हर साल बहन अपने भाई की कलाई में विधि अनुसार राखी बांधती है और अपनी रक्षा का वचन मांगती है. लेकिन क्या आप जानते है कि रक्षाबंधन क्यों बनाया जाता है? चलिए जानते हैं रक्षाबंधन मनाने के पीछे क्या हैं कारण।

रक्षाबंधन हिन्दुओं का महत्वपूर्ण पर्व है, जो भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है. भारत के अलावा भी विश्व भर में जहाँ पर हिन्दू धर्मं के लोग रहते हैं, वहाँ इस पर्व को भाई बहनों के बीच मनाया जाता है. इस त्यौहार का आध्यात्मिक महत्व के साथ साथ ऐतिहासिक महत्त्व भी है।

सदियों से चली आ रही रीति के मुताबिक, बहन भाई को राखी बांधने से पहले प्रकृति की सुरक्षा के लिए तुलसी और नीम के पेड़ को राखी बांधती है जिसे वृक्ष-रक्षाबंधन भी कहा जाता है. हालांकि आजकल इसका प्रचलन नही है।

राखी सिर्फ बहन अपने भाई को ही नहीं बल्कि वो किसी खास दोस्त को भी राखी बांधती है जिसे वो अपना भाई जैसा समझती है और तो और रक्षाबंधन के दिन पत्नी अपने पति को और शिष्य अपने गुरु को भी राखी बांधते है।

रक्षाबंधन के त्यौहार का महत्व

रक्षाबंधन भाई बहनो के बीच मनाया जाने वाला पर्व है. इस दिन बहन अपने भाइयों को रक्षाधागा बंधती हैं और भाई अपनी बहनों को जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं. इस त्यौहार के दिन सभी भाई बहन एक साथ भगवान की पूजा आदि करके आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

रक्षा बंधन सम्बंधित कुछ पौराणिक कथाएं जुडी हुईं है। इन कथाओं का वर्णन नीचे किया जा रहा है।

इंद्रदेव सम्बंधित मिथक

भविष्यत् पुराण के अनुसार दैत्यों और देवताओं के मध्य होने वाले एक युद्ध में भगवान इंद्र को एक असुर राजा, राजा बलि ने हरा दिया था. इस समय इंद्र की पत्नी सची ने भगवान विष्णु से मदद माँगी. भगवान विष्णु ने सची को सूती धागे से एक हाथ में पहने जाने वाला वयल बना कर दिया. इस वलय को भगवान विष्णु ने पवित्र वलय कहा।

सची ने इस धागे को इंद्र की कलाई में बाँध दिया तथा इंद्र की सुरक्षा और सफलता की कामना की. इसके बाद अगले युद्द में इंद्र बलि नामक असुर को हारने में सफ़ल हुए और पुनः अमरावती पर अपना अधिकार कर लिया. यहाँ से इस पवित्र धागे का प्रचलन आरम्भ हुआ. इसके बाद युद्द में जाने के पहले अपने पति को औरतें यह धागा बांधती थीं. इस तरह यह त्योहार सिर्फ भाइयों बहनों तक ही सीमित नहीं रह गया।

राजा बलि और माँ लक्ष्मी

भगवत पुराण और विष्णु पुराण के आधार पर यह माना जाता है कि जब भगवान विष्णु ने राजा बलि को हरा कर तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया, तो बलि ने भगवान विष्णु से उनके महल में रहने का आग्राह किया. भगवान विष्णु इस आग्रह को मान गये. हालाँकि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी को भगवान विष्णु और बलि की मित्रता अच्छी नहीं लग रही थी, अतः उन्होंने भगवान विष्णु के साथ वैकुण्ठ जाने का निश्चय किया।

इसके बाद माँ लक्ष्मी ने बलि को रक्षा धागा बाँध कर भाई बना लिया. इस पर बलि ने लक्ष्मी से मनचाहा उपहार मांगने के लिए कहा. इस पर माँ लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा कि वह भगवान विष्णु को इस वचन से मुक्त करे कि भगवान विष्णु उसके महल मे रहेंगे. बलि ने ये बात मान ली और साथ ही माँ लक्ष्मी को अपनी बहन के रूप में भी स्वीकारा।

संतोषी माँ सम्बंधित मिथक

भगवान विष्णु के दो पुत्र हुए शुभ और लाभ. इन दोनों भाइयों को एक बहन की कमी बहुत खलती थी, क्यों की बहन के बिना वे लोग रक्षाबंधन नहीं मना सकते थे. इन दोनों भाइयों ने भगवान गणेश से एक बहन की मांग की. कुछ समय के बाद भगवान नारद ने भी गणेश को पुत्री के विषय में कहा।

इस पर भगवान गणेश राज़ी हुए और उन्होंने एक पुत्री की कामना की. भगवान गणेश की दो पत्नियों रिद्धि और सिद्धि, की दिव्य ज्योति से माँ संतोषी का अविर्भाव हुआ. इसके बाद माँ संतोषी के साथ शुभ लाभ रक्षाबंधन मना सके।

कृष्ण और द्रौपदी सम्बंधित मिथक

महाभारत युद्ध के समय द्रौपदी ने कृष्ण की रक्षा के लिए उनके हाथ मे राखी बाँधी थी. इसी युद्ध के समय कुंती ने भी अपने पौत्र अभिमन्यु की कलाई पर सुरक्षा के लिए राखी बाँधी।

यम और यमुना सम्बंधित मिथक 

एक अन्य पौराणिक कहानी के अनुसार, मृत्यु के देवता यम जब अपनी बहन यमुना से 12 वर्ष तक मिलने नहीं गये, तो यमुना दुखी हुई और माँ गंगा से इस बारे में बात की. गंगा ने यह सुचना यम तक पहुंचाई कि यमुना उनकी प्रतीक्षा कर रही हैं. इस पर यम युमना से मिलने आये. यम को देख कर यमुना बहुत खुश हुईं और उनके लिए विभिन्न तरह के व्यंजन भी बनाये।

यम को इससे बेहद ख़ुशी हुई और उन्होंने यमुना से कहा कि वे मन चाहा वरदान मांग सकती हैं. इस पर यमुना ने उनसे ये वरदान माँगा कि यम जल्द पुनः अपनी बहन के पास आयें. यम अपनी बहन के प्रेम और स्नेह से गद गद हो गए और यमुना को अमरत्व का वरदान दिया. भाई बहन के इस प्रेम को भी रक्षा बंधन के हवाले से याद किया जाता है।

शताब्दी में पहली बार चतुर्योग में रक्षा बंधन, यह है राखी बांधने का शुभ मुहूर्त

रक्षा बंधन पर आज सोमवार और पूर्णिमा का योग भगवान महादेव की विशेष कृपा दिलाएगा। इस बार रक्षा बंधन पर शताब्दी में पहली बार चतुर्योग में रक्षा बंधन आ रहा है। सर्वार्थ-सिद्धि योग आयुष्मान योग के चलते दीर्घायु का वर प्रदान करेगा। इस बार भद्रा और राहुकाल 9.30 से पहले ही समाप्त हो रहे हैं। इस योग में भाई-बहन की सभी इच्छाएं पूरी होंगी।

राहुकाल प्रातः 07 बजकर 30 मिनट से 09 बजे तक। आज सुबह 9 बजकर 28 मिनट तक भद्रा पूर्णिमा तिथि रात्रि 09 बजकर 29 मिनट तक उपरांत प्रतिपदा तिथि का आरंभ।

सुबह, दोपहर, शाम के राखी बांधने के सभी शुभ मुहूर्त

शुभ योग : सुबह 9:31 से 10:46 तक, अभिजीत मुहूर्त : दोपहर 12:00 से 12:53 तक, अपराहन मुहूर्त : दोपहर 1:48 से शाम 4:29 तक, लाभ मुहूर्त : दोपहर 3:48 से शाम 5:29 तक, संध्या अमृत मुहूर्त : शाम 5:29 से 7:10 तक, प्रदोष काल : शाम 7:06 से रात 9:14 तक।

पौराणिक संदर्भ के मुताबिक

पौराणिक कथाओं में भविष्य पुराण के मुताबिक, देव गुरु बृहस्पति ने देवस के राजा इंद्र को व्रित्रा असुर के खिलाफ लड़ाई पर जाने से पहले अपनी पत्नी से राखी बंधवाने का सुझाव दिया था. इसलिए इंद्र की पत्नी शचि ने उन्हें राखी बांधी थी।

एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, रक्षाबंधन समुद्र के देवता वरूण की पूजा करने के लिए भी मनाया जाता है. आमतौर पर मछुआरें वरूण देवता को नारियल का प्रसाद और राखी अर्पित करके ये त्योहार मनाते है. इस त्योहार को नारियल पूर्णिमा भी कहा जाता है।

ऐतिहासिक संदर्भ के मुताबिक

यह भी एक मिथ है कि है कि महाभारत की लड़ाई से पहले श्री कृष्ण ने राजा शिशुपाल के खिलाफ सुदर्शन चक्र उठाया था, उसी दौरान उनके हाथ में चोट लग गई और खून बहने लगा तभी द्रोपदी ने अपनी साड़ी में से टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण के हाथ पर बांध दिया. बदले में श्री कृष्ण ने द्रोपदी को भविष्य में आने वाली हर मुसीबत में रक्षा करने की कसम दी थी।

यह भी कहा जाता है कि एलेक्जेंडर जब पंजाब के राजा पुरुषोत्तम से हार गया था तब अपने पति की रक्षा के लिए एलेक्जेंडर की पत्नी रूख्साना ने रक्षाबंधन के त्योहार के बारे में सुनते हुए राजा पुरुषोत्तम को राखी बांधी और उन्होंने भी रूख्साना को बहन के रुप में स्वीकार किया।

एक और कथा के मुताबिक ये माना जाता है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने सम्राट हुमायूं को राखी भिजवाते हुए बहादुर शाह से रक्षा मांगी थी जो उनका राज्य हड़प रहा था. अलग धर्म होने के बावजूद हुमायूं ने कर्णावती की रक्षा का वचन दिया।

रक्षाबंधन का संदेश

रक्षाबंधन दो लोगों के बीच प्रेम और इज्जत का बेजोड़ बंधन का प्रतीक है. आज भी देशभर में लोग इस त्योहार को खुशी और प्रेम से मनाते है और एक-दूसरे की रक्षा करने का वचन देते है।