तिल (Sesame) :
तिलस्नायीतिलोद्वर्त्तीतिलहोमीतिलोदकी।तिलभुक्तिलदाताचषट्तिला:पापनाशना:॥
अर्थात् तिल मिश्रित जल से स्नान, तिल के तेल द्वारा शरीर में मालिश, तिल से ही यज्ञ में आहुति, तिल मिश्रित जल का पान, तिल का भोजन इनके प्रयोग से मकर संक्रांति का पुण्य फल प्राप्त होता है और पाप नष्ट हो जाते हैं।
तिल के प्रकार, उसमें उपस्थित पोषक तत्व और गुण :
- तिल तीन प्रकार के होते हैं – काले, सफेद और लाल। लाल तिल का प्रयोग कम किया जाता है। काले तिलों का प्रयोग भारतीय समाज में पूजा पाठ में होता आया है। और काले तिल ही सेहत के लिए कारगर होते हैं। भारतीय खानपान में तिलों का बहुत महत्व है। सर्दियों के मौसम में तिल खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है और शरीर सक्रिय रहता है। तिलों में कई प्रकार के प्रोटीन, कैल्शियम, बी काम्लेमिक्स और कार्बोहाइट्रेड आदि तत्वन पाये जाते हैं। तिल में मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड (mono-unsaturated fatty acid) होता है जो शरीर से बैड कोलेस्ट्रोल को कम करके गुड कोलेस्ट्रोल यानि एच.डी.एल. (HDL) को बढ़ाने में मदद करता है। यह हृदय रोग, दिल का दौरा और धमनीकलाकाठिन्य (atherosclerosis) के संभावना को कम करता है। तिलों का सेवन करने से तनाव दूर होता है और मानसिक दुर्बलता नही होती। प्राचीन समय से खूबसूरती बनाये रखने के लिए तिलों का प्रयोग किया जाता रहा है। तिलों का तेल भी बहुत फायदेमंद होता है। आइए हम आपको तिलों के औषधीय गुणों के बारे में बताते हैं।
- तिलों में पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होता है। और इसमें विटामिन बी भी पाया जाता है। कफ जैसी बीमारी को दूर करने में तिल का सेवन करना फायदेमंद है। तिलों के सेवन से भूख बढ़ती है। और यह आपके नर्वस सिस्टम को बल देता है। यह वात, पित्त और कफ को नष्ट करता है। तिलों का तेल शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद है। क्योंकी यह एक आक्सीडेंट है। तिल के तेल से शरीर में मालिश करने से शरीर में बुढ़ापा जल्दी नहीं आता। इसकी मालिश करने से थकावट भी दूर होती है। यह बालों को काला, घना और मजबूत बनाता है। यह त्वचा को सनबर्न से मुक्ति दिलाता है। सर्दियों में तिल के तेल को त्वचा पर लगाने से त्वचा का रूखापन दूर होता है। और चेहरे में कांती आती है। आइए जानते है All Ayurvedic के माध्यम से सर्दियों में तिल खाने से होने वाले 80 फ़ायदों के बारे में…
तिल के 80 चमत्कारी फायदे :
- अलीबाबा चालीस चोर की कहानी में सिमसिम शब्द का प्रयोग तिल के लिये ही किया गया है। यही सिमसिम यूरोप तक पहुँचते पहुँचते बिगड़कर अंग्रेजी सिसेम हो गया।
- कैंसर : तिल में सेसमीन नाम का एन्टीऑक्सिडेंट होता है जो कैंसर के कोशिकाओं को बढ़ने से रोकने के साथ-साथ है और उसके जीवित रहने वाले रसायन के उत्पादन को भी रोकने में मदद करता है। यह फेफड़ों का कैंसर, पेट के कैंसर, ल्यूकेमिया, प्रोस्टेट कैंसर, स्तन कैंसर और अग्नाशय के कैंसर के प्रभाव को कम करने में बहुत मदद करता है।
- तनाव : इसमें नियासिन नाम का विटामिन होता है जो तनाव और अवसाद को कम करने में मदद करता है।
- हृदय : तिल में ज़रूरी मिनरल जैसे कैल्सियम, आयरन, मैग्नेशियम, जिन्क, और सेलेनियम होता है जो हृदय के मांसपेशियों को सुचारू रूप से काम करने में मदद करता है और हृदय को नियमित अंतराल में धड़कने में मदद करता है।
- शिशु की हड्डियां : तिलों में डायटरी प्रोटीन और एमिनो एसिड होता है जो बच्चों के हड्डियों के विकसित होने में और मजबूती प्रदान करने में मदद करता है। उदाहरणस्वरूप 100ग्राम तिलों में लगभग 18 ग्राम प्रोटीन होता है, जो बच्चों के विकास के लिए बहुत ज़रूरी होता है।
- गर्भवती महिला और भ्रूण को स्वस्थ रखने में मदद करता है- तिलों में फोलिक एसिड होता है जो गर्भवती महिला और भ्रूण के विकास और स्वस्थ रखने में मदद करता है।
- अध्ययन के अनुसार तिल के तेल से शिशुओं को मालिश करने पर उनकी मांसपेशियाँ सख्त होती है साथ ही उनका अच्छा विकास होता है। आयुर्वेद के अनुसार इस तेल से मालिश करने पर शिशु आराम से सोते हैं।
- अस्थि : सुषिरता से लड़ने में मदद करता है- तिल में जिन्क और कैल्सियम होता है जो अस्थि-सुषिरता से संभावना को कम करने में मदद करता है।
- मधुमेह : डिपार्टमेंट ऑफ बायोथेक्सनॉलॉजी विनायक मिशन यूनवर्सिटी, तमिलनाडु के अध्ययन के अनुसार यह उच्च रक्तचाप को कम करने के साथ-साथ इसका एन्टी ग्लिसेमिक प्रभाव रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को 36% कम करने में मदद करता है जब यह मधुमेह विरोधी दवा ग्लिबेक्लेमाइड से मिलकर काम करता है। इसलिए टाइप-2 मधुमेह रोगी के लिए यह मददगार साबित होता है।
- ग-र्भाशय की पीड़ा : तिलों को बारीक पीसकर तिल के ही तेल में मिला किंचित् गर्म करके नाभि के भाग में धीरे धीरे लेप करने या मलने (मर्दन करने) से शीत जन्यपीड़ा शान्त हो जाती है।
- प्र-मेह : तिल तथा अजवायन को दो एक के अनुपात में मिलाकर पीस लें और समान मात्रा में मिश्री मिलाकर सेवन करवायें।
- शीघ्र प्र-सव : शीघ्र प्रसव हो सके इसके लिये 70 ग्राम की मात्रा मे काले तिल कूटकर 24 घन्टें के लिये जल में भिगों दे। सुबह उन्हें छानकर प्र-सव महिला को पीला दें। बच्चा शीघ्र हो जायेगा।
- रक्त स्त्राव : प्रसूती या गर्भवती महिला के योनी मार्ग से रक्त निकलना बन्द नही हो तो तिल व जौ को कुटकर शक्कर मिलाकर शहद के साथ चाटना चाहिए।
- खुनी बवासीर : 50 ग्राम काले तिलों को सोखने योग्य पानी में भिगोये। लगभग 30 मिनट जल में भीगे रहने के बाद उन्हें पीसकर उसमें लगभग एक चम्मच मक्खन एंव दो चम्मच मिश्री मिला दें। इसका प्रतिदिन दो बार सेवन करने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) में लाभ होता है।
- पेट दर्द : 20-25 ग्राम साफ तिल चबाकर उपर से गर्म पानी पिलाने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है। साथ ही तिलों को पीसकर लम्बा सा गोला बनाकर उसे तवे पर सहन करने योग्य करके पेट के उपर फिराने से अत्यन्त से अत्यन्त कष्टदायी पेट का दर्द (उदर शूल) भी शान्त हो जाता है।
- सू-जाक : 15-15 ग्राम की मात्रा में काले तिल तथा देशी खाड बारीक पीसकर गाय के कच्चे दूध के साथ रोग की स्थिति के अनुसार सेवन करने से लाभ हो जाता है।
- बवासीर : काले तिल चबाकर उपर से ठंडा जल पीने से बादी बवासीर ठीक हो जाता है। या तिल पीसकर गर्म करके मस्सो पर लेप करने या बाधने से भी बवासीर में लाभ होता है। इसके साथ तिल के तेल का एनिमा (बासी) देने से आते चिकनी होकर शौच के गुच्छे निकल जाते है। जिससे धीरे धीरे रोग समाप्त हो जाने लगता है।
- खूनी दस्त रक्तातिसार : काले तिल एक भाग में मिश्री 5 भाग मिलाकर पीसकर बकरी के दूध के साथ देने से रक्तातिसार में लाभ हो जाता है।
- वात रक्त : तिलों भूनकर दूध में बुझाकर बारीक पीसकर लेप करने से वात रक्त का रोग दूर हो जाता है।
- भगन्दर : भयंकर व्याधि भगन्दर या वेदनायुक्त वातजन्य धावों में तिल या असली को भूनकर परन्तु गर्भ स्थिति में दूध में बुझाकर व उसी दूध में पीसकर लेप करना चाहिए। भगन्दर रोग मिट जायेगा।
- बहुमात्र : प्रातः साय तिल मोदक (तिल के लड्डू) खाने से अधिक पेशाब आना बन्द हो जाता है।
- कब्ज : लगभग 60 ग्राम तिल लेकर उन्हे कूट लें फिर उनमें कोई मिष्ठान मिला लें। इसे खाने से कब्ज का नाश होता है।
- बालों में रूसी होना : बालो में तिल के तेल की मालिश कर लगभग 30 मिनट के पश्चात गर्म पानी में भीगी एंव निचोडी हुई तौलिया सिर पर लपेंटें। तौलिया के ठंडे होने पर पुनः तौलिया गर्म जल में भिगोकर निचोड़कर सिर पर लपेटे। यह क्रिया लगभग 5 मिनट तक करे। फिर कुछ देर के बाद शीतल जल से सिर धो लेने पर रूसी दूर हो जायेगी ।
- सुखी खाँसी : यदि सर्दी के कारण सूखी खासी हो तो 4-5 चम्मच मिश्री एंव इतने ही तिल मिश्रित कर ले। इन्हे एक गिलास मे आधा पानी रहने तक उबाले। इसे प्रतिदिन प्रातः साय एंव रात्री के समय पीये।
- आग से जलना : तिल जल में चटनी की भाती पीस लें। इस का दग्ध जले स्थान पर मोटा लेप करने से जलन शान्त हो जाती है।
- मोच आना : तिल की खल लेकर उसे पीसे एंव पानी मे गर्म करे फिर उतारकर गर्म ही मोच आये स्थान पर बाधने से मोच के दर्द में लाभ होता है।
- मानसिक दूर्बलता : तिल गुड दोनो सम मात्रा में लेकर मिला लें।उसके लड्डू बना ले। प्रतिदिन 2 बार 1-1 लड्डू दूध के साथ खाने से मानसिक दुर्बलता एंव तनाव दूर होते है। शक्ति मिलती है। कठिन शारीरिक श्रम करने पर सांस फूलना जल्दी बुढ़ापा आना बन्द हो जाता है।
- दंत चिकित्सा : प्रातः काल तथा साय काल लगभग 50-50 ग्राम की मात्रा में (बिना मिठा मिलाये) धीरे धीरे काले तिल चबाकर उपर से पानी पीने से दात मजबूत मल रहित हो जाते है। और हिलते हुए दात भी पुनः जम जाते है।
- पथरी : तिल क्षार को रोग की दशानुसार देशी शहद में मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से पथरी रोग में लाभ होता है।
- मकड़ी का विष : तिलो को पिलवाकर तेल निकाल लेने के उपरान्त बचे भाग खली में थोड़ी हल्दी मिलाकर पानी में पीसकर रोग स्थान पर लेप कर देने से मकड़ी का विष समाप्त हो जाता है।
- मुहासे : मुहासो के लिए तिल की खली को जलाकर इसकी राख में गोमूत्र मिलाकर लेप करने से कुछ दिनों में मुहासे ठीक हो जाते है।
- नारू रोग : खली तिल की को काफी में पीसकर लेप करने से नारू रोग में लाभ होता है।
- बहुमूत्रता : जाड़े के दिनो में गुड़ तिल की गर्म ताजा गजक खाने से अधिक पेशाब आना और गले की खुजली ठीक हो जाती है।
- बिस्तर पर पेशान आना : बच्चा सोते समय पेशाब करता हो़ तो भुने काले तिलों को गुड़ के साथ मिलाकर उसका लड्डू बना लीजिए। बच्चेस को यह लड्डू हर रोज रात में सोने से पहले खिलाइए, बच्चान सोते वक्त पेशाब नही करेगा।
- मोटापा : काले तिल एक चम्मच खाने के बाद चबा चबा कर खाए, चर्बी खत्म हो जाएगी
- मुंह के छाले : मुंह में छाले होने पर तिल के तेल में थोड़ा सा सेंधा नमक मिला कर मुंह के छालों में लगाइए, इससे मुंह के छाले ठीक हो जाएंगे।
- त्वचा से संबंधित बीमारी : यदि आपको त्वचा से संबंधित बीमारी है तो आपको नियमित तिल के तेल की मालिश करनी चाहिए। यह त्वचा के रूखेपन को दूर करता है। और आपके चेहरे को चिकना बनाता है।
- इन सर्दियों में काले तिल लाये और साफ कर एक बोतल में भर कर रख लें । दिन में 2-3 बार सौंफ की तरह फांक लें, क्योंकि ये बहुत लाभकारी है ।
- आयुर्वेद में तिल को तीव्र असरकारक औषधि के रूप में जाना जाता है।
- काले और सफेद तिल के अतिररिकत लाल तिल भी होता है। सभी के अलग-अलग गुणधर्म हैं।
- यदि पौष्टिकता की बात करें तो काले तिल शेष दोनों से अधिक लाभकारी हैं। सफेद तिल की पौष्टिकता काले तिल से कम होती है जबकि लाल तिल निम्नश्रेणी का तिल माना जाता है।
- तिल में चार रस होते हैं। इसमें गर्म, कसैला, मीठा और चरपरा स्वाद भी पाया जाता है।
- तिल हजम करने के लिहाज से भारी होता है। खाने में स्वादिष्ट और कफनाशक माना जाता है। यह बालों के लिए लाभप्रद माना गया है।
- दाँतों की समस्या दूर करने के साथ ही यह श्वास संबंधी रोगों में भी लाभदायक है।
- स्तनपान कराने वाली माताओं में दूध की वृद्धि करता है।
- पेट की जलन कम करता है ।
- बुद्धि को बढ़ाता है।
- यह स्वभाव से गर्म होता है इसलिए इसे सर्दियों में मिठाई के रूप में खाया जाता है। गजक, रेवड़ियाँ और लड्डू शीत ऋतु में ऊष्मा प्रदान करते हैं।
- तिल में विटामिन ए और सी छोड़कर वे सभी आवश्यक पौष्टिक पदार्थ होते हैं जो अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक होते हैं। तिल विटामिन बी और आवश्यक फैटी एसिड्स से भरपूर है।
- इसमें मीथोनाइन और ट्रायप्टोफन नामक दो बहुत महत्त्वपूर्ण एमिनो एसिड्स होते हैं जो चना, मूँगफली, राजमा, चौला और सोयाबीन जैसे अधिकांश शाकाहारी खाद्य पदार्थों में नहीं होते। ट्रायोप्टोफन को शांति प्रदान करने वाला तत्व भी कहा जाता है जो गहरी नींद लाने में सक्षम है। यही त्वचा और बालों को भी स्वस्थ रखता है। मीथोनाइन लीवर को दुरुस्त रखता है और कॉलेस्ट्रोल को भी नियंत्रित रखता है।
- तिलबीज स्वास्थ्यवर्द्धक वसा का बड़ा स्त्रोत है जो चयापचय को बढ़ाता है।
- तिलबीजों में उपस्थित पौष्टिक तत्व,जैसे-कैल्शियम और आयरन त्वचा को कांतिमय बनाए रखते हैं।
- तिल में न्यूनतम सैचुरेटेड फैट होते हैं इसलिए इससे बने खाद्य पदार्थ उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकता है।
- सौ ग्राम सफेद तिल से 1000 मिलीग्राम कैल्शियम प्राप्त होता हैं। बादाम की अपेक्षा तिल में छः गुना से भी अधिक कैल्शियम है।
- काले और लाल तिल में लौह तत्वों की भरपूर मात्रा होती है जो रक्तअल्पता के इलाज़ में कारगर साबित होती है।
- तिल में उपस्थित लेसिथिन नामक रसायन कोलेस्ट्रोल के बहाव को रक्त नलिकाओं में बनाए रखने में मददगार होता है।
- तिल के तेल में प्राकृतिक रूप में उपस्थित सिस्मोल एक ऐसा एंटी-ऑक्सीडेंट है जो इसे ऊँचे तापमान पर भी बहुत जल्दी खराब नहीं होने देता। आयुर्वेद चरक संहित में इसे पकाने के लिए सबसे अच्छा तेल माना गया है।
- मकर संक्रांति के पर्व पर तिल का विशेष महत्त्व माना जाता है। इस दिन इसे दान देने की परम्परा भी प्रचलित है। इस दिन तिल के उबटन से स्नान करके ब्राह्मणों एवं गरीबों को तिल एवं तिल के लड्डू दान किये जाते हैं। यह मौसम शीत ऋतु का होता है, जिसमें तिल और गुड़ से बने लड्डू शरीर को गर्मी प्रदान करते हैं। प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि संक्रांति के दिन तिल का तेल लगाकर स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल की आहुति देना, पितरों को तिल युक्त जल का अर्पण करना, तिल का दान करना एवं तिल को स्वयं खाना, इन छह उपायों से मनुष्य वर्ष भर स्वस्थ, प्रसन्न एवं पाप रहित रहता है।
- तैल शब्द की व्युत्पत्ति तिल शब्द से ही हुई है। जो तिल से निकलता वह है तैल। तिल का यह तेल अनेक प्रकार के सलादों में प्रयोग किया जाता है। तिल गुड़ का पराठा, तिल गुड़ और बाजरे से मिलाए गए ठेकुए उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रचलित हैं। करी को गाढ़ा करने के लिये छिकक्ल रहित तिल को पीसकर मसाले में भूनने की भी प्रथा अनेक देशों में है।
- यज्ञादि हविष्य में तिल प्रधानता से प्रयुक्त किया जाता है जिसे सभी देवता प्रसन्नता केसाथ ग्रहण करते हैं। मनुस्मृति में कहा गया है- त्रीणि श्राद्धे पवित्राणि दौहित्रः कुतपस्तिलाः। त्रीणि चात्र प्रशंसन्ति शौचमक्रोधमत्वराम्।। अर्थात श्राद्ध कर्म में काले तिल तथा लक्ष्मी आराधना में सफेद तिल की हविष्य प्रयोग करने से शीघ्र लाभ होता है। घृत में तिल मिलाकर श्री यज्ञ करने से माता लक्ष्मी की अति शीघ्र कृपा होती है।
- जन्म दिवस केअवसर पर बालकों को गाय के घृत में आधा चम्मच काले तिल का सेवन कराना भावी कष्टों से निवारण का अचूक साधन है।
- तिल आपके दांतों के लिए भी बहुत लाभकारी है। यह दातों को मजबूत और चमकदार बनाता है। आपको सुबह ब्रश करने के बाद काले तिलों को बारीक चबाकर खाना चाहिए यह प्राकृतिक रूप से दांतों को सुंदर और मजबूत बनाता है। यदि दांत में दर्द हो तो थोड़ा सा तिल के तेल से मुंह में कुला करें। दांतों के दर्द में राहत देता है।
- तिल के तेल को सिर पर लगाने से आपकी बालों की समस्या तो दूर होती ही है, साथ के साथ यह बालों का झड़ना, उनका सफेद होना और गंजेपन की शिकायत दूर करता है।
- यदि पेट में दर्द हो रहा हो तो थोड़े से काले तिलों को गुनगुने पानी के साथ सेवन करें।
- जोड़ों में दर्द हो या कमर का दर्द हो तो आप तिल के तेल में थोड़ा-थोड़ा हींग और सोंठ डालकर उसे गरम करें और फिर इस तेल की मालिश करें। इससे आपको कमर और जोड़ों के दर्द से राहत मिलेगी।
- पैरों पर मोच आने पर तिलों को पीसकर उसे गरम पानी में डाल दें। ध्यान रहे पानी उतना ही हो जिससे तिल का पेस्ट बन सके और इस पेस्ट को मोच वाली जगह लेप कर उस पर कपड़ा बांध ले। राहत मिलेगी।
- कब्ज दूर करने के लिये तिल को बारीक पीस लें एवं प्रतिदिन पचास ग्राम तिल के चूर्ण को गुड़, शक्कर या मिश्री के साथ मिलाकर फाँक लें।
- पाचन शक्ति बढ़ाने के लिये समान मात्रा में बादाम, मुनक्का, पीपल, नारियल की गिरी और मावा अच्छी तरह से मिला लें, फिर इस मिश्रण के बराबर तिल कूट पीसकर इसमें में मिलाएँ, स्वादानुसार मिश्री मिलाएँ और सुबह-सुबह खाली पेट सेवन करें। इससे शरीर के बल, बुद्धि और स्फूर्ति में भी वृद्धि होती है।
- प्रतिदिन रात्रि में तिल को खूब चबाकर खाने से दाँत मजबूत होत हैं।
- यदि कोई जख्म हो गया हो तो तिल को पानी में पीसकर जख्म पर बांध दें, इससे जख्म शीघ्रता से भर जाता है।
- तिल के लड्डू उन बच्चों को सुबह और शाम को जरूर खिलाना चाहिए जो रात में बिस्तर गीला कर देते हैं। तिल के नियमित सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर होती है और रोग प्रतिरोधकशक्ति में वृद्धि होती है।
- पायरिया और दाँत हिलने के कष्ट में तिल के तेल को मुँह में १०-१५ मिनट तक रखें, फिर इसी से गरारे करें। इससे दाँतों के दर्द में तत्काल राहत मिलती है। गर्म तिल के तेल में हींग मिलाकर भी यह प्रयोग किया जा सकता है।
- पानी में भिगोए हुए तिल को कढ़ाई में हल्का सा भून लें। इसे पानी या दूध के साथ मिक्सी में पीस लें। सादा या गुड़ मिलाकर पीने से रक्त की कमी दूर होती है।
- जोड़ों के दर्द के लिये एक चाय के चम्मच भर तिल बीजों को रातभर पानी के गिलास में भिगो दें। सुबह इसे पी लें। या हर सुबह एक चम्मच तिल बीजों को आधा चम्मच सूखे अदरक के चूर्ण के साथ मिलाकर गर्म दूध के साथ पी लें। इससे जोड़ों का दर्द जाता रहेगा।
- तिल गुड़ के लड्डू खाने से मासिकधर्म से संबंधित कष्टों तथा दर्द में आराम मिलता है।
- भाप से पकाए तिल बीजों का पेस्ट दूध के साथ मिलाकर पुल्टिस की तरह लगाने से गठिया में आराम मिलता है।
- जले हुए स्थान पर तिलों के पेस्ट में थोड़ा घी और गुड मिलाकर लगाएं।
- जो बहने अपने शिशु को स्तनपान कराती है, उन्हें जरूर तिलों का सेवन करना चाहिए। क्योंकि एैसा करने से दूध में बढ़ोतरी होती है।
- पानी में तिलों को पीसकर पुल्टिस बांधने से अशुद्ध घाव साफ होकर शीघ्र भर जाता है।
- तिल से तनाव दूर होता है और मानसिक दुर्बलता नहीं होती। काले तिल को चबाकर खाने से बवासीर ठीक हो जाता है। तिल, देशी घी, कपूर मिलाकर जले वाले स्थान पर लगायें। कब्ज होने पर चीनी और तिल का सेवन करना है फायदेमंद।