प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद से विभिन्न रोगों का इलाज प्राचीन समय से होता रहा है। आयुर्वेंद में प्राकृतिक संपदाओं सहित आसपास उपलब्ध पेड़ पौधों से भी कई गुणकारी औषधी तैयार होती है जो जीवन रक्षक होने के साथ ही विभिन्न रोगों में लाभकारी है।
औषधीय गुणों से भरपुर इस पौधे से मनुष्य एवं पशुओं के विभिन्न रोगों का इलाज होता है। इस पौधे का बॉटनिकल नाम ल्युकस सेफालोटस है। इसका प्रयोग आयुर्वेद चिकित्सा पदद्धति में पेट सहित मुत्र विकार, नेत्र रोग सहित अन्य रोगों के उपचार में किया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्र में खेत खलिहानों में यह पौधा आसानी से उपलब्ध होता है। इसका उपयोग सीधे तौर पर साग सब्जी के रूप में भी किया जाता है। जानकारों की माने तो इसके सेवन से पाचन तंत्र मजबूत होता है। वहीं लंबे समय तक खांसी और कफ की समस्या में भी इसका उपयोग किया जाता है।
द्रोणपुष्पी के पत्तों को रगड़ने पर तुलसी के पत्तों के समान गंध निकलती है। द्रोण (प्याला) के फूल होने के कारण इसका नाम द्रोणपुष्पी है। इसका फल हरा व चमकीला होता है।
इसे हिन्दी में गूमा, संस्कृत में द्रोणपुष्पी, मराठी में तुबा, गुजराती में कूबी, बंगाली में हलकसा आदि नामों से जाना जाता है। द्रोणपुष्पी का स्वाद कड़वा होता है। इसकी प्रकृति गर्म होती है।
यह वात, पित्त, कफ को नष्ट करती है तथा बुखार, रक्तविकार, सर्पविष और पाचनसंस्थान रोगों में उपयोगी है। इसके अतिरिक्त सिर दर्द, पीलिया, खुजली, सर्दी, खांसी, लिवर (Liver) या यकृत, प्लीहा आदि रोगों में भी गुणकारी है।
द्रोणपुष्पी के फायदे | Dronpushpi ke fayde
लिवर बढ़ना (Fatty Liver) – द्रोणपुष्पी की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ सुबह-शाम कुछ हफ्ते तक सेवन करने से लिवर बढ़ने का रोग दूर हो जाता है।
खुजली – द्रोणपुष्पी के ताजा रस को खुजली वाली जगह पर मलने से राहत मिलती है। खाज-खुजली होने पर द्रोणपुष्पी का रस जहां पर खुजली हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।
सांप का जहर – द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में 2 कालीमिर्च पीसकर मिलाएं। इसकी एक मात्रा दिन में 3-4 बार रोगी को पिलायें या रोगी की आंखों में इसके पत्तों का रस 2-3 बूंद रोजाना 4-5 बार डालें। इससे जहर का असर खत्म हो जाता है।
सूजन – द्रोणपुष्पी और नीम के पत्ते के छोटे से भाग को पीसकर सूजन पर गर्म-गर्म लेप लगाने से आराम मिलता है।
खांसी – द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में आधा चम्मच बहेड़े का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।
संधिवात (Gout) – द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में इतना ही पीपल का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम लेने से संधिवात में लाभ मिलता है।
सिरदर्द – द्रोणपुष्पी का रस 2-2 बूंद की मात्रा में नाक के नथुनों में टपकाने से और इसमें 1-2 कालीमिर्च पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द में आराम मिलता है।
पीलिया – द्रोणपुष्पी के पत्तों का 2-2 बूंद रस आंखों में हर रोज सुबह-शाम कुछ समय तक लगातार डालते रहने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।
सर्दी – द्रोणपुष्पी का रस नाक में 2-2 बूंद डालने से और उसका रस नाक से सूंघने से सर्दी दूर हो जाती है।
बुखार – 2 चम्मच द्रोणपुष्पी के रस के साथ 5 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से ज्वर (बुखार) के रोग में आराम पहुंचता है।
श्वास रोग – द्रोणपुष्पी के सूखे फूल और धतूरे के फूल का छोटा सा भाग मिलाकर धूम्रपान करने से दमे का दौरा रुक जाता है।