ये मार्केट मे आया हुआ नया ट्रेंड है, इसे कहते हैं फिजेट स्पिनर। इसे बेचने के लिए वेबसाइट दावा कर रही हैं की ये चिंता मिटा देता है और इससे एकाग्रता बढ़ती है लेकिन आप इस धोखे मे मत आना पहले पूरी बात जान लीजिए। इसकी अनॉफिशियल आविष्कारक कैथरीन हेटिंगर हैं। अनॉफिशियल इसलिए कि उनके पास इसका पेटेंट नहीं है. हेटिंगर ने 1993 में इस डिवाइस का पेटेंट लेने के लिए अप्लीकेशन डाला था। पेटेंट मिल भी गया था। लेकिन 2005 में वापस चला गया क्योंकि उन्हें कोई कमर्शियल पार्टनर नहीं मिला था।
सबसे पहले तो इस फिजेट स्पिनर से कोई चिंता या स्ट्रेस कम नही होता है, इसके उपर ना तो कोई रिसर्च हुई है ना ही किसी भी डॉक्टर ने इसकी पुष्टि की है, ये सिर्फ़ इसे बेचने के लिए किया गया दावा है।
विदेश के स्कूल मे फिजेट स्पिनर पर बैन लगा दिया गया है, उनका कहना है की इससे एकाग्रता बढ़ती नही बल्कि कम होती है। विज्ञान की मानें तो एकाग्रता के लिए शारीरिक हलचल और खेल कूद की ज़रूरत होती है, किसी स्पिनर की नही। इस फिजेट स्पिनर को बेचने के लिए जीतने भी दावे किए जा रहे हैं, वो सब बे बुनियाद हैं और उनका कोई भी प्रमाण नही है।
ये इलाज वाला मसला अभी किसी साइंसटिफिक रिसर्च में प्रूव नहीं हुआ है। न ही किसी डॉक्टर ने पर्चे में लिखा है. आटिज्म यानी अपने में खोए रहने वाली बीमारी, ADHD यानी Attention Deficit Hyperactivity Disorder यानी एकाग्रता की समस्या और स्ट्रेस यानी चिंता से निपटने में ये चकरघिन्नी कितनी कामयाब होती है, इसका अभी कुछ पता नहीं है. यानी ये ऑनलाइन बिजनेस वाली वेबसाइट्स पब्लिक को बेवकूफ बना रही हैं।
मेडिकल रिसर्च ये तो कहती है कि बच्चों की एकाग्रता बढ़ाने के लिए फिजिकल मूवमेंट जरूरी है, लेकिन ये दुपुन्नी भर की चीज फिजिकल मूवमेंट का जरिया नहीं है. इससे सिर्फ एक उंगली हिलती है. जो न तो शारीरिक और न मानसिक रूप से बच्चे की हेल्प कर सकता है।
फ्लोरिडा के एक साइकॉलजिस्ट मार्क रपोर्ट ने वॉक्स मैगजीन को बताया था कि अभी तक फिजेट स्पिनर पर कोई रिसर्च नहीं की गई है और इसके असर के बारे में अब तक साइंटिस्ट अनजान हैं. उनका कहना था कि इसका ज्यादा इस्तेमाल फायदे की जगह नुकसान कर सकता है।