घर के हर कोने और दिशा का एक ग्रह से संबंध होता है। यह ग्रह इस कोने या दिशा का स्वामी होता है। जब बात पुराने जमाने के घरों या गांव के बड़े-बड़े खुले आंगनवाले घरों से तुलना की हो तो शहरों में बने आजकल के घर उनके सामने बहुत छोटे हैं।
लेकिन फिर भी दिशाओं और कोने के स्वामी ग्रह तो अपना प्रभाव दिखाते ही हैं। अब तक वास्तु में हम दिशाओं, खिड़की, दरवाजों, फर्नीचर के अरेंजमेंट, रसोई की स्थिति, बाथरूम का स्थान आदि पर बात करते रहे हैं। आइए, इस बार बात करते हैं घर की दिशाओं और कोनों के स्वामी ग्रह और उनके प्रभाव के बारे में।
भोजन, वस्त्र व आवास प्रत्येक मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। इनके अभाव में संसार में मानव मात्र का जीवनयापन करना कठिन व दुष्कर हो जाता है। किन्तु कई बार ये वस्तुएं प्राप्त होते हुए भी हम इनके सुख का उपभोग नहीं कर पाते।
इसके पीछे मूल कारण है हमारी जीवनशैली जो हमें पाश्चात्य जगत की ओर तो आकर्षित कर रही है किन्तु हमें हमारी मूल संस्कृति व परम्पराओं से विलग कर रही है।
आज मुख्य रूप से हम भवन निर्माण में ईशान कोण के महत्त्व पर कुछ जानकारियां अपने पाठकों को देंगे। वर्तमान युग में भोजन व वस्त्र के उपरांत भवन प्रत्येक व्यक्ति का सपना होता है।
आज हर व्यक्ति अपने स्वयं के मकान को प्राप्त करने के लिए अथक परिश्रम करता है किन्तु अक्सर यह देखने में आता है कि जब उसका यह स्वप्न मूर्तरूप लेता है तो वह इससे वह सुख प्राप्त नहीं कर पाता जिसकी उसने अपेक्षा की थी। ऐसे में वह गहन निराशा में घिर जाता है। इसके पीछे मुख्य कारण है वास्तु दोष।
भवन निर्माण करने में वास्तु का ध्यान रखना अति-आवश्यक होता है। आज के फ़ैशनपरस्त युग में अधिकांश लोग इस तथ्य की उपेक्षा कर भवन निर्माण के पश्चात शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति उठाते हैं।
वास्तु शास्त्र में अनेक बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है किन्तु सर्वाधिक महत्त्व ईशान कोण का होता है। इस स्टोरी की शुरुआत करते हैं, ईशान कोण से। वास्तु शास्त्री के अनुसार, जानते हैं ईशान कोण में क्या होने पर कैसा फल मिलता है…
ईशान कोण का स्वामी ग्रह है गुरु
ईशान कोण का स्वामी ग्रह होता है गुरु। गुरु एक ऐसा ग्रह है, जो धन, संपदा और तरक्की का कारक ग्रह माना जाता है। यह ग्रह ही तय करता है कि घर में रहनेवाले परिवार के सदस्य किस प्रवृत्ति के होंगे और कौन किस दिशा में सफलता प्राप्त करेगा।
यदि ईशान कोण में मुख्य द्वार होने का प्रभाव
यदि घर का मुख्य द्वार ईशान कोण में होता है तो घर का मालिक मनचाहे क्षेत्र में तरक्की करता है। घर का मुखिया सात्विक विचारोंवाला होता है। ऐसे परिवार का एक बेटा समाज में घर-परिवार का नाम जरूर रोशन करता है और बहुत सम्मान कमाता है।
ईशान कोण में किचन या रसोई घर
अगर घर के ईशान कोण में रसोईघर हो तो परिवार के सदस्यों को सामान्य सफलता से ही संतोष करना पड़ता है। उस परिवार की बुजुर्ग महिला, बड़ी बेटी या बहू धार्मिक प्रवृत्ति की होती है। सभी का दिमाग सर्विस से जुड़े मामलों में बहुत चलता है लेकिन घर में कलह का माहौल भी रहता है।
ईशान कोण में बेडरूम
अगर घर के ईशान कोण में बेडरूम होता है तो घर के मुखिया के स्वभाव में उतावलापन रहता है। किसी भी प्रकार की अग्नि प्रज्वलित होने पर उसमें भावनात्मक रूप से बेचैनी रहती है। हालांकि घर के स्वामी का भाई किसी संस्था में हेड हो सकता है।
ईशान कोण में स्टोर रूम
यदि ईशान कोण में घर का स्टोर रूम हो और यहां बहुत अधिक अनाज रखा जाए तो ऐसे घर का स्वामी घूमने का बहुत शौकीन होता है। अगर इस कोण में डाइनिंग रूम हो तो इस परिवार के लोग बहुत ही धार्मिक और सात्विक विचारोंवाले होते हैं।
इस कोने में धन और आभूषणों का संचय किया जाए तो ऐसे घर का मालिक बहुत बुद्धिमान होता है और घर का एक बच्चा किसी क्षेत्र में बहुत नाम कमाता है।
ईशान कोण में जल का स्थान होने पर
यदि ईशान कोण में कुआं, बाथरूम,नल या पूजा घर हो तो परिवार के लोगों की आयु में वृद्धि होती है। स्वास्थ्य अच्छा रहता है। मन शांत रहता है और भविष्य सुखद होता है।
ईशान कोण को भगवान का प्रमुख क्षेत्र
ईशान कोण को ईश अर्थात् भगवान का प्रमुख क्षेत्र माना जाता है। भवन निर्माण करते समय ईशान कोण व ब्रह्म स्थान (मध्य क्षेत्र) की पवित्रता का समुचित ध्यान रखा जाना आवश्यक है ऐसा ना करने पर भवन स्वामी अनेकानेक परेशानियों से ग्रस्त हो जाता है।
जनमानस में यह भ्रांति है कि ईशान कोण केवल उत्तर-पूर्व के कोने को कहा जाता है जबकि वास्तविकता में वास्तु कोणों का निर्धारण समूचे भूखण्ड को नौ खंडों में बराबर-बराबर विभक्त करने से होता है।
ईशान कोण किसका निर्माण हो और किसका निषिद्ध होता है
ईशान कोण में मंदिर के अतिरिक्त कोई भी निर्माण नहीं होना चाहिए। ईशान कोण में टायलेट/बाथरूम का निर्माण सर्वथा निषिद्ध होता है। ईशान कोण में पानी का टंकी जैसे भारयुक्त निर्माण का भी निषेध है। ईशान कोण किसी भी तरह से भारयुक्त नहीं होना चाहिए।
भवन का ईशान कोण व ब्रह्म स्थान जितना पवित्र व शुद्ध होगा भवन स्वामी उतना ही सुखी व समृद्धिशाली होगा। अत: भवन निर्माण करते समय वास्तु दोष व ईशान कोण के बारे में भलीभांति विचार कर ही भवन निर्माण करना श्रेयस्कर होता है।