इन्द्रायण (Colocynth) :  

  • नमस्कार दोस्तों एकबार फिर से आपका All Ayurvedic में स्वागत है आज हम आपको इन्द्रायण के 51 फायदों के बारे मेंं बताएगें। इन्द्रायण मुख्य रूप से 3 प्रकार की होती है। पहली छोटी इन्द्रायण, दूसरी बड़ी इन्द्रायण और तीसरी लाल इन्द्रायण होती है। इन्द्रायण एक लता होती है जो पूरे मरू भूमी या बलुई क्षेत्रों में पायी जाती है, भारत में यह खेतों में उगाई जाती है।
  • इसे हिन्दी में इन्द्रायण तथा अंग्रेजी कोलोसिनथ (Colocynth) कहते है। इसके अन्य भाषाओं में निम्न नाम है संस्कृत में इन्द्रवारुणी, गुजराती में इन्द्रावण, मराठी में इन्द्रायण वइन्द्रफ, बंगाली में राखालशा, अरबी में इंजल व अलकम, फारसी में खरबुज-ए-तल्ख,  तेलगू में एतिपुच्छा आदि नामो से जानी जाती है।


    इन्द्रायण (Colocynth) के 3 प्रकार – छोटी, बड़ी और लाल इन्द्रायण :

    1.  छोटी इन्द्रायण : छोटी इन्द्रायण को संस्कृत में एन्द्री, चित्रा, गावाक्षी, इन्द्रवारुणी आदि नाम से जाना जाता है। छोटी इन्द्रायण की बेलों के पत्ते खण्डित तथा इसकी डंठलों में रोम (छेद) होते हैं। पत्र वृन्त के पास में इसका फूल तथा एक लम्बा सूत्र निकलता है। इसी सूत्र की सहायता से इसकी बेले पेड़ों में लिपटकर आसानी से पूरे पेड़ों में फैल जाती हैं। छोटी इन्द्रायण के फूल घंटे के आकार के गोल, पीले रंग के होते हैं। एकलिंगी नर और मादा फूल अलग-अलग होते हैं।
    2. बड़ी इन्द्रायण : बड़ी इन्द्रायण को संस्कृत में महाफला और विशाला कहते हैं। बड़ी इन्द्रायण की लताएं कुछ ज्यादा बड़ी होती हैं, इसके पत्ते तरबूज के पत्तों के जैसे कई भागों में बटे हुए होते हैं। बड़ी इन्द्रायण के फूल पीले रंग के होते हैं। बड़ी इन्द्रायण के फल 4 से 12 सेमी गोल और लंबे होते हैं। बड़ी इन्द्रायण का छोटा फल रोमों से ढका रहता है। बड़ी इन्द्रायण के कच्चे फलों में सफेद रंग की धारिया प्रतीत होती हैं तथा फल के पकने पर ये धारिया स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ने लगती हैं और फल का रंग नीला हरा हो जाता है। बड़ी इन्द्रायण के फल की मज्जा (बीच का भाग) लालरंग का तथा बीज पीले और काले रंग के होते हैं।
    3. लाल इन्द्रायण : लाल इन्द्रायण बेल बड़ी इन्द्रायण के ही समान होती है लेकिन इसके फूल सफेद रंग के तथा फल पकने पर नींबू के समान लाल रंग के हो जाते हैं।


    इन्द्रायण (Colocynth) का औषधि के रूप में सेवन करने की मात्रा :

    • इन्द्रायण के फलों का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लेकर लगभग आधा ग्राम तक तथा जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम तक लेना चाहिए।

    इन्द्रायण (Colocynth)  के 51 अद्भुत फायदे : 

    1. गंजो के सिर पर नए बाल उगाए : बाल की समस्या है तो इंद्रायण के पत्तों को कूटकर 50 ग्राम रस निकाल लो और 50 ग्राम तिल के तेल के अंदर पकाओ जब पूरा रस उड़ जाए। फिर इस तेल से रात को सिर पर मालिश करो, सिर में बाल उड़ गए है तो वापस आ जाएंगे और झड़ना बंद हो जाएगा। ये कारगर रामबाण उपाय है। यह करके अवश्य देखे।
    2. सिर दर्द : इन्द्रायण के फल के रस या जड़ की छाल को तिल के तेल में उबालकर तेल को मस्तक (माथे) पर लेप करने से मस्तक पीड़ा या बार-बार होने वाली मस्तक पीड़ा मिटती है।
    3. इन्द्रायण के फलों का रस या जड़ की छाल के काढ़े के तेल को पकाकर, छानकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम उपयोग करने से आधाशीशी (आधे सिर का दर्द), सिर दर्द, पीनस (पुराना जुकाम), कान दर्द और अर्धांगशूल दूर हो जाते हैं।
    4. श्वास : इन्द्रायण के फलों को चिलम में रखकर पीने से श्वास (सांस) का रोग मिटता है।
    5. सुजाक : त्रिफला, हल्दी और लाल इन्द्रायण की जड़ तीनों का क्वाथ (काढ़ा) बनाकर 30 मिलीलीटर दिन में दो बार पीने से सुजाक में लाभ होता है।
    6. बिद्रधि (फुन्सियां) : लाल इन्द्रायण की जड़ और बड़ी इन्द्रायण की जड़ दोनों को बराबर लेकर लेप बनाकर लगाने से दुष्ट विद्रधि नष्ट होती है।
    7. प्लेग (चूहों से होने वाला रोग) : इन्द्रायण की जड़ की गांठ को (इसकी जड़ में गांठे होती हैं) यथा सम्भव सबसे निचली या 7 वें नम्बर की लें, इसे ठण्डे पानी में घिसकर प्लेग की गांठ पर दिन में 2 बार लगायें और लगभग 2 से 3 ग्राम तक की खुराक में इसे पिलाने से गांठ एकदम बैठने लगती है और दस्त के रास्ते से प्लेग का जहर निकल जाता है और रोगी की मुर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है।
    8. बवासीर के मस्से : इन्द्रायण के बीजों को पानी में पीसकर लेप बनाकर बवासीर के मस्सों पर दिन में 2 बार कुछ हप्ते तक लगाने से लाभ होता है।
    9. ग्रन्थि शोथ : इन्द्रायण के पत्तों का लेप गांठ पर बांधने से वह बैठ जाती है। 
    10. मलेरिया का बुखार : इन्द्रयण की भूनी हुई चूर्ण को 1 से 4 ग्राम को शहद के साथ सुबह और शाम सेवन करने मलेरिया और शीत बुखार ठीक हो जाता है। इसका काढ़ा गुर्च (गिलोय) के साथ बनाकर देने से लाभ होता हैं।
    11. कब्ज : इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1-3 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम सोंठ और गुड़ के साथ देने से कब्ज दूर होती है। ध्यान रहे कि मात्रा अधिक न हो जाये क्योंकि ऐसा होने पर वह जह़र बन जाता है।
    12. इन्द्रायण के फलों को घिसकर नाभि पर लगाएं और इसकी जड़ का चूर्ण 2 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सोते समय लें, कब्ज में लाभ होगा।
    13. बहरापन (कान से कम सुनाई देना) : इन्द्रायण के फल से बने तेल को रोजाना 2-3 बार कान में डाला जाये तो बहरापन दूर हो जाता है। 
    14. कान के रोग : इन्द्रायण के कच्चे फल को तिल के तेल में डालकर पका लें। फिर इसे छानकर एक शीशी में भर लें। इस तेल की 1-2 बूंदें सुबह और शाम कान में डालने से कान के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
    15. अल्सर : इन्द्रायण, शंखाहुली, दन्ती और नेली को गौमूत्र (गाय का पेशाब) के साथ पीसकर सुबह के समय लगभग 25 दिन तक सेवन करना चाहिए।
    16. पेट का बढ़ा होना : इन्द्रायण की जड़ का पिसा हुआ चूर्ण 120 मिलीग्राम से लेकर 480 मिलीग्राम की मात्रा में सोंठ और गुड़ के साथ सुबह और शाम लेने से जलोदर (पेट में पानी का भरना), लीवर (यकृत) या प्लीहा (तिल्ली) की बढ़ोत्तरी के कारण पेट के प्रसारण यानी फैलाव को रुकता है।
    17. पेट के कीड़े : इन्द्रायण की जड़ को पानी में अच्छी तरह घिसकर गुदा (मल निकले के द्वार) पर बाहर और अन्दर लगाने से लाभ होता है।
    18. फोड़ा : फोड़े पर इन्द्रायण की जड़ और विशाला (महाकाल, इन्द्रायण की एक भेद) को मिलाकर पत्थर पर पानी में घिसकर लेप की तरह फोड़े पर लगाने से सूजन और दर्द ठीक हो जाता है।
    19. पृष्टाबुर्द (गर्दन के पिछले हिस्से में से मवाद निकलना) : इन्द्रायण और विशाला की जड़ को ठण्डे पानी के साथ पीसकर पृष्टाबुर्द (गर्दन के पिछले हिस्से में से मवाद निकलना) पर गाढ़ा-गाढ़ा लगाने से पृष्टाबुर्द की सूजन और दर्द दूर हो जाता है।
    20. बालों को काला करना : इन्द्रायण के बीजों का तेल नारियल के तेल के साथ बराबर मात्रा में लेकर बालों पर लगाने से बाल काले हो जाते हैं।
    21. इन्द्रायण की जड़ के 3 से 5 ग्राम चूर्ण को गाय के दूध के साथ सेवन करने से बाल काले हो जाते हैं। परन्तु इसके परहेज में केवल दूध ही पीना चाहिए।
    22. सिर के बाल पूरी तरह से साफ कराके इन्द्रायण के बीजों का तेल निकालकर लगाने से सिर में काले बाल उगते हैं।
    23. इद्रायण के बीजों का तेल लगाने से सफेद बाल काले हो जाते हैं।
    24. बहरापन (कान से न सुनाई देना) : इन्द्रायण के पके हुए फल को या उसके छिलके को तेल में उबालकर और छानकर पीने से बहरापन दूर होता है।
    25. दांत के कीड़े : इसके पके हुए फल की धूनी दान्तों में देने से दांत के कीड़े मर जाते हैं।
    26. अपस्मार (मिर्गी) : इन्द्रायण की जड़ के चूर्ण को नस्य (नाक में डालने से) दिन में 3 बार लेने से अपस्मार (मिर्गी) रोग दूर हो जाता है। 
    27. कास (खांसी) : इन्द्रायण के फल में छेद करके उसमें कालीमिर्च भरकर छेद को बंद करके धूप में सूखने के लिए रख दें या गर्म राख में कुछ देर तक पड़ा रहने दें, फिर काली मिर्च के दानों को रोजाना शहद तथा पीपल के साथ एक सप्ताह तक सेवन करने से कास (खांसी) के रोग में लाभ होता है।
    28. पेट दर्द : इन्द्रायण का मुरब्बा खाने से पेट के रोग दूर होते हैं।
    29. इन्द्रायण के फल में काला नमक और अजवायन भरकर धूप में सुखा लें, इस अजवायन की गर्म पानी के साथ फंकी लेने से दस्त के समय होने वाला दर्द दूर हो जाता है।
    30. विसूचिका : विसूचिका (हैजा) के रोगी को इन्द्रायण के ताजे फल के 5 ग्राम गूदे को गर्म पानी के साथ या इसके 2 से 5 ग्राम सूखे गूदे को अजवायन के साथ देना चाहिए।
    31. मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन) : इन्द्रायण की जड़ को पानी के साथ पीसकर और छानकर 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में पीने से पेशाब करते समय का दर्द और जलन दूर हो जाती है।
    32. 10 से 20 ग्राम लाल इन्द्रायण की जड़, हल्दी, हरड़ की छाल, बहेड़ा और आंवला को 160 मिलीलीटर पानी में उबालकर इसका चौथाई हिस्सा बाकी रह जाने पर काढ़ा बनाकर उसे शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में दर्द और जलन) का रोग समाप्त हो जाता है।
    33. मासिक-धर्म की रुकावट : मासिक-धर्म के रुक जाने पर 3 ग्राम इन्द्रवारूणी के बीज और 5 दाने कालीमिर्च को एक साथ पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर रोगी को पिलाने से रुका हुआ मासिक धर्म दुबारा शुरू हो जाता है।
    34. आंतों के कीडे : इन्द्रायण के फल के गूदे को गर्म करके पेट में बांधने से आंतों के सभी प्रकार के कीड़े मर जाते हैं।
    35. विरेचन (दस्त लाने वाला) : इन्द्रायण की फल मज्जा को पानी में उबालकर और छानकर गाढ़ा करके छोटी-2 चने के आकार की गोलियां गोलियां बना लेते हैं। इसकी 1-2 गोली ठण्डे दूध से लेने से सुबह साफ दस्त शुरू हो जाते हैं।
    36. जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) : इन्द्रायण के फल का गूदा तथा बीजों से खाली करके इसके छिलके की प्याली में बकरी का दूध भरकर पूरी रात भर के लिए रख दें। सुबह होने पर इस दूध में थोड़ी-सी चीनी मिलाकर रोगी को कुछ दिनों तक पिलाने से जलोदर मिट जाता है। इन्द्रायण की जड़ का काढ़ा और फल का गूदा खिलाना भी लाभदायक है, परन्तु ये तेज औषधि है। 
    37. इन्द्रायण को लेने से लीवर (यकृत) की वृद्धि के कारण पेट का बड़ा हो जाने की बीमारी में लाभ होगा।
    38. इन्द्रायण की जड़ की छाल के चूर्ण में सांभर नमक मिलाकर खाने से जलोदर समाप्त हो जाता है।
    39. सूजन : इन्द्रायण की जड़ों को सिरके में पीसकर गर्म करके शोथयुक्त (सूजन वाली जगह) स्थान पर लगाने से सूजन मिट जाती है।
    40. शरीर में सूजन होने पर इन्द्रायण की जड़ को सिरके में पीसकर लेप की तरह से शरीर पर लगाने से सूजन दूर हो जाती है।
    41. इन्द्रायण को बारीक पीसकर इसका चूर्ण बना लें। 200 मिलीलीटर पानी में 50 ग्राम धनिये को मिलाकर काढ़ा बना लें। इसके बाद इन्द्रायण के चूर्ण को इस काढ़े में मिलाकर शरीर पर लेप की तरह लगाने से सूजन खत्म हो जाती है।
    42. संधिगत वायु (घुटनों वायु का प्रकोप) : इन्द्रायण की जड़ और पीपल के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर गुड़ में मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से संधिगत वायु दूर होती है।
    43. 500 मिलीलीटर इन्द्रायण के गूदे के रस में 10 ग्राम हल्दी, काला नमक, बड़े हुत्लीना की छाल डालकर बारीक पीस लें, जब पानी सूख जाए तो चौथाई-चौथाई ग्राम की गोलियां बना लें। एक-एक गोली सुबह-शाम दूध के साथ देने से सूजन तथा दर्द थोड़े ही दिनों में अच्छा हो जाता है।
    44. गर्भधारण (गर्भ ठहराने के लिए) : इन्द्रायण की जड़ों को बेल पत्रों के साथ पीसकर 10-20 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम पिलाने से स्त्री गर्भधारण करती है।
    45. बिच्छू विष : इन्द्रायण के फल का 6 ग्राम गूदा खाने से बिच्छू का (विष) जहर उतरता है।
    46. सर्पदंश (सांप के काटने) पर : 3 ग्राम बड़ी इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण पान के पत्ते में रखकर खाने से सर्पदंश में लाभ मिलता है। 
    47. बच्चों के डिब्बा (पसली के चलने पर) : बच्चों के डिब्बा रोग (पसली चलना) में इसकी जड़ के 1 ग्राम चूर्ण में 250 मिलीग्राम सेंधानमक मिलाकर गर्म पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
    48. कान के घाव : लाल इन्द्रायण के फल को पीसकर नारियल के तेल के साथ गर्म करके कान के अन्दर के जख्म पर लगाने से जख्म साफ होकर भर जाता है।
    49. कामला : कामला में इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 1-2 माशा गुड़ के साथ दें।
    50. उन्माद : उन्माद में इन्द्रायण के फल का गूदा 1-3 माशा गोमूत्र के साथ दें।
    51. वातरोग : वातरोग, संधिवात, अर्दित और जलोदर में इन्द्रायण की जड़ 1 माशा, पिप्पली-चूर्ण 1 माशा, गुड़ 3 माशा मिलाकर दें।

    हानिकारक प्रभाव : 

    • इन्द्रायण का सेवन बड़ी ही सावधानी से करना चाहिए। क्योंकि इसके ज्यादा और अकेले सेवन करने से पेट में मरोड़ पैदा होता है और शरीर में जहर के जैसे लक्षण पैदा होते हैं।
    • नोट : गर्भवती स्त्रियों, बच्चों एवं कमजोर व्यक्तियों को इसका सेवन यथासम्भव नहीं करना चाहिए अथवा सतर्कता से करना चाहिए।