अनिमितताओं की वजह से ये जटिल रोग उत्पन होता है। आज के महंगाई के युग मे ओर भौतिक साधनों की वजह से मनुष्य पैसा कमाने की जुगाड़ में अपने शरीर का ध्यान नही रखता। बासी तला हुआ और फटाफट तैयार होने वाला भोजन खाना।
सुबह व्यायाम घूमना ऐसी बातों के लिए तो वक्त ही नही मिलता। पेट भर कमाने के लिए महानगरों में लोग बस-रेल से डेढ़ से दो घण्टे की दूरी तय कर अपने कार्यस्थल पर पहुंचता है, फलस्वरूप शुरुआत में कब्ज और बाद में मल सुख जाने पर मस्सा, भगंदर, नासूर, बवासीर इस प्रकार के रोग से ग्रसित हो जाता है।
यह गुदा मार्ग की बीमारी है। इस रोग के होने का मुख्य कारण कब्ज होता है। अधिक मिर्च मसाले एवं बाहर के भोजन का सेवन करने के कारण पेट में कब्ज उत्पन्न होने लगती है जो मल को अधिक शुष्क एवं कठोर करती है इससे मल करते समय अधिक जोर लगना पड़ता है और अर्श (बवासीर) रोग हो जाता है।
यह कई प्रकार की होती है, जिनमें दो मुख्य हैं- खूनी बवासीर और वादी बवासीर। यदि मल के साथ खून बूंद-बूंद कर आये तो उसे खूनी बवासीर कहते हैं। यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और उससे मल के साथ खून न आए तो उसे वादी बवासीर कहते हैं।
अर्श (बवासीर) रोग में मलद्वार पर मांसांकुर (मस्से) निकल आते हैं और उनमें शोथ (सूजन) और जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है। रोगी को कहीं बैठने उठने पर मस्से में तेज दर्द होता है। बवासीर की चिकित्सा देर से करने पर मस्से पककर फूट जाते हैं और उनमें से खून, पीव आदि निकलने लगता है।
रोग के प्रकार : अर्श (बवासीर) 6 प्रकार का होता है- पित्तार्श, कफार्श, वातार्श सन्निपातार्श, संसार्गर्श और रक्तार्श (खूनी बवासीर)
कफार्श : कफार्श बवासीर में मस्से काफी गहरे होते है। इन मस्सों में थोड़ी पीड़ा, चिकनाहट, गोलाई, कफयुक्त पीव तथा खुजली होती है। इस रोग के होने पर पतले पानी के समान दस्त होते हैं। इस रोग में त्वचा, नाखून तथा आंखें पीली पड़ जाती है।
वातजन्य बवसीर : वात्यजन अर्श (बवासीर) में गुदा में ठंड़े, चिपचिपे, मुर्झाये हुए, काले, लाल रंग के मस्से तथा कुछ कड़े और अलग प्रकार के मस्से निकल आते हैं। इसका इलाज न करने से गुल्म, प्लीहा आदि बीमारी हो जाती है।
संसगर्श : इस प्रकार के रोग परम्परागत होते हैं या किसी दूसरों के द्वारा हो जाते हैं। इसके कई प्रकार के लक्षण होते हैं।
पितार्श : पितार्श अर्श (बवासीर) रोग में मस्सों के मुंख नीले, पीले, काले तथा लाल रंग के होते हैं। इन मस्सों से कच्चे, सड़े अन्न की दुर्गन्ध आती रहती है और मस्से से पतला खून निकलता रहता है। इस प्रकार के मस्से गर्म होते हैं। पितार्श अर्श (बवासीर) में पतला, नीला, लाल रंग का दस्त (पैखाना) होता है।
सन्निपात : सन्निपात अर्श (बवासीर) इस प्रकार के बवासीर में वातार्श, पितार्श तथा कफार्श के मिले-जुले लक्षण पाये जाते हैं।
खूनी बवासीर : खूनी बवासीर में मस्से चिरमिठी या मूंग के आकार के होते हैं। मस्सों का रंग लाल होता है। गाढ़ा या कठोर मल होने के कारण मस्से छिल जाते हैं। इन मस्सों से अधिक दूषित खून निकलता है जिसके कारण पेट से निकलने वाली हवा रुक जाती है।
बवासीर या अर्श होने के कारण
अर्श रोग (बवासीर) की उत्पत्ति कब्ज के कारण होती है। जब कोई अधिक तेल-मिर्च से बने तथा अधिक मसालों के चटपटे खाद्य-पदार्थों का अधिक सेवन करता है तो उसकी पाचन क्रिया खराब हो जाती है।
पाचन क्रिया खराब होने के कारण पेट में कब्ज बनती है जो पेट में सूखेपन की उत्पत्ति कर मल को अधिक सूखा कर देती है। मल अधिक कठोर हो जाने पर मल करते समय अधिक जोर लगाना पड़ता है। अधिक जोर लगाने से मलद्वार के भीतर की त्वचा छिल जाती है।
जिसके कारण मलद्वार के भीतर जख्म या मस्से बन जाने से खून निकलने लगता है। अर्श रोग (बवासीर) में आहार की लापरवाही तथा चिकित्सा में अधिक देरी के कारण यह अधिक फैल जाता है।
बवासीर या अर्श होने के लक्षण
अर्श रोग के होने पर मलद्वार के बाहर की ओर मांसांकुर (मस्से) निकल आते हैं। मांसांकुर (मस्से) से खून शौच के साथ खून पतली रेखा के रुप में निकलता है।
रोगी को चलने-फिरने में परेशानी होना, पांव लड़खड़ाना, नेत्रों के सामने अंधेरा छाना तथा सिर में चक्कर आने लगना आदि इसके लक्षण है। इस रोग के होने पर स्मरण-शक्ति खत्म होने लगती है।
मस्सा, भगंदर, नासूर, बवासीर और क़ब्ज़ का आयुर्वेदिक घरेलु उपाय
क़ब्ज़, मस्सा, भगंदर, नासूर और बवासीर के लिए नीचे बताई गयी औषधीयाँ बाजार में पंसारी की दुकान पर मिल सकती है।
आवश्यक 11 औषधीयाँ
नागकेशर, बिलपत्र, बिल्फल, चित्रकमूल, हरड़, कालीमिर्च, सौंठ, कुटज, सुरन, चव्य, कज्जलि।
औषधि बनाने और सेवन करने का तरीका
आप इन सभी 11 औषधियों को ले आए और सभी को समान मात्रा में मिलाकर घर पर कूटकर बारीक पीस ले और प्रतिदिन 1 ग्राम तीन बार स्वच्छ जल के साथ सेवन करे। इस चमत्कारी औषधि के नियमित सेवन से आपको जीवन मे दुबारा मस्सा, भगंदर, नासूर, बवासीर और क़ब्ज़ जैसी बीमारी से झूझना नही पड़ेगा।
आवश्यक परहेज
इसमे परहेज करना ज़रूरी है, तेज मसाले, मिर्च, ज्यादा तला, दही और छाछ का।
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