प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला विजयादशमी का पर्व महज राम-रावण का युद्ध ही नहीं माना जाना चाहिए। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस पर्व में छिपे हुए संदेश समाज को दिशा दे सकते हैं। स्वयं महापंडित दशानन इस बात को भलिभांति जानता था कि उसके जीवन का उद्धार राम के हाथों ही होना है। दूसरी ओर मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने भी रावण की विद्वता को नमन किया है।

प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला विजयादशमी का पर्व महज राम-रावण का युद्ध ही नहीं माना जाना चाहिए। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक इस पर्व में छिपे हुए संदेश समाज को दिशा दे सकते हैं। स्वयं महापंडित दशानन इस बात को भलिभांति जानता था कि उसके जीवन का उद्धार राम के हाथों ही होना है।

दूसरी ओर मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने भी रावण की विद्वता को नमन किया है। रामचरित्र मानस में जहां राम के चरित्र का सुंदर वर्णन किया गया है वहीं रावण के जीने के तरीके और विद्वता पर किए जाने वाले गर्व की छाया भी हमें दिखाई पड़ती है। रावण विद्वान होने के साथ ही बलशाली भी था, किन्तु उसकी इसी गर्वोक्ति को बाली ने चूर चूर कर उसे छह माह तक अपनी कॉख में दबाए रखा था।

लंका पर एक छत्र राज करने वाले रावण ने अपने भाई कुबेर के साथ भी दगाबाजी की और पुष्पक विमान पर अपना कब्जा कर लिया। इन्ही सारी बुराइयों के चलते उसे मृत्यु लोक को जाना पड़ा। हम प्रतिवर्ष अंहकार के पुतले का दहन कर उत्सव मनाते हैं, किन्तु स्वयं का अंहकार त्यागने तत्पर दिखाई नहीें पड़ रहे, यह कैसा विजयादशमी पर्व है।

हमारे अंदर छिपी चेतना का जागरण और विषयों का त्याग ही विजयादशमी पर्व का मुख्य संदेश है। आज हम विषयों के जाल में इस तरह उलझे हुए हैं कि स्वयं अपने अंदर चेतना और ऊर्जा को सही दिशा नहीं दे पा रहे हैं। रावण से परेशान जनता को खुशहाल जीवन प्रदान करने के लिए ही भगवान राम का अवतरण हुआ।

हम आप सब इस बात को जानते हैं कि राम ने क्षत्रिय कुल में जन्म लिया था। इसके विपरित रावण ब्राम्हण था और वेदों- पुराणों के ज्ञाता तथा मुनि श्रेष्ठ विश्रवा का पुत्र था। रावण के दादा ऋषि पुलत्स्य भी देव तुल्य माने जाते थे। राम-रावण युद्ध के दौरान कहीं न कहीं राम के हृदय में रावण के प्रति दया जरूर थी।

मर्यादा पुरूषोत्तम जानते थे कि एक ब्राम्हण का वध करना महापाप कर्म हैं यही कारण है कि उन्होंने रावण वध के बाद ब्राम्हण की हत्या के लिए प्रायश्चित किया और प्रार्थना की कि उनके इस पाप को जन-सामान्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक मानते हुए उन्हें ईश्वर इस पाप से मुक्त करें। आज के युग में यह भी जानने योग्य प्रसंग है कि रावण वध के पश्चात स्वयं भगवान राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान लेने भेजा, किन्तु अंतिम सांसें ले रहे रावण ने लक्ष्मण की ओर देखा तक नहीं।

बाद में स्वयं मर्यादा पुरूषोत्तम ने रावण के चरणों पर हाथ जोड़ते हुए ज्ञान प्रदान करने का निवेदन किया और रावण ने अपने अहंकार को त्यागते हुए गूढ़ ज्ञान प्रदान किया। दशहरा अथवा विजयादशमी पर्व दस प्रकार के महापापों से बचने का संदेश है।

यह विजय पर्व हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी से बचने और इन बुरी आदतों से दूर रहने प्रेरणा देता है। हम उत्साह पूर्वक रावण के पुतले का दहन करते समय इन दस पापों को अग्नि के हवाले कर दे तो हमारा विजय पर्व सार्थक हो सकता है।

विजय दशमी के दिन रावण के पुतले का दहन इसी बात का प्रतीक है कि नकारात्मक ऊर्जा पर हमेशा सकारात्मक ऊर्जा अर्थात शक्ति की विजय होती है।

अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है विजय दशमी को बुराई पर अच्छाई की जीत भी माना जाता है। विजय दशमी के दिन रावण के पुतले का दहन इसी बात का प्रतीक है कि नकारात्मक ऊर्जा पर हमेशा सकारात्मक ऊर्जा अर्थात शक्ति की विजय होती है।

विजय दशमी को अबूझ मुहूर्त के रूप में भी जाना जाता है इस दिन किसी भी मंत्र जाप या अनुष्ठान का आरंभ यदि किया जाए तो उसमें पूर्ण सफलता मिलती है। विजय दशमी के दिन ही देवी दुर्गा ने महिषासुर नाम के राक्षस का वध किया था…

व्यापार में फंसा हुआ धन : व्यापार में फंसे हुए धन की प्राप्ति के लिए विजय दशमी के दिन लक्ष्मी नारायण भगवान के मंदिर में नंगे पैर घर से जाएं। 11 लाल गुलाब के फूल और चंदन का इत्र तथा एक कमलगट्टे की माला भगवान लक्ष्मी नारायण को अर्पण करें और अपने व्यापार में फंसे हुए धन की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करें।

नौकरी में उन्नति : विजय दशमी के दिन अपनी नौकरी में उन्नति के लिए एक सफेद कच्चे सूत को केसर से रंगे और ओम नमो नारायण मंत्र का 108 बार जाप करके अपने पास रखें।

मित्र को उधार दिया धन वापिस कैसे पाएं : अपने उधार दिए हुए धन की प्राप्ति के लिए विजय दशमी के दिन लक्ष्मी नारायण भगवान को दो कमल के फूल और दो हल्दी की गांठ अर्पण करें।

संतान की उन्नति : विजय दशमी के दिन संतान की उन्नति के लिए 11 हरी दूर्वा की पत्तियां और पांच लाल गुलाब के फूल गं मंत्र का जाप कराकर भगवान गणपति को अर्पण करवाएं।

संतान प्राप्ति की बाधा कैसे करें दूर : विजय दशमी के दिन संतान प्राप्ति की बाधा को खत्म करने के लिए पीले आसन पर बैठकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और बच्चों को पीली मिठाई खिलाएं।

संतान की गलत आदतों में कैसे करें सुधार : विजयादशमी के दिन दोपहर के समय विष्णु स्तोत्र का 3 बार पाठ करें और भगवान विष्णु को केसर का तिलक करें इसी तिलक को प्रसाद के रूप में बच्चों के माथे पर लगाएं।

जमीन जायदाद की समस्या : विजय दशमी के दिन जमीन जायदाद की समस्या को हल करने के लिए मंगल देव के 21 नामों का लाल आसन पर बैठकर दक्षिण दिशा में मुंह करके पाठ करें।

अचानक आये संकट नाश के लिए : विजय दशमी के दिन अचानक आये संकट के नाश के लिए पूर्व दिशा में मुंह करके पीले आसन पर बैठकर श्री रामरक्षा स्तोत्र का 3 बार पाठ करें पाठ करने से पहले तांबे के लोटे में जल भरकर रखें पाठ के बाद यह जल सारे घर में छिड़क दें।

नकारात्मक दुष्प्रभाव खत्म करने के लिए : विजय दशमी के दिन अपने पर या परिवार पर आए नकारात्मक दुष्प्रभाव को खत्म करने के लिए दक्षिण दिशा में मुंह करके हनुमानजी के सामने तिल के तेल का दिया जलाएं और सुंदरकांड का उच्च स्वर में पाठ करें।

खोये हुए मां सम्मान की प्राप्ति हेतु : विजय दशमी के दिन सुबह के समय तांबे के लोटे से भगवान सूर्य को अर्घ्य दें और पूर्व दिशा में मुंह करके आदित्य हृदय स्तोत्र का 3 बार पाठ करें।