भक्ति और श्रद्धा के इन नौ दिनों के दौरान सेहत का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है। अगर आप इस समय दवा से भी परहेज करते हैं तो हम आपको ऐसी औषधियों के बारे में बता रहे हैं जिसमें मां दुर्गा का वास होता है।
औषधियों के गुणों का खजाना :
शारदीय नवरात्र यानी भक्ति और श्रद्धा के नौ दिन। लेकिन इस दौरान सेहत का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है। अगर आप इस समय दवा से भी परहेज करते हैं तो हम आपको ऐसी औषधियों के बारे में बता रहे हैं जिसमें मां दुर्गा का वास होता है।
ये नौ औषधियां ऐसी हैं जिसमें दुर्गा के नौ रूप विराजते हैं। इन नौ औषधियों को दुर्गाकवच कहा जाता है क्योंकि माना जाता है कि यह औषधियां रोगों को हरने वाली और उनसे बचाकर रखने के लिए एक कवच के रूप में कार्य करती हैं। आप इन दिनों नवरात्र के 9 दिनों से संबंधित इन दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों के बारे में यहां जानें।
9 औषिधियाँ जिसमे समाई है 9 दुर्गा माँ :
प्रथम शैलपुत्री यानी हरड़ : देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं। दुर्गाजी के पहले रूप को ‘शैलपुत्री’ के नाम से जाना जाता हैं। ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं और कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़ देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। हरड़, जिसे आमतौर से हरितकी के नाम से भी जाना जाता है, यूनानी चिकित्सा पद्धति में इस जड़ी-बूटी का इस्तेमाल एंटी-टॉक्सिन के रूप में कंजक्टीवाइटिस, गैस्ट्रिक समस्याओं, पुराने और बार-बार होने वाले बुखार, साइनस, एनीमिया और हिस्टीरिया के इलाज में किया जाता है।
द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानी ब्राह्मी : मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी यानी ब्राह्मी का है। इस औषधि को मस्तिष्क का टॉनिक कहा जाता है। ब्राह्मी मन, मस्तिष्क और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाले के साथ रक्त संबंधी समस्याओं को दूर करने और और स्वर को मधुर करने में मदद करती है। इसके अलावा यह गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन समस्याओं से ग्रस्त लोगों को ब्रह्मचारिणी की आराधना करनी चाहिए।
तृतीय चंद्रघंटा यानी चन्दुसूर : मां दुर्गा की तृतीय शक्ति का नाम चंद्रघंटा यानी चन्दुसूर है। नवरात्रि के तीसरे दिन इनका पूजन किया जाता है। यदि आप मोटापे की समस्या से परेशान हैं तो आज मां चंद्रघंटा को चंदुसूर चढ़ाएं। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के जैसा होता है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है। इस पौधे में कई औषधीय गुण हैं। इससे मोटापा दूर होता है। यह शक्ति को बढ़ाने वाली एवं हृदयरोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। इसलिए इस बीमारी से संबंधित लोगों को मां चंद्रघंटा की पूजा और प्रसाद के रूप में चंदुसूर ग्रहण करना चाहिए।
चतुर्थ कुष्माण्डा यानी पेठा : नवरात्र के चौथे दिन मां भगवती दुर्गा के कुष्माण्डा स्वरूप की पूजा की जाती है। नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा यानी पेठा है। इसे कुम्हड़ा भी कहा जाता हैं। यह हृदयरोगियों के लिए लाभदायक, कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाला, ठंडक पहुंचाने वाला और मूत्रवर्धक होता है। यह पेट की गड़बड़ियों में भी असरदायक होता है। रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित कर अग्न्याशय को सक्रिय करता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। इन बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को पेठा के उपयोग के साथ कुष्माण्डा देवी की आराधना करनी चाहिए।
पंचम स्कंदमाता यानी अलसी : नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है। अलसी में कई सारे महत्वपूर्ण गुण होते हैं। अलसी का रोज सेवन करने से आप कई रोगों से छुटकारा पा सकते हैं। सुपर फूड अलसी में ओमेगा 3 और फाइबर बहुत अधिक मात्रा में होता है। यह रोगों के उपचार में लाभप्रद है और यह हमें कई रोगों से लड़ने की शक्ति देता है। कफ प्रकृति और पेट से संबंधित समस्याओं से ग्रस्त लोगों को स्कंदमाता की आराधना और अलसी का सेवन करना चाहिए।
षष्ठम कात्यायनी यानी मोइया : नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी की उपासना का होता है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे ग्रस्त लोगों को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करना चाहिए।
सप्तम कालरात्रि यानी नागदौन : श्री दुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। मां कालरात्रि की भक्ति से मन का भय तो दूर होता है साथ ही कई बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है। जो भक्त मन या मस्तिष्क के किसी रोग से पीडि़त है उसे मां कालरात्रि को नागदौन औषधि अर्पित कर प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करना चाहिए। इस औषधि का इतना प्रभाव होता है कि यदि इसे अपने घर में लगा लिया जाए तो घर के सभी सदस्यों से कई छोटी-छोटी मौसमी बीमारियां हमेशा दूर ही रहेगी।
अष्टम महागौरी यानी तुलसी : नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है और प्रत्येक व्यक्ति इसे औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधीय नाम तुलसी है और इसे घर में लगाकर इसकी पूजा की जाती है। पौराणिक महत्व से अलग तुलसी एक जानी-मानी औषधि भी है, जिसका इस्तेमाल कई बीमारियों में किया जाता है। तुलसी कई प्रकार की होती है और तुलसी के सभी प्रकार रक्त को साफ एवं हृदय रोग का नाश करती है। इस देवी की आराधना सभी को करनी चाहिए।
नवम सिद्धिदात्री यानी शतावरी : मां दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती है। ये सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाली हैं। दुर्गा के इस स्वरूप को नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं बी र्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। शतावरी का नियमपूर्वक सेवन करने वाले व्यक्ति के सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इसलिए हृदय को बल देने के लिए सिद्धिदात्री देवी की आराधना करनी चाहिए।