प्रदूषित वातावरण और दूषित जल व आहारके अधिक समय तक सेवन करने से आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) उत्पन्न होता है। आंत्रिक ज्वर को मियादी बुखार, मोतीझारा आदि अनेक नामों से संबोधित किया जाता है। आंत्रिक ज्वर से पीड़ित रोगी शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो जाता है। यदि समय पर उचित चिकित्सा न दी जाये तो रोगी की मृत्यु हो सकती है।

◼️विभिन्न नाम

• मियादी बुखार
• मोतीझारा
• टायफाइड।

◼️कारण:

  • आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) गंदा पानीपीने की वजह से और बाहर का भोजनकरने से फैलता है क्योंकि बाहर की ज्यादातर चीजें खुली हुई होती हैं, इन खुली हुई चीजों में मच्छर और मक्खियां बैठती हैं जो उनमें कीटाणु छोड़ देते हैं जिसकी वजह से यह बीमारी फैलती है। इस बीमारी के जीवाणु किसी रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंचकर उन्हें भी रोगी बनाते हैं। खासकर छोटे बच्चे और युवा इस रोग से पीड़ित होते हैं। जीवाणु शरीर के अन्दर पहुंचकर आंतों में जहर पैदा करके आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) को पैदा करते हैं। जीवाणुओं के जहर के असर से आंतों में जख्मपैदा हो जाते हैं। 
  • ऐसी हालत मे रोगी के शौच में खूनआने लगता है। अतिसार की स्थिति में रोगी की तबियत अधिक खराब होने की आशंका ज्यादा रहती है। यह बुखार, असमय खाना खाने, देश-विदेश में रुचि के विरुद्ध खाना, अजीर्णमें भोजन, उपवास, मौसम में परिवर्तन, विषैली चीजों का पेट में पहुंचना, अधिक मैथुन, अधिक चिन्ता, शोक, अधिक परिश्रम, धूपतथा आग में देर तक काम करना आदि के कारण हो जाता है।

◼️लक्षण:

➡️आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) में शरीर में विभिन्न अंगों में पीड़ा, सिरदर्द, कब्ज, बैचेनीऔर बुखार के कम-ज्यादा होने के लक्षण दिखाई देते हैं। बिस्तर पर अधिक समय तक लेटे रहने से कमर में दर्द भी होने लगता है। रोगी को रात में नींदभी नहीं आती है।
➡️पहले सप्ताह में बुखार 100 से 102 डिग्री तक होता है और दूसरे सप्ताह में शरीर का तापमान 103 से 105 डिग्री तक बढ़ जाता हैं। तीसरे सप्ताह में ज्वर ज्यादा बढ़ जाता है। ज्वर ज्यादा होने के साथ ही रोगी के पेट मे दर्द, सिर में दर्द, खांसीऔर प्यासअधिक लगती है।
➡️ रोगी को खड़े होने में, चलने में कठिनाई होती है। पांव लड़खड़ाते हैं और आंखों के आगे अंधेराछाने लगता है।
आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) में भोजन की लापरवाही या भूख न लगने से यदि अतिसार हो जाए तो रोगी की हालत बिगड़ जाती है। शरीर में कमजोरीआ जाने की वजह से रोगी मृत्यु की कगार पर पहुंच सकता है।
➡️आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) के दूसरे सप्ताह में रोगी की छातीऔर पेट पर छोटे-छोटे सफेद दाने निकल आते हैं। इन सफेद मोती जैसे दानों के कारण आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) को मोतीझारा भी कहते हैं यदि ज्वर खत्म हो जाने के बाद भी दानें पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाते तो रोगी को ज्यादा नुकसान पहुंच सकता है।
➡️शरीर में थकावट, बार-बार जम्भाई(नींद आने की उबकाइयां) आना, आंखों में जलन, भोजन में अरुचि, कभी गर्मी और कभी सर्दी लगना, जोड़ों में दर्द, आंखों में लाली, आंखेंफटी-फटी सी, अधमुन्दी या तिरछी, आंखें भीतर की ओर धंस जाना, कानों में दर्द, गले में कांटे-से लगना, खांसी, तेजी से सांसका चलना, बेहोशीकी हालत, इधर-उधर की बाते बकना, जीभमें खुरदरापन, सिर में तेजी से दर्द होना, बार-बार प्यास का लगना, छाती में दर्दहोना, पसीनाबहुत कम आना, मल-मूत्रका देर से आना तथा थोड़ी मात्रा में निकलना, शरीर में बहुत ज्यादा कमजोरी, शरीर पर गोल व लाल-लाल चकत्ते-से बन जाना, रोगी के मुख से बहुत कम आवाज़ निकलना, कान, नाकआदि का पक जाना, पेट का फूलना,दिन में गहरी नींदका आना, रात में नींद न आना, रोगी द्वारा उलटी-सीधी हरकतें करना, आंखों के नीचे काले गड्डे पड़नातथा बार-बार थूकना आदि आंत्रिक बुखार (टायफाइड) के लक्षण माने जाते हैं।

◼️भोजन और परहेज :-

➡️आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) के रोगी को बिना मसाले का भोजन, मूंगकी दाल, हरी सब्जियां देनी चाहिए। आंत्रिक ज्वर से पीड़ित रोगी पानी को उबालकर प्रयोग कर सकते हैं।
➡️आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) के रोगी को बाहर का भोजन कभी नहीं करना चाहिए और उसे तली हुई चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। ठंड़ा पानी या ठंड़ी चीजों का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

◼️आंत्रिक ज्वर (टायफाइड) का विभिन्न औषधियों से उपचार:

✔️मुनक्का
✔️गिलोय
✔️अजमोद
✔️ काली तुलसी
✔️ लौकी
✔️ सरसों का तेल:
✔️. मूंग की दाल
✔️ चित्रक