➡ सर्पगन्धा (Indian Snakeroot) : सामान्य नाम

  1. लैटिन नाम : Rauwolifa serpentina.
  2. family  : Apocynaceae. 
  3. हिन्दी  : छोटा चाँद ,धवल वरूआ, पागल बूटी 
  4. गुजरती : अमेल पोंदि। 
  5. मराठी :अड़कई सापसन । 

➡ सर्पगंधा का सामान्य परिचय : 

  • सर्पगंधा यह एक प्रकार की वनस्पती है। यह औषधीय गुणों से भरपूर होती है। सर्प के काटने पर अथवा किसी कीड़े के काटने पर, उस पर उपचार करने के लिए सर्पगंधा का इस्तेमाल मुख्य रूप से किया जाता है। सर्पगंधा का वानस्पतिक नाम रावोल्फिया सर्पेंटीना (Rauvolfia Serpentina) हैं।
  • सर्पदंश में सर्पगंधा की ताजी ताजी पत्तिंयो को पाँव के तलवे के नीचे लगाने से काफी आराम प्राप्त होता हैं। ऐसा भी कहा जाता हैं, कि यदि मानसिक रूप से पागल किसी व्यक्ति को सर्पगंधा की पत्तियाँ खिलाई जायें तो उसका पागलपन दूर हो जाता हैं। यही कारण हैं कि, भारत में सर्पगंधा को पागलपन की दवा के नाम से भी जाना जाता हैं। www.allayurvedic.org
  • सर्पगंधा के नामकरण को लेकर विभिन्न लोगों के भिन्न भिन्न मत हैं। कई लोगों का यह मानना हैं, कि इस वनस्पति का नाम सर्पगंधा इसलिए पडा क्योंकि सर्प इसकी गंध पाकर दूर भागने लगते हैं। तथा कई लोगों का यह मत हैं कि सर्पगंधा की जडें साँप की तरह लम्बी तथा टेढीमेढी हैं, इसलिए इस का यह नाम पडा पर वास्तव में इस पौधे का नाम सर्पगंधा इसलिए पडा हैं, क्योंकि प्राचीन काल में विशेष तौर पर इसका उपयोग सर्पदंश के उपचार में एक लाभकारी विषनाशक के रूप में किया जाता था।
  • इस पौधे का उपयोग विभिन्न प्रकार के विषों को निष्क्रिय करने के लिए किया जाता था। सर्पदंश के उपचार में यह अत्यंत ही बहुमूल्य औषधी थी, तथा कोबरा जैसे विषैले सर्प के विष को भी प्रभावहीन कर देती थी। सर्पगंधा का आंतरिक उपयोग ज्वर, हैजा तथा अतिसार के उपचार के लिए किया जाता था। इसकी पत्तियों के रस का उपयोग मोतियाबिंद के उपचार में भी किया जाता था।
  • हिमालय के तराई क्षेत्र में विशेषकर देहरादून शिवालिक पहाड़ी के क्षेत्र से लेकर आसाम तक बिहार महाराष्ट्र तमिलनाडु आदि प्रांतों में इसकी खेती भी की जाती है तथा स्वयं  भी  उत्पन्न होती है। इसका  क्षुप देखने में सुंदर तथा एक से 3 फुट ऊंचा होता हे। इसके पात्र हरे रंग के चमकीले 3 से 7 इंच का लंबे1.5से 2.5 इंच चौडे  भालाकार ,तीक्षणाग्र होते है। पत्र प्रत्येक गांठ पर 3 से 4की संख्या में चक्राकार रूप में होते हैं पुष्पा श्वेत या गुलाबी रंग के गुच्छों में होते हैं। आजकल छोटे मटर के समान जो कच्ची अवस्था में हरे तथा पकने पर बेंगनी काले रंग के हो जाते है। मोहन सर्प की तरह टेढ़ा-मेढ़ा लगभग 13 इंच तक लंबे अंगूठे के सामान मोटा तथा लंबे धारियों से युक्त होता है। मुलत्वक दूसर पीत वर्ण का तथा अंदर का काष्ठ श्वेताभ वर्ण का स्वाद में अति कड़वा तथा गंधहीन होता है। www.allayurvedic.org

➡ रासायनिक संगठन :

  • इसके मॉल में एक तेलीय राल और सर्पेन्टाइन्, सर्पेन्टिनाइन आदि अनेक क्षार  होते है।  
  1. गुण : रुक्ष ।
  2. रस : तिक्त। 
  3. वीर्य : उष्ण । 
  4. विपाक : कटु ।
  5. प्रभाव :  निंद्राजनन ।

➡ सर्पगन्धा का रोगो में प्रयोग : 

  • यह नींद को लाने वाला ज्वरनाशक गरबा से उत्तेजक एवं विष नाशक होता हे। अतिसार उदरशूल विषम ज्वर व प्रसूति के समय होने वाले उपद्रव में भी इसका उपयोग करते हैं सर्प विष में सर्पगंधा मूल को 1 से 2 तोला को जल में घिसकर पिलाते हैं तथा सर्पदंश स्थान पर इसका लेप  भी करते है । बिहार में इसे पागल  बूटी वे कहते है। बहुत से चिकित्सक इससे पागलों की सफल चिकित्सा करते है। आजकल यह है उच्च रक्तचाप (high blood pressure) वातिक उन्माद अनिंद्रा एवं अन्य मानसिक विकारों का शमन करने में सर्वोत्तम औषधि है रक्तचाप के अधिकता होने पर पहले केवल इसे ही प्रयोग करना चाहिए ।यदि 6 सप्ताह तक प्रयोग करने पर इससे लाभ नहीं मिले तब अन्य औषधीय इसके साथ मिलाकर देते हे। www.allayurvedic.org
  • प्रयोज्य अंग (औषधीय भाग) : मूल 
  • सेवन की मात्रा : 1 से 2 ग्राम 
  • आयुर्वेदीक स्टोर पर उपलब्ध दवाएँ (विशिष्ट योग) : सर्पगंधादि चूर्ण, सर्पगन्धा योग, सर्पगन्धा वटी ।

➡ सर्पगंधा में पाए जाने वाले विभिन्न प्रकार के औषधीय गुण निम्नलिखित हैं :

  1. सर्पगंधा पौधे की जडें अतिशय पौष्टिक, निद्राकर गर्भाशय उत्तेजक (Uterine stimulant pills) तथा विषहर होता हैं।
  2. पारंपारिक चिकित्सा पध्दति में सर्पगंधा की जडों का उपयोग ज्वर, अतिसार, अनिद्रा, हैजा आदि के उपचार में किया जाता है।
  3. सर्पगंधा वनस्पति की जडों का रस अथवा अर्क उच्चरक्तचाप (High Blood Pressure) की एक बहुमूल्य औषधि हैं।
  4. इसकी जडों का अर्क चेहरे पर उभरे हुए फोडे फुंसियों को दूर करने के उपचार में किया जाता है।
  5. गर्भवती महिलाओं के लिए सर्पगंधा के अर्क का बहुत ही महत्व हैं। इस पौधे को जडों का अर्क प्रसव पीडा के दौरान बच्चे के जन्म को सुलभ बनाने के लिए दिया जाता है। सर्पगंधा के अर्क को देने से बच्चेदानी के संकुचन को बढाने में काफी सहायता मिलती हैं।      www.allayurvedic.org
  6. सर्पगंधा की जडों के अर्क का उपयोग हिस्टीरिया तथा मिर्गी के उपचार में किया जाता है।
  7. घबराहट तथा पागलपन के उपचार में सर्पगंधा की जडों का प्रयोग किया जाता है।
  8. सर्पगंधा की पत्तियों का रस हमारे आँखों के लिए बहुत ही उपयोगी है। यदि हम सर्पगंधा की पत्तियों का रस नियमित रूप से अपनी आँखों मे डालें, तो हमारे आँखों की रोशनी को बढ़ाने में काफी सहायता प्राप्त होती हैं।
  9. साँप के काटने पर सर्पगंधा को जडों का पावडर मरीज को खाने को दिया जाता हैं, तथा यह पावडर प्रभावित क्षेत्र पर भी लगाया जाता हैं। साँप या किसी अन्य कीडे के काटने पर सर्पगंधा का उपयोग बडे पैमाने पर किया जाता हैं। यह एक बहुत ही बहुमूल्य विषनाशक हैं।
  10. सर्पगंधा हमारे मानसिक तनाव, चिंता तथा उत्सुकता को कम करने में बहुत ही सहायक हैं।   www.allayurvedic.org
  11. कब्ज जैसी बीमारीयों को दूर करने में सर्पगंधा का उपयोग काफी प्रभावशाली माना गया हैं।
  12. सर्पगंधा हमारे हृदय की बढती हुई गति को सामान्य करता हैं।