- दमा (Asthma) आज के प्रदूषण भरे वातावरण की देन हैं। दमा वस्तुतः एलर्जी के कारण होता है। जब श्वसनी (bronchus) में हवा भर जाता है तब फेफड़ों में सूजन होने लगता है जिसके फलस्वरूप साँस लेने में मुश्किल होने लगती हैं। फेंफड़ो के अंदर जाने वाला वायु मार्ग छोटा या संकीर्ण हो जाने के कारण दमा का एटैक होता है। तब लोग सामान्य साँस भी जोर-जोर से लेने लगते हैं और नाक से जब साँस लेना दूभर हो जाता है तब मुँह से साँस लेने लगते हैं। दमा के रोगी को साँस लेने से ज़्यादा साँस छोड़ने में मुश्किल होती है। एलर्जी के कारण श्वसनी में बलगम पैदा हो जाता है जो कष्ट को और भी बढ़ा देता है। सांस लेने में दिक्कत या कठिनाई महसूस होने को श्वास रोग कहते हैं। इस रोग की अवस्था में रोगी को सांस बाहर छोड़ते समय जोर लगाना पड़ता है। इस रोग में कभी-कभी श्वांस क्रिया चलते-चलते अचानक रुक जाती है जिसे श्वासावरोध या दम घुटना कहते हैं।
- श्वांस रोग और दमा रोग दोनों अलग-अलग होते हैं। फेफड़ों की नलियों की छोटी-छोटी तंतुओं (पेशियों) में जब अकड़नयुक्त संकोचन उत्पन्न होता है तो फेफड़ा सांस द्वारा लिए गए वायु (श्वास) को पूरी अन्दर पचा नहीं पाता है जिससे रोगी को पूरा श्वास खींचे बिना ही श्वास छोड़ने को मजबूर हो जाता है। इसी स्थिति को दमा या श्वास रोग कहते हैं। यह श्वसन संस्थान का एक भयंकर रोग है। इस रोग में सांस नली में सूजन या उसमें कफ जमा हो जाने के कारण सांस लेने में बहुत अधिक कठिनाई होती है। दमा का दौरा अधिकतर सुबह के समय ही पड़ता है। यह अत्यंत कष्टकारी है जो आसानी से ठीक नहीं होता है। आज के समय में दमा (अस्थमा) तेजी से स्त्री-पुरुष व बच्चों को अपना शिकार बना रहा है। यह रोग धुंआ, धूल, दूषित गैस आदि जब लोगों के शरीर में पहुंचती है तो यह शरीर के फेफड़ों को सबसे अधिक हानि पहुंचाती है। प्रदूषित वातावरण में अधिक रहने से श्वास रोग (अस्थमा) की उत्पत्ति होती है।आयुर्वेद के अनुसार यह पांच प्रकार का होता है : 1. क्षुद्र श्वांस। 2. तमक श्वास। 3. श्वास। 4. ऊध्र्वश्वास 5. छिन्न श्वास
दमा या अस्थमा (Asthma) होने का कारण :
- श्वास रोग एक एलर्जिक तथा जटिल बीमारी है जो ज्यादातर श्वांस नलिका में धूल के कण जम जाने के कारण या श्वास नली में ठंड़ लग जाने के कारण होती है।
- दमा रोग जलन पैदा करने वाले पदार्थों का सेवन करने, देर से हजम होने वाले पदार्थों का सेवन करने, रसवाहिनी शिराओं को रोकने वाले तथा दस्त रोकने वाले पदार्थों के सेवन करने के कारण होता है। यह रोग ठंड़े पदार्थों अथवा ठंड़ा पानी अधिक सेवन करने, अधिक हवा लगने, अधिक परिश्रम करने, भारी बोझ उठाने, मूत्र का वेग रोकने, अधिक उपश्वास तथा धूल, धुंआ आदि के मुंह में जाने के कारणों से श्वास रोग उत्पन्न होता है।
- अधिक दिनों से दूषित व बासी ठंड़े खाद्य पदार्थों का सेवन करने और प्रदूषित वातावरण में रहने से दमा (अस्थमा) रोग होता है। कुछ बच्चों में दमा रोग वंशानुगत भी होता है। माता-पिता में किसी एक को दमा (अस्थमा) होने पर उनकी संतान को भी (अस्थमा) रोग हो सकता है।
- वर्षा ऋतु में दमा रोग अधिक होता है क्योंकि इस मौसम में वातावरण में अधिक नमी (आर्द्रता) होती है। ऐसे वातावरण में दमा (अस्थमा) के रोगी को श्वास लेने में अधिक कठिनाई होती है और रोगी को दमा के दौरे पड़ने की संभावना रहती है। दमा के दौरे पड़ने पर रोगी को घुटन होने लगती है और कभी-कभी दौरे के कारण बेहोश भी होकर गिर पड़ता है।
दमा या अस्थमा (Asthma) होने के लक्षण :
- क्षुद्रश्वांस : रूखे पदार्थों का सेवन करने तथा अधिक परिश्रम करने के कारण जब कुछ वायु ऊपर की और उठती है तो क्षुद्रश्वांस उत्पन्न होती है। क्षुद्रश्वांस में वायु कुपित होती है परन्तु अधिक कष्ट नहीं होता है। यह रोग कभी-कभी स्वत: ही ठीक हो जाता है।
- तमस श्वांस (पीनस) : इस दमा रोग में वायु गले को जकड़ लेती है और गले में जमा कफ ऊपर की ओर उठकर श्वांस नली में विपरीत दिशा में चढ़ता है जिसे तमस ( पीनस ) रोग उत्पन्न होता है। पीनस होने पर गले में घड़घड़ाहट की आवाज के साथ सांस लेने व छोड़ने पर अधिक पीड़ा होती है। इस रोग में भय , भ्रम , खांसी , कष्ट के साथ कफ का निकलना, बोलने में कष्ट होना, अनिद्रा (नींद न आना) आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। सिर दर्द , मुख का सूख जाना और चेतना का कम होना इस रोग के लक्षण हैं। यह रोग वर्षा में भीगने या ठंड़ लगने से भी हो जाता है। पीनस रोग में लेटने पर कष्ट तथा बैठने में आराम का अनुभव होता है।
- ऊध्र्वश्वास (सांस को जोर से ऊपर की ओर खिंचना) : ऊपर की ओर जोर से सांस खींचना, नीचे को लौटते समय कठिनाई का होना, सांसनली में कफ का भर जाना, ऊपर की ओर दृष्टि का रहना, घबराहट महसूस करना, हमेशा इधर-उधर देखते रहना तथा नीचे की ओर सांस रुकने के साथ बेहोशी उत्पन्न होना आदि लक्षण होते हैं।
- महाश्वांस : सांस ऊपर की ओर अटका महसूस होना, खांसने में अधिक कष्ट होना, उच्च श्वांस, स्मरणशक्ति का कम होना , मुंह व आंखों का खुला रहना, मल-मूत्र की रुकावट, बोलने में कठिनाई तथा सांस लेने व छोड़ते समय गले से घड़घड़ाहट की आवाज आना आदि इस रोग के लक्षण हैं। जोर-जोर से सांस लेना, आंखों का फट सा जाना और जीभ का तुतलाना -ये महाश्वास के लक्षण हैं।
- छिन्न श्वांस : इस रोग में रोगी ठीक प्रकार से श्वांस नहीं ले पाता, सांस रुक-रुककर चलती है, पेट फूला रहता है, पेडू में जलन होती है, पसीना अधिक मात्रा में आता, आंखों में पानी रहता है तथा घूमना व श्वांस लेने में कष्ट होता है। इस रोग में मुंह व आंखे लाल हो जाती हैं, चेहरा सूख जाता है, मन उत्तेजित रहता है और बोलने में परेशानी होती है। रोगी की मूत्राशय में बहुत जलन होती है और रोगी हांफता हुआ बड़बड़ाता रहता है।
दमा या अस्थमा (Asthma) के लिए घरेलू उपाय
- अडूसा या वासा: अडूसा का रस लगभग आधा ग्राम और आधा ग्राम शहद के साथ सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करने से दमा रोग शान्त होता है। अड़ू़सा (वासा) और अदरक का रस 5-5 मिलीलीटर की मात्रा में लेकर दिन में 3-3 घंटे के अन्तर पर सेवन करने से 40 दिनों में दमा ठीक हो जाता है।
- अपामार्ग (चिरचिटा) : लगभग आधा मिलीलीटर अपामार्ग का रस शहद में मिलाकर 4 चम्मच पानी के साथ भोजन के बाद सेवन करने से गले व फेफड़ों में जमा कफ निकल जाता है और दमा ठीक होता है। चिरचिटा की जड़ को सुखाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ खाने से श्वांस रोग दूर होता है। (ध्यान रखें कि चिरचिटा की जड़ को निकालते समय इसकी जड़ में लोहा न छूने पाए)।
- अदरक : लगभग 1 ग्राम अदरक के रस को 1 चम्मच पानी के साथ सुबह-शाम लेने से दमा व श्वांस रोग ठीक होता है। अदरक के रस में शहद मिलाकर खाने से सभी प्रकार के श्वांस रोग, खांसी, जुकाम तथा अरुचि आदि ठीक होते हैं। अदरक का रस शहद के साथ सेवन करने से बुढ़ापे में उत्पन्न दमा ठीक होता है।
- सोंठ : सोंठ, सेंधानमक, जीरा, भुनी हुई हींग और तुलसी के पत्ते इन सभी को बराबर मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इनमें से 10 ग्राम चूर्ण 300 मिलीलीटर पानी में उबालकर पीने से अस्थमा रोग ठीक होता है। सोंठ, कालानमक, भुनी हुई हींग, अनारदाना एवं अम्लबेंत बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण से दुगना गुड़ लेकर मिला लें और इसकी गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली मुंह में रखकर चूसने से गले की खुश्की दूर होती और खांसी व दमा में लाभ मिलता है। हरड़ तथा सोंठ को पानी के साथ पीस लें और यह लगभग 6 ग्राम की मात्रा में गर्म दूध के साथ सेवन करें। इससे हिचकी दूर होती है और दमा में आराम मिलता है।
- दूध : अस्थमा के रोगी को प्रतिदिन दूध का सेवन करना चाहिए। दूध से कफ का बनना रुकता है। रोगी को प्रतिदिन दूध में 2 पीपल डालकर गर्म करें और फिर दूध को छानकर मिश्री मिलाकर सेवन करें। इससे दमा रोग समाप्त होता है।
- तेजपात : तेजपात और पीपल 2-2 ग्राम की मात्रा में अदरक के मुरब्बे की चाशनी में बुरककर चटाने से दमा और श्वासनली का रोग ठीक होता है। सूखे तेजपात के पत्तों का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में 1 कप गर्म दूध के साथ सुबह-शाम प्रतिदिन पीने से श्वांस व दमा रोग शान्त होता है।
- ग्वारपाठा : ग्वारपाठा के पत्ते 250 ग्राम और सेंधानमक 25 ग्राम को मिलाकर चूर्ण बना लें और इसे एक मिट्टी के बर्तन में रखकर भस्म बना लें। यह भस्म 2 ग्राम की मात्रा में 10 ग्राम मुनक्का के साथ खाने से दमा रोग समाप्त होता है।
- नींबू : नींबू का रस 10 मिलीलीटर और अदरक का रस 5 मिलीलीटर मिलाकर हल्के गर्म पानी के साथ पीने से अस्थमा का रोग नष्ट होता है। एक नींबू का रस, 2 चम्मच शहद व 1 चम्मच अदरक का रस लेकर 1 कप गर्म पानी में डालकर पीएं। इसका सेवन प्रतिदिन सुबह करने से दमा रोग में लाभ मिलता है। दमा का दौरा पड़ने पर गर्म पानी में 1 नींबू निचोड़कर पीने से लाभ मिलता है। यह हृदय रोग, ब्लड प्रेशर तथा पाचन संस्थान के लिए लाभकारी होता है।
- लहसुन : 10 ग्राम लहसुन के रस को हल्के गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा में सांस लेने में होने वाली परेशानी दूर होती है। लगभग 15-20 बूंद लहसुन के रस को हल्के गर्म पानी के साथ सुबह, दोपहर और शाम को खाने से दमा और श्वास की बीमारी दूर होती है। दमा के रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन लहुसन, तुलसी के पत्ते व गुड़ को चटनी बनाकर सेवन करना चाहिए। लहसुन की 20 कलियां और 20 ग्राम गुड़ को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाए तो इसे छानकर लहसुन की कलियां खाकर पानी को हल्का ठंड़ा करके पीएं। इसका उपयोग प्रतिदिन एक बार करने से श्वास व दमा रोग में आराम मिलता है।
- प्याज : प्याज का रस, अदरक का रस, तुलसी के पत्तों का रस व शहद 3-3 ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह-शाम खाने से अस्थमा रोग नष्ट होता है। सफेद प्याज का रस और शहद बराबर मात्रा में मिलाकर चाटने से दमा ठीक होता है।
- हल्दी : हल्दी को पीसकर चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को भूनकर शीशी में बन्द करके रखें। यह चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में हल्के गर्म पानी के साथ प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा रोग से पीड़ित रोगी को बहुत लाभ मिलता है। हल्दी को पीसकर तवे पर भूनकर शहद के साथ चाटने से श्वास रोग में आराम मिलता है। हल्दी की 2 गांठे, अड़ूसा (वासा) के 1 किलो सूखे पत्ते, 10 ग्राम कालीमिर्च, 50 ग्राम सेंधानमक और 5 ग्राम बबूल के गोंद को मिलाकर पीस लें और इसकी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। यह 5-6 गोलियां प्रतिदिन चूसते रहने से खुश्की दूर होती है, कफ निकल जाता है और दमा ठीक होता है।
- सरसों का तेल : यदि अधिक खांसने पर भी कफ न निकलता हो तो छाती पर सरसों के 20 मिलीलीटर तेल में 5 ग्राम सेंधानमक मिलाकर मालिश करें। इससे छाती में जमा कफ ढीला होकर निकल जाता है और दमा में आराम मिलता है। दमा के दौरे पड़ने पर भी इसका उपयोग लाभकारी होता है। पुराना गुड़ और सरसों का तेल 10-10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर प्रतिदिन 1 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से 3 सप्ताह में ही सभी प्रकार के श्वांस रोग जड़ सहित नष्ट होते हैं।
- कॉफी : अस्थमा से पीड़ित रोगी को यदि सांस में रुकावट महसूस हो तो उसे कॉफी पीना चाहिए। दमा का दौरा पड़ने पर गर्म-गर्म कॉफी बिना दूध व चीनी के पीने से आराम मिलता है।
- चौलाई : चौलाई की सब्जी बनाकर अस्थमा के रोगी को खिलाने से अस्थमा में बहुत लाभ मिलता है। चौलाई के पत्तों का 5 ग्राम रस को शहद के साथ मिलाकर चटाने से श्वास की पीड़ा नष्ट होती है।
- अंजीर : अंजीर के 4 दाने को रात को सोते समय पानी में डालकर रख दें और सुबह अंजीर को उसी पानी में थोड़ा सा मसलकर पानी पी लें। इसका प्रतिदिन सेवन करने से अस्थमा में बहुत लाभ मिलता है और कब्ज भी नष्ट होती है। 2 से 4 सूखे अंजीर को दूध में गर्म करके खाने से कफ की मात्रा घटती है और दमा (अस्थमा) रोग ठीक होता है।
- खजूर : 2 खजूर की गुठली निकालकर उसके गूदे में 3 ग्राम सौंफ का चूर्ण मिलाकर पान के साथ सेवन करने से अस्थमा के कारण होने वाली सांस की रुकावट दूर होती है। खजूर और सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर पान में रखकर खाने से दमा रोग ठीक होता है।
- अकरकरा : अकरकरा की जड़ का काढ़ा बना लें और इसमें शहद मिलाकर सेवन करें। इससे कफ निकल जाता है और दमा में आराम मिलता है।
- अनार : अनार के दानों को पीसकर चूर्ण बना लें और 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार खाएं। यह अस्थमा रोग के लिए अत्यंत गुणकारी औषधि है।
- लौंग : 2 लौंग को 150 मिलीलीटर पानी में उबालकर पीने से अस्थमा और सांस का रुकना दूर होता है। लौंग तथा कालीमिर्च का चूर्ण बराबर मात्रा में लेकर त्रिफला तथा बबूल के रस के काढ़े में घोलकर 2 चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से श्वास रोग नष्ट होता है।
- बहेड़ा : दमा रोग से पीड़ित रोगी को बहेड़े का छिलका मुंह में रखना चाहिए। इससे सांस रोग ठीक होता है। बहेड़े के छिलकों का चूर्ण बनाकर बकरी के दूध में पका लें और इसमें शहद मिलाकर दिन में 2 बार चाटें। यह दमा व कफ निकलने में बेहद उपयोगी औषधि है।
- छोटी पीपल : छोटी पीपल, सोंठ और आंवला बराबर मात्रा में लेकर लगभग 2-3 ग्राम तक की मात्रा में चूर्ण बना लें और थोड़े से घी व शहद के साथ खाएं। दमा से पीड़ित रोगी के लिए यह बहुत लाभकारी औषधि है।
- कालीमिर्च : कालीमिर्च व मिश्री का चूर्ण मलाई के साथ खाने से श्वास रोग से छुटकारा मिलता है। इससे पुरानी से पुरानी खांसी भी ठीक हो जाती है। कालीमिर्च का बारीक चूर्ण और पिसी हुई मिश्री या चीनी को बराबर मात्रा में लेकर मिलाकर 1 से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से खांसी व सांस की रुकावट दूर होती है। इस चूर्ण के सेवन करने से गला साफ होता है और आवाज भी मधुर होती है। कालीमिर्च 10 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम, हरी इलायची 10 ग्राम और तेजपात 5 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें और इसमें 50 ग्राम गुड़ मिलाकर चने के बराबर की गोलियां बनाकर सुखा लें। यह 2-2 गोली प्रतिदिन सुबह-शाम चूसने से दमा के रोग में आराम मिलता है। कालीमिर्च 2 ग्राम, पीपर 2 ग्राम, सोंठ 2 ग्राम, हरी इलायची 2 ग्राम को चूर्ण बनाकर इसमें 6 ग्राम गुड़ को मिलाकर चने के बराबर की गोलियां बना लें। प्रतिदिन दिन में 2-3 बार 1-1 गोली चूसने से सभी प्रकार की खांसी व दमा ठीक होता है।
- हरड़ : सोंठ और हरड़ का काढ़ा बनाकर 1 या 2 मिलीलीटर की मात्रा में गर्म पानी के साथ लेने से श्वांस रोग ठीक होता है।
- पान : लगभग 5 से 10 मिलीलीटर पान के रस को शहद के साथ या अदरक के रस के साथ प्रतिदिन 3-4 बार रोगी को देने से दमा या श्वांस का रोग ठीक होता है। पान में चूना और कत्था बराबर मात्रा में लगाकर 1 इलायची और 2 कालीमिर्च डालकर धीरे-धीरे चबाकर चूसते रहने से दमा के रोग में आराम मिलता है।
- पालक : दमा तथा श्वांस की बीमारी में 1 कप पालक के रस में सेंधानमक मिलाकर सेवन करना चाहिए। इससे श्वांस तथा दमा रोग नष्ट होता है। पालक के बीजों का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करने से सांस का रुक-रुककर आना दूर होता है।
- पीपल : लगभग आधा ग्राम पीपल के चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम रोगी को देने से नई और पुरानी खांसी दूर होती है। इसका उपयोग दमा का दौरा पड़ने व स्वरभंग (गला बैठना) में भी लाभकारी होता है। पीपल के सूखे फलों का चूर्ण लगातार 14 दिन तक पानी के साथ लेने से श्वास की बीमारी दूर होती है।
- घी : घी में हींग को भूनकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पानी में घोलकर रोगी को पिलाने से दमा रोग ठीक होता है। इससे फुफ्फुस के अनेक रोगों में लाभ मिलता है।
- इन्द्रायण : दमा या फेफड़े के अन्य पुराने विकारों में इन्द्रयव (इन्द्रायण) के भूने हुए चूर्ण लगभग 1 से 4 ग्राम तक की मात्रा में शहद के साथ काढ़ा बनाकर प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से श्वांस रोग ठीक होता है।
- गुग्गल : दमा रोग से पीड़ित रोगी को गुग्गुल लगभग आधा से 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम दोनों समय घी के साथ सेवन करना चाहिए। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
- हरसिंगार : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग हरसिंगार की छाल का चूर्ण पान में रखकर प्रतिदिन 3-4 बार खाने से कफ का चिपचिपापन कम होकर कफ निकल जाता है।
- रीठा : दमा व खांसी में कफ अधिक होने पर रीठे का चूर्ण 3.50 से 7 ग्राम की मात्रा में उपयोग करें। इससे वमन साफ होकर कफ निकल जाता है।
- केला : दमा रोग में केले के तने का रस कालीमिर्च के साथ मिलाकर 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम लेने से लाभ मिलता है।
- छुहारा : नियमित रूप से 2 से 4 छुहारा मिश्री मिले दूध में उबालकर गुठली हटाकर छुहारा खाने के बाद वही दूध पीने से बहुत लाभ मिलता है। इससे शरीर में ताकत आती है तथा कफ निकल जाता है जिससे श्वास रोग में राहत मिलती है।
- बादाम : बादाम को गर्म पानी में शाम को भिगोकर रख दें और दूसरे दिन सुबह बादाम को थोड़ी देर पकाकर उसका पेय बना लें। यह पेय 20 से 40 ग्राम तक की मात्रा में सेवन करें। इससे श्वांस सम्बंधी सभी बीमारियां ठीक होती है।
- कालानमक : श्वांस रोग से पीड़ित रोगी को पहले दिन कालानमक को शहद में मिलाकर सेवन करना चाहिए और फिर आधा-आधा ग्राम प्रतिदिन बढ़ाते हुए 6 ग्राम तक सेवन करना चाहिए। इस औषधि के सेवन के बाद थोड़ी देर तक प्यास लगने पर गुनगुना पानी ही पीएं। इस नमक के सेवन से श्वांस रोग नष्ट होता है।
- ईसबगोल : लगभग 3-4 महीने लगातार दिन 2 बार ईसबगोल की भूसी का सेवन करने से सभी प्रकार के श्वांस रोग नष्ट होता है। 1 चम्मच इसबगोल की भूसी को दूध के साथ लगातार सुबह-शाम कुछ महीनों तक सेवन करने से दमा के रोग में लाभ मिलता है।
- इलायची : इलायची, खजूर और द्राक्ष को शहद के साथ खाने से खांसी व दमा नष्ट होता है। इससे शरीर शक्तिशाली बनता है। मिश्री के साथ इलायची का तेल सेवन करने से सांस की बीमारी में आराम मिलता है।
- सीताफल : सीताफल की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से दमा दूर होता है।
- कौंच : कौंच के बीजों का चूर्ण शहद और घी में मिलाकर चाटने से दमा रोग ठीक होता है।
- मुलेठी : खांसी व दमा के रोग से पीड़ित रोगी को 5 ग्राम मुलेठी को 1 गिलास पानी में उबालें और जब पानी आधा रह जाए तो उस पानी को सुबह-शाम पिएं। यह 3-4 दिन लगातार पीने से कफ पतला होकर निकल जाता है।
दमा या अस्थमा (Asthma) में सावधानी :
- दमा से पीड़ित रोगियों को तरबूज का रस नहीं पीना चाहिए। दमा के रोगियों को केला कम खाना चाहिए। दमे में केले से एलर्जी हो सकती है। दमा से बचने के लिए पेट को साफ रखना चाहिए। कब्ज नहीं होने देना चाहिए। ठंड से बचे रहे। देर से पचने वाली गरिष्ठ चीजों का सेवन न करें। शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले, शीघ्र पचने वाला तथा कम मात्रा में लेना चाहिए। गर्म पानी पिएं। शुद्ध हवा में घूमने जाएं। धूम्रपान न करें क्योंकि इसके धुएं से दौरा पड़ सकता है। प्रदूषण से दूर रहे खासतौर से औद्योगिक धुंए से। धूल-धुंए की एलर्जी, सर्दी एवं वायरस से बचे। मनोविकार, तनाव, कीटनाशक दवाओं, रंग-रोगन और लकड़ी के बुरादे से बचे। मूंगफली, चाकलेट से परहेज करना चाहिए। फास्टफूड का सेवन नहीं करना चाहिए। अपने वजन को कम करें और नियमित रूप से योगाभ्यास एवं कसरत करना चाहिए। बिस्तर पर पूर्ण आराम एवं मुंह के द्वारा धीरे-धीरे सांस लेना चाहिए। नियमपूर्वक कुछ महीनों तक लगातार भोजन करने से दमा नष्ट हो जाता है।
दमा या अस्थमा (Asthma) में भोजन तथा परहेज :
- दमा से पीड़ित रोगी को एक बार में भरपेट भोजन नहीं करना चाहिए।
- दमा से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम बकरी का दूध पीना चाहिए।
- रोगी को खुली धूप में कभी नहीं बैठना चाहिए।
- रोगी के लिए धूप के पास वाले छायादार स्थान में बैठना लाभकारी होता है।
- रोगी को मन शान्त रखना चाहिए और किसी भी प्रकार की चिन्ता,
- तनाव , क्रोध और उत्तेजना से बचना चाहिए।
- रोगी की छाती पर प्रतिदिन सुबह सूर्य की किरण डालनी चाहिए।
- रोगी को ठंड़ी या गर्म चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। रोगी को हल्का तथा पाचक भोजन लेना चाहिए।
- गले तथा छाती को ठंड़ से बचाना चाहिए। पेट में कब्ज हो जाए तो उसे दूर करने के लिए फलों का रस गर्म करके सेवन करना चाहिए। दस्त लाने वाले चूर्ण का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि दमा के रोगी की सहनशक्ति बहुत कम होती है।
- भोजन में गेहूं की रोटी, तोरई , करेला , परवल , मेथी , बथुआ आदि चीजे लेनी चाहिए।
- पुराने सांठी चावल , लाल शालि चावल, जौ , गेहूं, पुराना घी, शहद, बैंगन, मूली , लहसुन , बथुआ, चौलाई, दाख, छुहारे, छोटी इलायची , गोमूत्र, मूंग व मसूर की दाल, नींबू , करेला , बकरी का दूध, अनार, आंवला तथा मिश्री आदि का सेवन करना दमा रोग में लाभकारी होता है।
- इस रोग में ठंडी चीजे, दूध, दही , केला , संतरा , सेब , नाशपाती , खट्टी चीजे आदि नहीं खानी चाहिए।
- शराब तथा बीड़ी-सिगरेट पीना भी हानिकारक होता है।
- दमा के रोगी को रूखा, भारी तथा शीतल पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। सरसों , भेड़ का घी, मछली, दही, खटाई, रात को जागना, लालमिर्च , अधिक परिश्रम, शोक, क्रोध, गरिष्ठ भोजन और दही आदि का सेवन नहीं करना चाहिए।