महाशिवरात्रि की पूजा करने की विधि, मंत्र और शुभ मुहूर्त :

महाशिवरात्रि पर शहर के शिवालयों पर धूम मचेगी। सुबह की महाआरती के बाद मंदिरों के पट भक्तों के लिए खुल गए हैं। सोमवार के स्वामी चंद्र, बाबा सोमनाथ का दुर्लभ संयोग शिव योग महापर्व को खास बनाएगा।

सोमवार को दोपहर 4 बजकर 29 मिनट से चतुर्दशी तिथि है। मंगलवार शाम 7 बजकर 8 मिनट तक रहेगी। अर्धरात्रिव्यापिनी ग्रा‘ होने से यानी मध्यरात्रि और चतुर्दशी तिथि के योग में 4 मार्च को ही महाशिवरात्रि मनेगी।

‘महाशिवरात्रि’ यानी शिव और शक्ति के संगम का दिन…अद्र्धनारीश्वर स्वरूप की आराधना का दिन।

महाशिवरात्रि के आखिरी स्नान पर्व पर सोमवार को कुम्भ मेले में एक बार फिर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है। मेला प्रशासन का अनुमान है कि सोमवार को कुम्भ के अंतिम स्नान पर्व पर एक करोड़ लोग पुण्य की डुबकी लगाएंगे।

भगवान शिव के तांडव की रात्रि महाशिवरात्रि इस बार महासंयोग के साथ सोमवार 4 मार्च को है। महाशिवरात्रि सोमवार को होने के कारण इसका महत्व अब और बढ़ गया है। महाशिवरात्रि को भगवान शंकर की आराधना, उपासना और उनका ध्यान करने उनकी विशेष कृपा पाई जा सकती है।

महाशिवरात्रि हिन्दू धर्म में काफी महत्वपूर्ण पर्व है। जिस दिन शिव भक्त अपने आराध्य शंकर जी और मां पार्वती के विवाह की खुशियां मनाते हैं।

आज है महाशिवरात्रि करिए भोले भंडारी का जाप उनके जार से धुलते हैं सारे पाप।

महाशिवरात्रि पर्व को धूमधाम मनाने के लिए तैयार हो चुकी है। इस अवसर पर लोग मंदिरों में जाकर भोले बाबा का रुद्राभिषेक कराते हैं।

महादेव को उनके भक्त कई नामों से जानते हैं। उनका एक नाम त्रिपुरारी भी है। वैसे भगवान शिव के साथ 3 अंक का अद्भुत संयोग है। जैसे उनका अस्त्र त्रिशूल, उनके माथे पर तीसरी आंख और मस्तक पर लगा त्रिपुंड भी तीन रेखाओं वाला होता है।

महाशिवरात्रि हो या सत्यनारायण भगवान की कथा प्रसाद में पंचामृत का विशेष स्थान होता है। इसे शुभ और कल्याणकारी तो माना ही जाता है सेहत के लिए भी यह काफी फायदेमंद होता है

इस घटना के कारण मनाई जाती है महाशिवरात्रि :

शिवरात्रि तो हर महीने में आती है लेकिन महाशिवरात्रि सालभर में एकबार आती है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह पर्व 4 मार्च दिन सोमवार को है। महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है। शिवभक्त इस दिन व्रत रखकर अपने आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है, इसके पीछे की घटना क्या है।

पहली बार प्रकट हुए थे शिवजी : पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका न तो आदि था और न अंत। बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए। दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला।

इन 64 जगहों पर प्रकट हुए थे शिवलिंग : एक और कथा यह भी है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न 64 जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 जगह का नाम पता है। इन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं। महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं। दीपस्तंभ इसलिए लगाते हैं ताकि लोग शिवजी के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें। यह जो मूर्ति है उसका नाम लिंगोभव, यानी जो लिंग से प्रकट हुए थे। ऐसा लिंग जिसकी न तो आदि था और न ही अंत।

इसी दिन शिव और शक्ति का हुआ था मिलन : महाशिवरात्रि को पूरी रात शिवभक्त अपने आराध्य जागरण करते हैं। शिवभक्त इस दिन शिवजी की शादी का उत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी। इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थी, वह गृहस्थ बन गए। माना जाता है कि शिवरात्रि के 15 दिन पश्चात होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कारण यह भी है।

महाशिवरात्रि व्रत रखने का यह है वैज्ञानिक महत्व :

‘महाशिवरात्रि’ यानी शिव और शक्ति के संगम का दिन…अद्र्धनारीश्वर स्वरूप की आराधना का दिन। सोमवार की मध्यरात्रि में भगवान भोलेनाथ और मां गौरी का विवाह होगा। मन:कामेश्वर महादेव मंदिर के महंत योगेशपुरी कहते है कि बाबा मन:कामेश्वर दूल्हा बनकर जब निकलेंगे तो पूरा शहर उनको देखने के लिए पलक पांवड़े बिछाए होगा।

ज्योतिषाचार्य पूनम वाष्र्णेय ने बताया कि एक साल में 12 शिवरात्रि पड़ती है लेकिन इन 12 में से फाल्गुन की शिवरात्रि का महत्व कई गुना अधिक है। यह शिवरात्रि कोई साधारण शिवरात्रि नहीं बल्कि महाशिवरात्रि होती है। इस दिन शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखा जाता है। शिव की पूजा पूजा और भक्ति करने से ही कष्ट दूर हो जाते हैं। सच्चे मन से शिव भक्ति करने वाले भक्तों पर उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है।

व्रत रखने से तन का शुद्धीकरण होता है। व्रत रखने से रक्त शुद्ध होता है। आतों की सफाई होती है। पेट को आराम मिलता है। उत्सर्जन तंत्र और पाचन तंत्र, दोनों ही अपनी अशुद्धियों से छुटकारा पाते हैं। कई रोगों से मुक्ति मिलती है। श्वसन तंत्र ठीक होता है। उपवास रखने से कलोस्ट्रोल के स्तर कम होता है। व्रत से स्मरण शक्ति बढ़ती है। वृत वाले दिन मेटाबॉलिक रेट में तीन से 14 फीसदी तक की बढ़ोतरी होती है। दिमाक स्वस्थ रहता है।