमीकार्बाजाइड के आक्षेपजनक एवं मारक प्रभावों को यह पूर्णतया शांत कर देती है । इनके अतिरिक्त सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए उत्तरदायी विभिन्न स्नायु तंतुओं के केन्द्रकों से संबंध को यह सशक्त बनाती है । इस प्रकार मेधावर्धन-स्मृतिवर्धन में सहायता करती है । साइको सीमेटिक रोगों में तो यह हाइपोथेलेक्स के स्तर पर कार्य कर चक्र को ही तोड़ देती है । इस प्रकार वैज्ञानिक प्रयोग इसे सर्वश्रेष्ठ बहुमुखी स्नायु संस्थान के रोगों की औषधि सिद्ध करते हैं ।

★ रसायन संगठन-
ब्राह्मी में पाए जाने वाले मुख्य जैव सक्रिय पदार्थ हैं-एल्केलाइड तथा सेपोनिन । एल्केलाइडों में दो मुख्य हैं-ब्राह्मीन और हरपेस्टिन । गुण-कर्मों की दृष्टि से ब्राह्मीन कुचला में पाए जाने वाले एल्केलाइड स्टि्रक्नीन के समान हैं, पर उसकी तरह विषैली नहीं है । बेकोसाएड ‘ए’ तथा ‘बी’ मुख्य सैपोनिन है बेकोसाएड ‘ए’ में एरेबिनोसिल ग्लूकोस अरेविनोस बेकोजेनिन इत्यादि । बोटूलिक अम्ल डी-मैनिटाल, स्टिग्मा स्टेनॉल, बीटा-साइटोस्टीराल, स्टीग्मास्टीरॉल तथा टैनिन भी शेष पदार्थों में से कुछ है । ग्लूकोसाइड एवं उड़नशील तेल प्रायः हरी पत्तियों में पाए जाते हैं । सूखे पौधों में सेण्टोइक एसिड तथा सेण्टेलिंक एसिड भी पाए जाते हैं ।
जहाँ तक हो सके ब्राह्मी को ताजी अवस्था में ही प्रयोग करते हैं । जहाँ तक यह उत्पन्न न हो सके, वहाँ इसका छाया में सुखाया गया चूर्ण ही प्रयुक्त होता है । यदि इसे उबाला जाए या धूप में सुखाया जाए तो इसका उड़नशील तेल नष्ट हो जाता है व यह निष्प्रभावी हो जाती है । इसी कारण इसका क्वाथ भी प्रयोग नहीं करते।

• मात्रा : 1 से 3 चम्मच ब्राह्मी के पत्तों का रस, ताजी हरी पत्तियां 10 तक सुखाया हुआ बारीक चूर्ण 1 से 2 ग्राम तक, पंचांग (फूल, फल, तना, जड़ और पत्ती) चूर्ण 3 से 5 ग्राम तक और जड़ के चूर्ण का सेवन आधे से 2 ग्राम तक करना चाहिए।

★ निर्धारणानुसार प्रयोग-
• अनिद्रा :-
अनिद्रा में ब्राह्मी चूर्ण 3 माशा (3 ग्राम) गाय के दूध के साथ देते हैं अथवा ब्राह्मी के ताजे 20-25 पत्रों को साफ गाय के आधा सेर दूध में घोंट छानकर 7 दिन तक देते हैं । वर्षों पुराना अनिद्रा रोग इससे ठीक हो जाता है ।
• निद्राचारित या नींद में चलना :-
ब्राह्मी, बच और शंखपुष्पी इनको बराबर मात्रा में लेकर ब्राह्मी के रस को 12 घंटे छाया में सुखाकर और 12 घंटे धूप में रखकर पूरी तरह से सुखाकर इसका चूर्ण तैयार कर लें। लगभग 480 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम सुबह और शाम को समान मात्रा में घी और शहद के साथ मिलाकर नींद में चलने वाले रोगी को देने से उसका स्नायु तंत्र मजबूत हो जाता है। इसका सेवन करने से नींद में चलने का रोग दूर हो जाता है।
• मिर्गी में अपस्मार में :-
मिर्गी तथा उन्माद में भी यह बहुत लाभकारी होती है । मिरगी के दौरों में यह विद्युत स्फुरण के लिए उत्तरदायी केन्द्र को शांत करते हैं इससे स्नायुकोषों की उत्तेजना कम होती है तथा दौरे धीरे धीरे घटते हुए लगभग बिल्कुल बंद हो जाते हैं । ब्राह्मी के स्वरस 1/2 चम्मच मधु के साथ अथवा चूर्ण को मधु के साथ दिया जाता है । प्रारंभ में ढाई ग्राम एवं प्रभाव न होने पर पाँच ग्राम तक दिया जा सकता है । मिर्गी के रोग में ब्राह्मी (जलनीम) से निकाले गये घी का सेवन करने से लाभ होता है। ब्राह्मी, कोहली, शंखपुष्पी, सांठी, तुलसी और शहद को मिलाकर मिर्गी के रोगी को पिलाने से मिर्गी से छुटकारा मिल जाता है।
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• अवसाद उदासीनता सुस्ती :-
लगभग 10 ग्राम ब्राह्मी (जलनीम) का रस या लगभग 480 से 960 मिलीग्राम चूर्ण को लेने से उदासीनता, अवसाद या सुस्ती दूर हो जाती है।
• बुद्धिवैकल्प, बुद्धि का विकास कम होना : –
ब्राह्मी, घोरबच (बच), शंखपुष्पी को बराबर मात्रा में लेकर ब्राह्मी रस में तीन भावनायें (उबाल) देकर छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और रोजाना 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम को असमान मात्रा में घी और शहद के साथ मिलाकर काफी दिनों तक चटाने से बुद्धि का विकास हो जाता है।
• पागलपन (उन्माद) में :-
*6 मिलीलीटर ब्राह्मी का रस, 2 ग्राम कूठ का चूर्ण और 6 ग्राम शहद को मिलाकर दिन में 3 बार पीने से पुराना उन्माद कम हो जाता है। 3 ग्राम ब्राह्मी, 2 पीस कालीमिर्च, 3 ग्राम बादाम की गिरी, 3-3 ग्राम मगज के बीज तथा सफेद मिश्री को 25 गाम पानी में घोंटकर छान लें, इसे सुबह और शाम रोगी को पिलाने से पागलपन दूर हो जाता है।
*3 ग्राम ब्राह्मी के थोड़े से दाने कालीमिर्च के पानी के साथ पीसकर छान लें। इसे दिन में 3 से 4 बार पिलाने से भूलने की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
*ब्राह्मी के रस में कूठ के चूर्ण और शहद को मिलाकर चाटने से पागलपन का रोग ठीक हो जाता है।
*ब्राह्मी की पत्तियों का रस तथा बालवच, कूठ, शंखपुष्पी का मिश्रण बनाकर गाय के पुराने घी के साथ सेवन करने से पागलपन का रोग दूर हो जाता है।
• खांसी, पित्त बुखार और पुराने पागलपन :-
3 ग्राम ब्राह्मी, 3 ग्राम शंखपुष्पी, 6 ग्राम बादाम गिरी, 3 ग्राम छोटी इलायची के बीज को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को थोड़े-से पानी में पीसकर, छानकर मिश्री मिलाकर पीने से खांसी, पित्त बुखार और पुराने पागलपन में लाभ मिलता है।
• हिस्टीरिया :-
हिस्टीरिया जैसे रोगों में यह तुरन्त प्रभावी होती है। 10-10 ग्राम ब्राह्मी और वचा को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर सुबह और शाम 3-3 ग्राम की मात्रा में त्रिफला के जल से खाने पर हिस्टीरिया के रोग में बहुत लाभ होता है।
• चिन्ता तथा तनाव :-
चिन्ता तथा तनाव में ठंडाई के रूप में भी इसका प्रयोग किया जाता है, इसके अतिरिक्त किसी बीमार या अन्य बीमारी के कारण आई निर्बलता के निवारण के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कुष्ठ और चर्म रोगों में भी यह उपयोगी है। खांसी तथा गला बैठने पर इसके रस का सेवन काली मिर्च तथा शहद के साथ करना चाहिए। यूनानी चिकित्सक इसका माजूम बनाकर खिलाते हैं, पर सर्वश्रेष्ठ स्वरूप चूर्ण का मधु के अनुपान के साथ सेवन है ।
• बल्य रसायन :-
ब्राह्मी बल्य रसायन भी है इसलिए किसी भी प्रकार की गंभीर व्याधि ज्वर आदि के बाद निर्बलता निवारण के लिए इसका प्रयोग कर सकते हैं ।
• कमजोरी :-
40 मिलीलीटर केवांच की जड़ का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से स्नायु की कमजोरी मिट जाती है। इसके जड़ का रस अगर 10-20 मिलीलीटर सुबह-शाम लिया जाए तो भी कमजोरी में लाभ होता है।
• धातु क्षय (वीर्य का नष्ट होना) :-
15 ब्राह्मी के पत्तों को दिन में 3 बार सेवन करने से वीर्य के नष्ट होने का रोग कम हो जाता है। ब्रह्मी, शंखपुष्पी, खरैटी, ब्रह्मदंडी तथा कालीमिर्च को पीसकर खाने से वीर्य रोग दूर होकर शुद्ध होता है।
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• पेशाब करने में कष्ट होना (मूत्रकृच्छ) :-
ब्राह्मी के 2 चम्मच रस में, 1 चम्मच मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेशाब करने की रुकावट दूर हो जाती है। 4 मिलीलीटर ब्राह्मी के रस को शहद के साथ चाटने से मूत्ररोग में लाभ होता है।
• आंखों की बीमारी में :-
3 से 6 ग्राम ब्राह्मी के पत्तों को घी में भूनकर सेंधानमक के साथ दिन में 3 बार लेने से आंखों के रोग में लाभ होता है।
• दिमाग की स्फूर्ति :-
ब्राह्मी और बादाम की गिरी की एक भाग ,काली मिर्च का चार भाग लेकर इनको पानी में घोटकर छोटी- छोटी गोली बनाकर एक-एक गोली नियमित रूप से दूध के साथ सेवन करने पर दिमाग की स्फूर्ति बनी रहती है।
• स्मरण शक्ति वर्द्धक : –
10 मिलीलीटर सूखी ब्राह्मी का रस, 1 बादाम की गिरी, 3 ग्राम कालीमिर्च को पानी से पीसकर 3-3 ग्राम की टिकिया बना लें। इस टिकिया को रोजाना सुबह और शाम दूध के साथ रोगी को देने से दिमाग को ताकत मिलती है। ब्राह्मी के ताजे रस और बराबर घी को मिलाकर शुद्ध घी में 5 ग्राम की खुराक में सेवन करने से दिमाग को ताकत प्रदान होती है।
• याददाश्त, स्मृति दौर्बल्य तथा अल्पमंदता :-
याददाश्त, स्मृति दौर्बल्य तथा अल्पमंदता में ब्राह्मी स्वरस अथवा चूर्ण पानी के साथ या मिश्री के साथ देते हैं । एक सेर नारियल के तल में 15 तोला ब्राह्मी स्वरस मिलाकर उबालने पर ब्राह्मी तेल तैयार हो जाता है । इसकी मालिश करने से मस्तिष्क की निर्बलता व खुश्की दूर होती है तथा बुद्धि बढ़ती है ।
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• दिल की धड़कन :-
20 मिलीलीटर ताजी ब्राह्मी का रस और 5 ग्राम शहद को मिलाकर रोजाना सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होकर तेज धड़कन भी सामान्य हो जाती है। हृदयाघात के बाद दुर्बलता निवारण हेतु यह एक श्रेष्ठ टॉनिक है।
• उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) :-
ब्राह्मी के पत्तों का रस एक चम्मच की मात्रा में आधे चम्म्च शहद के साथ लेने से उच्च रक्तचाप ठीक हो जाता है।
• कुष्ठ तथा अन्य चर्म रोगों में :-
वाह्य प्रयोगों में तेल के अतिरिक्त इसे कुष्ठ तथा अन्य चर्म रोगों में भी प्रयुक्त करते हैं
• खांसी व् गले के रोग :-
खाँसी व गला बैठ जाने पर इसके स्वरस का काली मिर्च व मधु के साथ सेवन करते हैं । विभिन्न प्रकार के विषों तथा ज्वर में यह लाभ पहुँचाती है । उदासी निराशा भाव तथा अधिक बोलने से उत्पन्न हुए स्वर भंग में भी ब्राह्मी लाभकारी होती है ।
• हकलाना, तुतलाना :-
ब्राह्मी घी 6 से 10 ग्राम रोजाना सुबह-शाम मिश्री के साथ खाने से तुतलाना (हकलाना) ठीक हो जाता है। जन्मजात तुतलाने में भी ब्राह्मी सफलता पूर्वक कार्य करती पायी गई है ।
• बालों के लिए : –
100 ग्राम ब्राह्मी की जड़, 100 ग्राम मुनक्का और 50 ग्राम शंखपुष्पी को चौगुने पानी में मिलाकर रस निकाल लें। इस रस का सेवन करने से बालों के सभी रोग दूर हो जाते हैं।
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• खसरा : –
ब्राह्मी के रस में शहद मिलाकर पिलाने से खसरा की बीमारी समाप्त होती है।
• पीनस : –
मण्डूकपर्णी की जड़ को नाक से लेने से पीनस (पुराना जुकाम) के रोग में लाभ होता है।
• दांतों के दर्द : –
दांतों में तेज दर्द होने पर एक कप पानी को हल्का गर्म करें। फिर उस पानी में 1 चम्मच ब्राह्मी डालकर रोजाना दो बार कुल्ला करें। इससे दांतों के दर्द में आराम मिलता है।
• एड्स : –
ब्राह्मी का रस 5 से 10 मिलीलीटर अथवा चूर्ण 2 ग्राम से 5 ग्राम सुबह शाम देने से एड्स AIDS में लाभ होता है क्योंकि यह गांठों को खत्म करता है और शरीर के अंदर गलने को रोकता है। निर्धारित मात्रा से अधिक लेने से चक्कर आदि आ सकते हैं।
• गठिया :-
इसके पत्ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर करती है। ब्राह्मी में रक्त शुद्ध करने के गुण भी पाये जाते है।
• बालों से सम्बंधित रोग :-
यदि आपको बालों से सम्बंधित कोई समस्या है जैसे बाल झड़ रहे हों तो परेशान न हों बस ब्राह्मी के पांच अंगों का यानी पंचाग का चूर्ण लेकर एक चम्मच की मात्रा में लें और लाभ देखें।
• बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए :-
बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए सौ ग्राम की मात्रा में ब्राह्मी, पचास ग्राम की मात्रा में शंखपुष्पी के साथ चार गुना पानी मिलाकर इसका अर्क निकाल लें और नियमित प्रयोग करें। बस ध्यान रहे कि खट्टी चीजें न खाएं आपको जल्द ही फायदा होगा।
• खाँसी व छुटपन के क्षय रोग में :-
बच्चों की खाँसी व छुटपन के क्षय रोग में इसका गरम लेप छाती पर किया जाता है । बालकों के सांस और बलगम में ब्राह्मी को थोड़ा-सा गर्म करके छाती पर लेप करने से लाभ होता है।
• ब्राह्मी तेल :-
तेल बनाने के लिए 1 लीटर नारियल तेल में लगभग 15 तोला ब्राह्मी का रस उबाल लें . यह तेल सिरदर्द, चक्कर, भारीपन, चिंता आदि से भी राहत दिलाता है।
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★ हानिकारक प्रभाव :
ब्राह्मी का अधिक मात्रा में सेवन करने से सिर दर्द, घबराहट, खुजली, चक्कर आना और त्वचा का लाल होना यहां तक की बेहोशी भी हो सकती है। ब्राह्मी दस्तावर (पेट को साफ करने वाला) होता है। अत: सेवन में सावधानी बरतें और मात्रा के अनुसार ही सेवन करें।
★ हानिकारक प्रभाव मिटाने के उपाय :
ब्राह्मी के दुष्प्रभाव को मिटाने के लिए आप सूखे धनिये का प्रयोग कर सकते हैं।
★ दोषों को दूर करने वाला : 
दूध और वच इसके गुणों को सुरक्षित रखते हैं एवं इसमें व्याप्त दोषों को दूर करते हैं।
सामान्यतया मानस रोगों के लिए ही प्रयुक्त यह औषधि अब धीरे-धीरे बलवर्धक रसायन के रूप में भी मान्यता प्राप्त करती जा रही है । यह हर दृष्टि से हर वर्ग के लिए हितकर है तथा प्रकृति का मनुष्य को एक श्रेष्ठ अनुदान है । किसी न किसी रूप में इसका नियमित सेवन किया जाए तो हमेशा स्फूर्ति से भरी प्रफुल्ल मनःस्थिति बनाए रखती है ।