नमस्कार दोस्तों एकबार फिर सेआपकाAll Ayurvedic में स्वागत है आज हम आपको ऐसे चमत्कारी पौधे की छाल के बारे में बताएँगे जिसे कायफल कहते है, औषधियों के लिए लाल कायफल अधिक उपयोगी होता है। पेड़ की छाल को ही कायफल कहते है और यह ही औषधियों के रूप में प्रयोग की जाती है। गठिया, कमर दर्द, जोड़ो का दर्द, और साइटिका
कायफल का रस स्वाद में कडुवा, तीखा व कषैला होता है। इसकी प्रकृति गर्म होती है। इसका फल पकने के बाद कडुवा हो जाता है। कायफल वात व कफ से उत्पन्न रोगों को शांत करता है और वात के कारण उत्पन्न दर्द को खत्म करता है। इसका उपयोग सिर दर्द, सर्दी–जुकाम, मूर्च्छा(बेहोशी) एवं मिर्गी आदि के लिए किया जाता है। यह सांस रोग व खांसी में फायदेमंद है। यह गठिया, कमर दर्द, जोड़ो का दर्द, और साइटिका को मिटाता है।
कायफल के 20 अद्भुत फ़ायदे :
1. साइटिका, जोड़ों के दर्द, गठिया, घुटनो के दर्द, कंधे की जकड़न, गर्दन का दर्द (सर्वाइकल स्पोंडोलाइटिस), कमर दर्द आदि के लिए ये तेल अद्भुत रिजल्ट देता हैं। दर्द भगाएँ चुटकी में एक बार जरूर अपनाएँ। ये चिकित्सा आयुर्वेद विशेषज्ञ “श्री श्याम सुंदर” जी ने अपनी पुस्तक रसायनसार मे लिखी हैं। मैं इस तेल को पिछले 5 सालों से बना रहा हूँ और प्रयोग कर रहा हूँ।
कोई भी तेल जैसे महानारायण तेल, आयोडेक्स, मूव, वोलीनी आदि इसके समान प्रभावशाली नहीं है। एक बार आप इसे जरूर बनाए।
आवश्यक सामग्री :
- कायफल = 250 ग्राम,
- तेल (सरसों या तिल का) = 500 ग्राम,
- दालचीनी = 25 ग्राम
- कपूर = 5 टिकिया
• कायफल- “यह एक पेड़ की छाल है” जो देखने मे गहरे लाल रंग की खुरदरी लगभग 2 इंच के टुकड़ों मे मिलती है। ये सभी आयुर्वेदिक जड़ी बूटी बेचने वाली दुकानों पर कायफल के नाम से मिलती है। इसे लाकर कूट कर बारीक पीस लेना चाहिए। जितना महीन/ बारीक पीसोगे उतना ही अधिक गुणकारी होगा।
कायफल का तेल बनाने की विधि :
- एक लोहे/ पीतल/एल्यूमिनियम की कड़ाही मे तेल गरम करें। जब तेल गरम हो जाए तब थोड़ा थोड़ा करके कायफल का चूर्ण डालते जाएँ। आग धीमी रखें। फिर इसमें दालचीनी का पाउडर डालें। जब सारा चूर्ण खत्म हो जाए तब कड़ाही के नीचे से आग बंद कर दे। एक कपड़े मे से तेल छान ले। तेल ठंडा हो जाए तब कपड़े को निचोड़ लें। यह तेल हल्का गरम कर फिर उसमें 5 कपूर की टिकिया मिला दे या तेल में अच्छे से कपूर मिक्स हो जाये इसलिए इसका पाउडर बना कर डाले तो ठीक होगा। इस तेल को एक बोतल मे रख ले। कुछ दिन मे तेल मे से लाल रंग नीचे बैठ जाएगा। उसके बाद उसे दूसरी शीशी मे डाल ले।
प्रयोग विधि :
- अधिक गुणकारी बनाने के लिए इस साफ तेल मे 25 ग्राम दालचीनी का मोटा चूर्ण डाल दे। जो कायफल का चूर्ण तेल छानने के बाद बच जाए उसी को हल्का गरम करके उसी से सेके। उसे फेकने की जरूरत नहीं। हर रोज उसी से सेके।
- जहां पर भी दर्द हो इसे हल्का गरम करके धीरे धीरे मालिश करें। मालिश करते समय हाथ का दबाव कम रखें। उसके बाद सेक जरूर करे।
- बिना सेक के लाभ कम होता है। मालिस करने से पहले पानी पी ले। मालिश और सेक के 2 घंटे बाद तक ठंडा पानी न पिए।
2. आग से जल जाने पर :
- शरीर जल जाने पर कायफल के पेड़ की छाल का रस निकालकर लेप करने से जलन दूर होती है और छाले नहीं पड़ते।
3. मिर्गी :
- कायफल को सूंघने से मिर्गी के कारण आने वाले दौरे समाप्त होते हैं।
- कायफल, नकछिकनी, कटेरी के सूखे फल लगभग 6-6 ग्राम की मात्रा और 40 ग्राम तम्बाकू को बारीक पीसकर 2 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन मिर्गी के रोगी को सुंघाने से मिर्गी के दौरे दूर होते हैं।
- कायफल को पानी के साथ घिसकर मिर्गी के रोग से पीड़ित रोगी को पिलाएं। इससे मिर्गी का रोग ठीक होता है।
- कायफल, तिल का तेल और करज्जवा को मिलाकर उन्माद के रोगी की नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
4. मधुमेह रोग :
- यदि मधुमेह के रोगी की शरीर से अधिक पसीना आता हो तो उसे कायफल का चूर्ण शरीर पर लगाना चाहिए। इससे पसीने आना कम होता है।
5. पागलपन :
- कायफल, तिल का तेल और करज्जवा को मिलाकर उन्माद के रोगी की नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
6. एड़ियों का फटना :
- कायफल को पीसकर लेप करने से फटी हुई `बिवाई´ (फटी एड़िया) ठीक हो जाती हैं।
7. दांतों के रोग :
- कायफल के पेड़ की छाल का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन कुल्ला करने से दांतों का दर्द ठीक होता है। इससे दांत मजबूत होते हैं।
8. सर्दी लगना :
- कायफल का बारीक चूर्ण छाती, पेट व हाथ-पैरों पर मलने से शरीर में गर्मी बढ़कर ठंड दूर होती है।
9. कान का दर्द :
- कायफल को तेल में पकाकर तेल को कान में 1 से 2 बूंद डालने से दर्द ठीक होता है।
10. बुखार :
- कायफल का 1 ग्राम चूर्ण रोगी को बुखार आने से पहले पानी के साथ खिलाने से बुखार नहीं आता है।
11. पायरिया :
- सिरके में कायफल घिसकर मसूढ़ों पर लगातार 5-5 मिनट तक दिन में 2 बार मलने से दांतों के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पायरिया ठीक होता है।
12. कान का बहना :
- कायफल को तेल में पकाकर कुछ बूंदे दिन में 3 से 4 बार कान में डालने से कान का बहना ठीक होता है। तेल डालने से पहले कान को रुई से अच्छी तरह साफ कर लें।
13. हिचकी का रोग :
- कायफल, हरड़, बच, धनिया, रोहिष, भारंगी, नागरमोथा, काकड़ासिंगी, पित्तपापड़ा, सोंठ व देवदारू 1-1 ग्राम की मात्रा में लेकर आठ गुना पानी में पकाएं और पानी एक चौथाई शेष रहने पर छानकर रोगी को पिलाएं। इसे हर प्रकार की हिचकी से राहत मिलती है।
14. दमा, श्वास रोग :
- कायफल के पेड़ की छाल के रस में चीनी मिलाकर रोगी को पीना चाहिए। इससे श्वास व दमा रोग नष्ट होता है।
15. बवासीर :
- कायफल के महीन चूर्ण में हींग, कपूर और घी मिलाकर लेप बना लें और यह लेप बवासीर के मस्सों पर लगाएं। इससे मस्से सूखकर झड़ जाते हैं और बवासीर ठीक होता है।
16. जुकाम, नजला, नया जुकाम :
- कायफल को नाक से सूंघने से जुकाम ठीक होता है।
- कायफल का बारीक चूर्ण रूमाल में लपेटकर बार-बार सूंघने से छींके आती है और सिर हल्का होता है।
- कायफल और सोंठ को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीने से जुकाम ठीक होता है।