मेथीदाना, अजवाइन, कालीजीरी |methi dana, Ajwain, Kalijiri

अनेक बार रोगी उपचार हेतु एलोपैथिक चिकित्सक के पास जाता है. एलोपैथिक उपचार करवाने पर भी जब उसे स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं दिखता, वह आयुर्वेदिक उपचार की ओर मुडता है।

जब तक वह आयुर्वेदिक उपचार की ओर मुडता है, रोग उसके शरीर में घर कर चुका होता है, और उन औषधियों पर अत्यधिक धन व्यय हो चुका होता है, साथ ही उसे उन औषधियों के दुष्प्रभाव भी झेलने पडते है।

आयुर्वेदिक उपचार करवाने के उपरांत रोगी को रोग ठीक होने का भान होता है। तब वह यह विचार करने लगता है, कि अच्छा होता यदि मैं आरंभ से ही आयुर्वेदिक उपचार करवाता।

इसलिए ऐसा ना हो तथा हानिकारक दुष्प्रभावों से बचने के लिए, रोग के आरंभ में ही आयुर्वेदिक उपचार करवाना आवश्यक है।
इसीलिए हम आज आपको All Ayurvedic के माध्यम से यहाँ कुछ औषधियां बतायेंगे जिनके द्वारा आप कई बीमारियों इलाज कर सके। इन 3 औषधियों के मिश्रण को सेवन करने का सबसे अच्छा समय सर्दियों में है। आइए जानते है इसके बारे मे…

इन 3 औषधियों की बहुत उपयोगी दवा बनाने के लिए आवश्यक सामग्री :

250 ग्राम मैथीदाना

100 ग्राम अजवाईन

50 ग्राम काली जीरी (ज्यादा जानकारी के लिए नीचे देखे)

तैयार करने का तरीका :

उपरोक्त तीनो चीजों को साफ-सुथरा करके हल्का-हल्का सेंकना(ज्यादा सेंकना नहीं) तीनों को अच्छी तरह मिक्स करके मिक्सर में पावडर बनाकर कांच की शीशी या बरनी में भर लेवें।

औषधि को सेवन करने का तरीका :

रात्रि को सोते समय एक चम्मच पावडर एक गिलास पूरा कुन-कुना पानी (हल्का गर्म) के साथ लेना है। गरम पानी के साथ ही लेना अत्यंत आवश्यक है लेने के बाद कुछ भी खाना पीना नहीं है। यह चूर्ण सभी उम्र के व्यक्ति ले सकतें है।

चूर्ण रोज-रोज लेने से शरीर के कोने-कोने में जमा पडी गंदगी (कचरा) मल और पेशाब द्वारा बाहर निकल जाएगी । पूरा फायदा तो 80-90 दिन में महसूस करेगें, जब फालतू चरबी गल जाएगी, नया शुद्ध खून का संचार होगा। चमड़ी की झुर्रियाॅ अपने आप दूर हो जाएगी। शरीर तेजस्वी, स्फूर्तिवाला व सुंदर बन जायेगा ।

इन 18 रोगों में फायदेमंद है :

गठिया दूर होगा और गठिया जैसा जिद्दी रोग दूर हो जायेगा।

हड्डियाँ मजबूत होगी।

आँखों रौशनी बढ़ेगी।

बालों का विकास होगा।

पुरानी कब्जियत से हमेशा के लिए मुक्ति।

शरीर में खुन दौड़ने लगेगा।

कफ से मुक्ति।

हृदय की कार्य क्षमता बढ़ेगी।

थकान नहीं रहेगी, घोड़े की तहर दौड़ते जाएगें।

स्मरण शक्ति बढ़ेगी।

स्त्री का शरीर शादी के बाद बेडोल की जगह सुंदर बनेगा।

कान का बहरापन दूर होगा।

भूतकाल में जो एलाॅपेथी दवा का साईड इफेक्ट से मुक्त होगें।

खून में सफाई और शुद्धता बढ़ेगी।

शरीर की सभी खून की नलिकाएं शुद्ध हो जाएगी।

दांत मजबूत बनेगा, इनेमल जींवत रहेगा।

शारीरिक कमजोरी दूर तो मर्दाना ताक़त बढ़ेगी।

डायबिटिज काबू में रहेगी, डायबिटीज की जो दवा लेते है वह चालू रखना है। इस चूर्ण का असर दो माह लेने के बाद से दिखने लगेगा।

जिंदगी निरोग,आनंददायक, चिंता रहित स्फूर्ति दायक और आयुष्यवर्धक बनेगी। जीवन जीने योग्य बनेगा।

कृपया ध्यान दे :

कुछ लोग कलौंजी को काली जीरी समझ रहे है जो कि गलत है काली जीरी अलग होती है जो आपको पंसारी या आयुर्वेद की दुकान से मिल जाएगी, यह स्वाद में हल्की कड़वी होती है, नीचे जो फोटो है वो कालीजीरी (Purple Fleabane) का है, जिसका नाम अलग-अलग भाषाओं में कुछ इस तरह से है।

हिन्दी कालीजीरी, करजीरा।

संस्कृत अरण्यजीरक, कटुजीरक, बृहस्पाती।

मराठी कडूकारेलें, कडूजीरें।

गुजराती कडबुंजीरू, कालीजीरी।

बंगाली बनजीरा।

अंग्रेजी पर्पल फ्लीबेन (Purple Fleabane)

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कालीजीरी – KALIJIRI

कालीजीरी को आयुर्वेद में सोमराजि, सोमराज, वनजीरक, तिक्तजीरक, अरण्यजीरक, कृष्णफल आदि नाम से जानते हैं। हिंदी भाषा में इसे कालीजीरी, बाकची और बंगाल में सोमराजी कहते हैं।

कालीजीरी किसी भी तरह के जीरे से अलग है। इंग्लिश में इसे पर्पल फ़्लीबेन कहते हैं पर यह कलोंजी Nigella sativa से बिल्कुल भिन्न है। कलोंजी को भी इंग्लिश में ब्लैक क्यूमिन ही कहते है। इसी प्रकार बाकची, या सोमराजी एक और पौधे के बीज को, सोरेला कोरीलिफ़ोलिया (Psoralea corylifolia) को कहते है।

आयुर्वेद के बहुत से विशेषज्ञ सोरेला कोरीलिफ़ोलिया को ही बावची या सोमराजी मानते हैं पर बंगाल में कालीजीरी को सोमराजी नाम से जानते और प्रयोग करते हैं।

कालीजीरी स्वाद में कड़वा और तेज गंद्ध वाला होता है, इसलिए इसे किसी भी तरह के भोजन बनाने में प्रयोग नहीं किया जाता। इसको केवल एक दवा की तरह ही प्रयोग किया जाता है। लैटिन में इसका नाम, सेंट्राथरम ऐनथेलमिंटिकम या वरनोनिया ऐनथेलमिंटिकम है।

इसके वैज्ञानिक नाम में ’ऐनथेलमिंटिकम’ इसके प्रमुख आयुर्वेदिक प्रयोग को बताता है। ऐनथेलमिंटिकम का मतलब है, शरीर से परजीवियों को नष्ट करने वाला। आयुर्वेद में इसे कृमिनाशक की तरह प्रयोग किया जाता है।

इसका सेवन और बाह्य प्रयोग चर्म रोगों के इलाज, जैसे की श्वित्र (leukoderma) सफ़ेद दाग, खुजली, एक्जिमा, आदि। इसे सांप या बिच्छु के काटे पर भी लगाते हैं। कालीजीरी का क्षुप, पूरे देश में परती जमीन पर पाया जाता है। इसके पत्ते शल्याकृति किनारेदार होते हैं। बारिश के मौसम के बाद इसमें मंजरी निकलती है। जिसमे काले बीज आते है।

काली जीरी आकार में छोटी और स्वाद में तेज, तीखी होती है। इसका फल कडुवा होता है। यह पौष्टिक एवं उष्ण वीर्य होता है। यह कफ, वात को नष्ट करती है और मन व मस्तिष्क को उत्तेजित करती है। इसके प्रयोग से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं और खून साफ होता है। त्वचा की खुजली और उल्टी में भी इसका प्रयोग लाभप्रद होता है।

यह त्वचा के रोगों को दूर करता है, पेशाब को लाता है एवं गर्भाशय को साफ व स्वस्थ बनाता है। यह सफेद दाग (कुष्ठ) को दूर करने वाली, घाव और बुखार को नष्ट करने वाली होती है। सांप या अन्य विषैले जीव के डंक लगने पर भी इसका प्रयोग लाभकारी होता है।

कालीजीरी के 13 फायदे :

यह कृमिनाशक और विरेचक है।

यह गर्म तासीर के कारण श्वास, कफ रोगों को दूर करती है।

मूत्रल होने के कारण यह मूत्राशय, की दिक्कतों और ब्लड प्रेशर को कम करती है।

यह हिचकी को दूर करती है।

यह एंटीसेप्टिक है चमड़ी की बिमारियों जैसे की खुजली, सूजन, घाव, सफ़ेद रोग, आदि सभी में बाह्य रूप से लगाई जाती है।

जंतुघ्न होने के कारण शरीर के सभी प्रकार के परजीवियों को दूर करती है।

काली जीरी को चमड़ी के रोगों में नीम के काढ़े के साथ मालिश या खादिर के काढ़े के आंतरिक प्रयोग के साथ करना चाहिए।

भयंकर चमड़ी रोगों में, काली जीरी + काले तिल बराबर की मात्रा में लेकर, पीस कर 4 ग्राम की मात्रा में सुबह, एक्सरसाइज की बाद पसीना आना पर लेना चाहिए। ऐसा साल भर करना चाहिए।

श्वेत कुष्ठ जिसे सफ़ेद दागभी कहते है, उसमे चार भाग काले जीरी और एक भाग हरताल को गोमूत्र में पीसकर प्रभावित स्थान पर लगाना चाहिए। इसी को काले तिलों के साथ खाने को भी कहा गया है। (भैषज्य रत्नावली)

पाइल्स या बवासीर में, 5 ग्राम कालाजीरालेकर उसमे से आधा भून कर और आधा कच्चा पीसकर, पाउडर बनाकर तीन हस्से कर के दिन में तीन बार खाने से दोनों तरह की बवासीर खूनी और बादी में लाभ होता है।

पेट के कीड़ों में इसके तीन ग्राम पाउडर को अरंडी के तेल के साथ लेना चाहिए।

खुजली में, सोमराजी + कासमर्द + पंवाड़ के बीज + हल्दी + दारुहल्दी + सेंधा नमक को बराबर मात्रा में मिलकर, कांजी में पीसकर लेप लगाने से कंडू, कच्छु (खुजली) आदि दूर होते हैं।

कुष्ठ में, कालीजीरी + वायविडंग + सेंधानमक + सरसों + करंज + हल्दी को गोमूत्र में पीस कर लगना चाहिए।

कालीजीरी के सेवन की मात्रा :

इसको 1-3 ग्राम की मात्रा में लें। इससे अधिक मात्रा प्रयोग न करें।

आवश्यक सावधानियाँ :

कृमिनाशक की तरह प्रयोग करते समय किसी विरेचक का प्रयोग करना चाहिए।

कालीजीरी के प्रयोग में सावधानियां

यह बहुत उष्ण-उग्र दवा है।

गर्भावस्था में इसे प्रयोग न करें।

यह वमनकारक है।

अधिक मात्रा में इसका सेवन आँतों को नुकसान पहुंचाता है।

यदि इसके प्रयोग के बाद साइड इफ़ेक्ट हों तो गाय का दूध / ताजे आंवले का रस / आंवले का मुरब्बा खाना चाहिए।