दशहरा अर्थात विजय दशमी पर इस बार सर्वश्रेष्ठ अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 36 से 12 बजकर 24 तक के मध्य है। इसके मध्य किया गया कोई भी कार्य बिना किसी रुकावट के अपने सर्वश्रेष्ठ फल तक पहुंचेगा। इस दिन का दूसरा मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 24 से 2 बजकर12 तक है इस अवधि के मध्य आरंभ किया जाने वाला कोई भी कार्य सफलता दायक रहेगा।
नीलकंठ तुम नीले रहियो, दूध-भात का भोजन करियो, हमरी बात राम से कहियो’, इस लोकोक्ति के अनुसार नीलकंठ पक्षी को भगवान का प्रतिनिधि माना गया है। दशहरा पर्व पर इस पक्षी के दर्शन को शुभ और भाग्य को जगाने वाला माना जाता है।
जिसके चलते दशहरे के दिन हर व्यक्ति इसी आस में छत पर जाकर आकाश को निहारता है कि उन्हें नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाएं। ताकि साल भर उनके यहां शुभ कार्य का सिलसिला चलता रहे।
दशहरा या विजयादशमी का पर्व हैं जो कि भगवान राम द्वारा रावण का वध करने के उपलक्ष में मनाया जाता हैं। ज्योतिष और पुराणों में विजयादशमी का बड़ा महत्व माना जाता हैं। आज के दिन से जुड़े कई शुभ-अशुभ काम पुराणों में बताए गए हैं।
आज के इन्हीं शुभ कामों में से एक होता हैं नीलकंठ पक्षी को देखना। जिससे घर में धन-धान्य में वृद्धि होती है और शुभ कार्य अच्छे से संपन्न होते हैं। आज हम आपको इसी का कारण बताने जा रहे हैं कि आखिर क्यों नीलकंठ पक्षी को दशहरे के दिन देखना शुभ माना गया हैं।
विजय दशमी पर्व पर शमी वृक्ष की पूजा और नीलकंठ पक्षी के दर्शन करने से सभी कार्य शुभफलदायी होते हैं। वहीं, इस बार विजय दशमी का श्रवण नक्षत्र में होना अति शुभकारक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार दशहरा के दिन ही भगवान राम ने लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त की थी।
दशहरे पर नीलकण्ठ के दर्शन की परंपरा बरसों से जुड़ी है। कहते है श्रीराम ने इस पक्षी के दर्शन के बाद ही रावण पर विजय प्राप्त की थी। लंका जीत के बाद जब भगवान राम को ब्राह्मण हत्या का पाप लगा था। भगवान राम ने अपने भाई लक्ष्मण के साथ मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की एवं ब्राह्मण हत्या के पाप से खूद को मुक्त कराया। तब भगवान शिव नीलकंठ पक्षी के रुप में धरती पर पधारे थे।
आश्विन मास शुक्ल पक्ष दशमी तिथि में अपराजिता देवी तथा शमी वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने भी अपराजिता देवी एवं शमी वृक्ष की पूजा की थी, जिसके चलते रावण के ऊपर विजय प्राप्त हुई। उन्होंने बताया कि इस बार दशहरा के दिन पंचक नहीं है।
धर्म सिंधु आदि ग्रंथों के अनुसार विजय दशमी पर श्रवण नक्षत्र का होना श्रेष्ठ माना गया है। श्रवण नक्षत्र राष्ट्र के लिए शुभ होता है। द्वापर युग में अर्जुन ने भी शमी वृक्ष की पूजा की थी और अपने हथियार शमी वृक्ष के पास रखकर तपस्या करने के लिए चले गए। इसके बाद उन्होंने महाभारत के युद्ध में विजय श्री प्राप्त की।
दशहरा के दिन यदि किसी को नीलकंठ नाम का पक्षी दिख जाए तो काफी शुभ होता है। कहा जाता है कि नीलकंठ भगवान शिव का प्रतीक है जिनके दर्शन से सौभाग्य, सुख-समृद्धि, आर्थिक तंगी दूर, व्यापार में सफलता और पुण्य की प्राप्ति होती है। दशहरा के दिन गंगा स्नान करने का फल कई गुना बढ़ जाता है।
इस दिन नीलकंठ के दर्शन होने से घर के धन-धान्य में वृद्धि होती है, और फलदायी एवं शुभ कार्य घर में अनवरत् होते रहते हैं। सुबह से लेकर शाम तक किसी वक्त नीलकंठ दिख जाए तो वह देखने वाले के लिए शुभ होता है।
नीलकण्ठ उसे कहाँ जाता है जिसका गला नीला हो। जनश्रुति और धर्मशास्त्रों के मुताबिक भगवान शंकर ही नीलकण्ठ है। इस पक्षी को पृथ्वी पर भगवान शिव का प्रतिनिधि और स्वरूप दोनों माना गया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार यह भाग्य विधाता होने के साथ-साथ किसानों का मित्र भी है, क्योंकि सही मायने में नीलकंठ किसानों के भाग्य का रखवारा भी होता है, जो खेतों में कीड़ों को खाकर किसानों की फसलों की रखवारी करता है।