• अवटु ग्रंथि (थाइरोइड ग्लैंड) के अतिस्राव से उत्पन्न कम्पन, घबराहट और अनिद्रा जैसी उत्तेजनापूर्ण स्थिति में शंखपुष्पी काफी अनुकूल प्रभाव डालती है। अवटु ग्रंथि से थायरो टोक्सिन के अतिस्राव से हृदय और मस्तिष्क से हृदय और मस्तिष्क दोनों प्रभावित होते हैं।

➡ हाइपर थाइरोइड में शंखपुष्पी का प्रयोग :

  • ऐसी स्थिति में शंखपुष्पी थाइरोइड ग्रंथि के स्त्राव को संतुलित मात्रा में बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शंखपुष्पी का सेवन थायरो टोक्सिकोसिस के नए रोगियों में एलोपैथिक की औषधियों से भी अधिक प्रभावशाली कार्य करती है। यदि किसी रोगी ने आधुनिक पैथी की एंटी थाइरोइड औषधियों का पहले सेवन किया हो और उनके कारण रोगी में दुष्प्रभाव उत्पन्न हो गए हों, तो शंखपुष्पी उनसे रोगी को मुक्ति दिला सकने में समर्थ है।
  • अनेक वैज्ञानिकों ने अपने प्रारंभिक अध्ययनों में पाया है के शंखपुष्पी के सक्रिय रसायन सीधे ही थाइरोइड ग्रंथि की कोशिकाओं पर प्रभाव डालकर उसके स्त्राव का पुनः नियमन करते है। इसके रसायनों की कारण मस्तिष्क में एसिटाइल कोलीन नामक अति महत्वपूर्ण तंत्रिका संप्रेरक हॉर्मोन का स्त्राव बढ़ जाता है। यह हॉर्मोन मस्तिष्क स्थिति, उत्तेज़ना के लिए उत्तरदायी केन्द्रों को शांत करता है। इसके साथ ही शंखपुष्पी एसिटाइल कोलीन के मस्तिष्क की रक्त अवरोधी झिल्ली (ब्लड ब्रेन वैरियर) से छनकर रक्त में मिलने को रोकती है, जिससे यह तंत्रिका संप्रेरक हॉर्मोन अधिक समय तक मस्तिष्क में सक्रिय बना रहता है। www.allayurvedic.org

➡ शंखपुष्पी की सेवन विधि :

  • शंखपुष्पी का समग्र क्षुप अर्थात पंचांग ही एक साथ औषधीय उपयोग के काम आता है। इस पंचांग को सुखाकर चूर्ण या क्वाथ के रूप में अथवा ताजा अवस्था में स्वरस या कल्क के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इनकी सेवन की मात्रा इस प्रकार है।
  • शंखपुष्पी पंचांग चूर्ण – 3 से 6 ग्राम की मात्रा में दिन में दो या तीन बार।
  • शंखपुष्पी स्वरस – 20 से 45 मि ली दिन में दो या तीन बार।
  • शंखपुष्पी कल्क – 10 से 20 ग्राम दिन में दो या तीन बार।
  • इनके अतिरिक्त शंखपुष्पी से निर्मित ऐसे कई शास्त्रोक्त योग है, जिन्हें विभिन्न रोगों में उपयोग कराया जाता है। जैसे के शंखपुष्पी रसायन, सोमघृत, ब्रह्मा रसायन, अगस्त्य रसायन, वचाघृत, जीवनीय घृत, ब्रह्मघृत इत्यादि।