➡ सत्यानाशी (Prickly Poppy) परिचय :
सत्यानाशी (Prickly Poppy) एक अमेरिकी वनस्पति है, लेकिन भारत में यह सभी स्थानों पर पैदा होती है। सत्यानाशी के किसी भी अंग को तोड़ने से उसमें से पीले रंग का दूध निकलता है, इसलिए इसे स्वर्णक्षीरी भी कहते है। सत्यानाशी का फल चौकोर, कंटकित, प्यालानुमा होता है, जिसमें राई की तरह छोटे-छोटे काले रंग के बीज भरे होते हैं जो जलते कोयलों पर डालने से भड़भड़ बोलते हैं। उतर प्रदेश में इसको भड़भांड़ कहते हैं। इस वनस्पति के सारे पौधे पर कांटे होते हैं।सत्यानाशी के 2 से 4 फुट ऊंचे झाड़ होते हैं। छोटा, पत्ते लम्बे कटे-कटे, कंटकित, बीच का भाग मोटा, सफेद और अन्य शिरायें भी सफेद होती है। इसके फूल चमकीले पीले रंग के होते हैं, सत्यानाशी का फल 1 से डेढ़ इंच लम्बा चौकोर होता हैं। इसके मूल (जड़) को चोक कहते हैं। इसमें प्रोटोपिन, बर्बेरीन नामक क्षाराभ, बीजों में 22 से 26 प्रतिशत तक अरूचिकर तीखा तेल होता है।
सत्यानाशी (Prickly Poppy) को संस्कृत मेंकटुपर्णी, कान्चक्षीरी, स्वर्णक्षीरी, पीतदुग्धा, हिंदी मेंस्याकांटा, भड़भांड, सत्यानाशी, पीला धतूरा, फिरंगीधतूरा, मराठी मेंमिल धात्रा, काटे धोत्रा, गुजराती मेंदारूड़ी, पंजाबी मेंसत्यानाशी, कटसी, भटकटैया करियाई, बंगाली मेंशियालकांटा, सोना खिरनी, तमिल मेंकुडियोटि्ट, कुश्मकं आदि नामो से जाना जाता है।
सत्यानाशी खांसी को खत्म करती है। बाहरी प्रयोग में इसका दूध, पत्ते का रस तथा बीज का तेल प्रयोग में लिया जाता है। जो फोड़े-फुन्सी को खत्म करते हैं, सत्यानाशी जख्म को भरने वाली तथा कोढ़ को ठीक करने वाली होती है। सत्यानाशी की जड़ का लेप सूजन और जहर को कम करने वाला होता हैं। इसके बीज दर्द को कम करते हैं। यह कभी-कभी उल्टी भी पैदा करता है। सत्यानाशी की जड़ पेट के कीड़े को नष्ट करती है। सत्यानाशी की जड़ का रस खून की गंदगी तथा इसका दूध सूजन को खत्म करता है।
➡ विभिन्न रोगों मे सत्यानाशी (Prickly Poppy) से उपचार :
- श्वास रोग और खाँसी : श्वास रोग (दमा) तथा खांसी में सत्यानाशी की जड़ का चूर्ण आधा से 1 ग्राम गर्म पानी या दूध के साथ सुबह-शाम रोगी को पिलाने से कफ (बलगम) बाहर निकल जाता है, अथवा सत्यानाशी का पीला दूध 4-5 बूंद बतासे में मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
- दाद : सत्यानाशी के पत्ते का रस या तेल को लगाने से दाद दूर हो जाता है।
- मूत्रविकार : मूत्रनली (पेशाब करने की नली) में यदि जलन हो तो सत्यानाशी के 20 ग्राम पंचांग को 200 मिलीलीटर पानी में भिगोकर तैयार कर शर्बत या काढ़ा रोगी को पिलाने से मूत्र (पेशाब) अधिक आता है और मूत्रनली (पेशाब करने की नली) की जलन मिट जाती है।
- पीलिया : 10 मिलीलीटर गिलोय के रस में सत्यानाशी के तेल की 8 से 10 बूंद मिलाकर सुबह-शाम रोगी को पिलाने से पीलिया रोग समाप्त हो जाता है। 1 ग्राम सत्यानाशी की जड़ की छाल का चूर्ण सेवन करने से पाण्डु (पीलिया) रोग मिट जाता है।
- पेट का दर्द : सत्यानाशी के 3 से 5 मिलीलीटर पीले दूध को 10 ग्राम घी के साथ रोगी को पिलाने से पेट का दर्द मिट जाता है।
- आंखों के रोग : सत्यानाशी के दूध की 1 बूंद मे 3 बूंद घी मिलाकर आंखों में अंजन (काजल) करने से आंखों का सूखापन और आंखों का अंधापन दूर होता है।
- दमे के रोग में : सत्यानाशी के पंचाग (जड़, तना, पत्ते, फल, फूल) का 500 मिलीलीटर रस निकालकर आग पर उबालना चाहिए। जब वह रबड़ी की तरह गाढ़ा हो जाए तब उसमें पुराना गुड़ 60 ग्राम और राल 20 ग्राम मिलाकर, गर्म कर लें। फिर इसकी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की गोलियां बना लेनी चाहिए, 1 गोली दिन में 3 बार गर्म पानी के साथ रोगी को देने से दमें के रोग में लाभ होता है।
- कुष्ठ रोग : सत्यानाशी के रस में थोड़ा नमक मिलाकर रोजाना 5 सें 10 मिलीलीटर की मात्रा मे लम्बे समय तक सेवन करने से कुष्ठ रोग (कोढ़) में लाभ होता है।
- मुंह के छाले : सत्यानाशी की टहनी तोड़कर मुंह के छालें पर लगाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
- कान का दर्द : सत्यानाशी का तेल कान में डालने से कान का दर्द, कान का जख्म और कान से कम सुनाई देना भी ठीक हो जाता है।
- हकलाना, तुतलाना : सत्यानाशी का दूध जीभ पर मलने से हकलाने का रोग ठीक हो जाता है।
- बवासीर (अर्श) : सत्यानाशी की जड, सेंधा नमक और चक्रमर्द के बीज को 1-1 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को छाछ के साथ पीने से अर्श (बवासीर) रोग नष्ट होता है।
- पथरी : सत्यानाशी का दूध निकाल कर लगभग 1 मिलीलीटर की मात्रा में रोजाना लेने से पेट की पथरी ठीक हो जाती है।
- नाक के रोग : सत्यानाशी (पीला धतूरा) के पीले दूध को घी में मिलाकर नाक की फुंसियों पर लगाने से आराम आ जाता है।
- कुष्ठ (कोढ़) : 25 मिलीलीटर सत्यानाशी (पीला धतूरा) के रस में 10 ग्राम शहद मिलाकर पीने से कोढ़ ठीक हो जाता है।
- मलेरिया का बुखार : 1 से 2 मिलीलीटर सत्यानाशी का दूध सुबह और शाम नींबू के रस के साथ पीने से मलेरिया के बुखार में लाभ होता हैं।
- दांतों में कीड़े लगना : सत्यानाशी के बीज को जलाकर इसके धूंए को मुंह में रखने से दांत के कीड़े दूर होते हैं और दांत का दर्द दूर होता है।
- खांसी : सत्यानाशी की कोमल जड़ को काटकर छाया में सुखा लें सूख जाने पर उसका चूर्ण बना लें। इसमे बराबर मात्रा मे कालीमिर्च का चूर्ण मिलायें और लहसुन के रस में 3 घंटे घोलकर चने के आकार की गोलियां बनायें। रोजाना 3-4 बार 1-1 गोली ताजे पानी के साथ रोगी को देना चाहिए। अथवा रोगी इन गोलियों को खांसी के वेग के समय मुंह में रखकर भी चूस सकता है। यह गोली तेज खांसी को भी काबू मे ले आती है। सत्यानाशी के रस में 8 साल पुराना गुड़ मिलाकर चने के बराबर आकार की गोलियां बनाकर खाने से खांसी दूर हो जाती है। औषधि के सेवन काल में नमक का सेवन बिल्कुल भी करना चाहिए।
- कब्ज के लिए : 10 ग्राम सत्यानाशी की जड़ की छाल, और 5 दाने काली मिर्च के लेकर पानी में पीसकर लेने से पेट का दर्द शांत हो जाता है। 1 ग्राम से 3 ग्राम तक सत्यानाशी के तेल को पानी में डालकर पीने से पेट साफ हो जाता है। 6 ग्राम से 10 ग्राम सत्यानाशी की जड़ की छाल पानी के साथ खाने से शौच साफ आती है। सत्यानाशी के बीज के तेल की 30 बूंद को दूध में मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से कब्ज (पेट की गैस) दूर होती है।
- पेट के कीड़ों के लिए : सत्यानाशी की जड़ की छाल का चूर्ण लगभग आधा ग्राम चूर्ण से लेकर 1 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से आंतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं। 2 चुटकी सत्यानाशी की जड़ को पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर पानी के साथ पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
- एक्जिमा के रोग में : सत्यानाशी के पौधे के ताजे रस मे पानी मिलाकर भाप द्वारा उसका रस तैयार करें। यह 25 मिलीलीटर रस सुबह और शाम पीने से एक्जिमा और त्वचा के दूसरे रोग समाप्त हो जाते हैं। अथवा सत्यानाशी (पीला धतूरा) के ताजे पौधे के रस में बराबर मात्रा में पानी मिलाकर उसका रस निकाल लें। यह रस 25 मिलीलीटर रोजाना सुबह और शाम पीने से एक्जिमा और दूसरे चमड़ी के रोग समाप्त हो जाते हैं।
- खुजली के लिए : सत्यानाशी के बीज को पानी के साथ पीसकर लगाने से या उसका लेप त्वचा पर करने से खुजली दूर होती है।
- नाखून के रोग : नाखूनों की खुजली दूर करने के लिए सत्यानाशी की जड़ को घिसकर रोजाना 2 से 3 बार नाखूनों पर लेप करने से नाखूनों के रोग समाप्त हो जाते हैं।