मिर्गी रोग का मुख्य कारण तंत्रिका तंत्र है। इसे अपस्मार व एपिलेप्सी _ Epilepsy भी कहते हैं। 10 से 20 वर्ष के बच्चे भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। दौरा पड़ने पर रोगी 10 मिनट से लेकर 2-3 घंटे तक तक बेहोश रह सकता है। इस रोग का दौरा रोगी को कभी भी पड़ सकता है। आमतौर पर जब रोगी पानी या आग के पास होता है, अधिकांशत: उस समय दौरा पड़ जाता है। इसलिए मिर्गी के रोगी को आग व पानी (नदी या तालाब आदि) से दूर रहने की सलाह दी जाती है।
मिर्गी रोग के लक्षण
- जब मिर्गी का दौरा पड़ता है तो हाथ- पांव ऐंठने लगते हैं, दांत लग जाते हैं और मुंह से झाग निकलने लगता है। मल-मूत्र निकल जाता है।
मिर्गी आने के कारण
- मिर्गी रोग के अनुवांशिक कारण भी होते हैं। इसके अलावा सिर में चोट लगने, अतिशय शराब का सेवन करने, बहुत ज़्यादा मानसिक या शारीरिक कार्य करने, तेज़ बुखार, मैनिन्जाइटिस, लकवा, ब्रेन ट्यूमर, ज्ञान तंत्रों में ग्लूकोज़ की कमी, मस्तिष्क ऊत्तकों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलने, मासिक धर्म में अनियमितता, मस्तिष्क कैंसर, पाचन तंत्र में ख़राबी, आंव, कृमि आदि कई कारण हो सकते हैं। प्राकृतिक चिकित्सकों के अनुसार खाद्य शृंखला के तहत शरीर में पहुंचने वाले विषैले द्रव्यों के चलते भी मिर्गी रोग हो सकता है।
मिर्गी का दौरा पड़ने पर क्या करें
- रोगी को खुली हवा में ले जाएं।
- दाएं या बाएं करवट लिटा दें।
- मुंह पर पानी का छींटा मारें।
- दांतों के बीच कपड़ा या चम्मच रख दें ताकि दांत लगने से जीभ न कटने पाए।
- इस दौरान उसे कुछ भी खिलाने- पिलाने का प्रयास न करें।
मिर्गी रोगी की चिकित्सा ऐसे करें—
- अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
- एप्सम साल्ट (मेग्नेशियम सल्फ़ेट) मिश्रित पानी से मिर्गी रोगी स्नान करे। इस उपाय से दौरों में कमी आ जाती है और दौरे भी ज्यादा भयंकर किस्म के नहीं आते है।
- मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।
- विटामिन ब६ (पायरीडाक्सीन) का प्रयोग भी मिर्गी रोग में परम हितकारी माना गया है। यह विटामिन गाजर,मूम्फ़ली,चावल,हरी पतीदार सब्जियां और दालों में अच्छी मात्रा में पाया जाता है। 150-200 मिलिग्राम विटामिन ब६ लेते रहना अत्यंत हितकारी है।
- मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।
- मिर्गी रोगी को 250 ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।
- रोजाना तुलसी के 20 पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।
- पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
- 100 मिलि दूध में इतना ही पानी मिलाकर उबालें दूध में लहसुन की ४ कुली चाकू से बारीक काटक्रर डालें ।यह मिश्रण रात को सोते वक्त पीयें। कुछ ही रोज में फ़ायदा नजर आने लगेगा।
- गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।
- होम्योपैथी की औषधियां मिर्गी में हितकारी सिद्ध हुई हैं।कुछ होम्योपैथिक औषधियां है– क्युप्रम,आर्टीमेसिया,साईलीशिया,एब्सिन्थियम,हायोसायमस,एगेरिकस,स्ट्रामोनियम,कास्टिकम,साईक्युटा विरोसा,ईथुजा| इन दवाओं का लक्षणों के मुताबिक उपयोग करने से मिर्गी से मुक्ति पाई जा सकती है।
- तुलसी की पत्तियों के साथ कपूर सुंघाने से मिर्गी के रोगी को होश आ जाता है।
परहेज़ – सावधानी ही बचाव
- रात को ज़्यादा देर तक न जगें।
- गरिष्ठ, तले-भुने, मिर्च-मसालेदार चटपटा भोजन से परहेज़ करें।
- अधिक शीतल या अधिक उष्ठ पदार्थों का सेवन न करें।
- वातकारक पदार्थों- कचालू, मसूर की दाल, उड़द, गोभी, चावल, मछली, राजमा, बैंगन, मटर व मूली का सेवन नाममात्र का करें।
- उत्तेजक पदार्थों- मांस, शराब, कड़क चाय, तंबाकू, काफी, गुटखा व पिपरामेंट आदि से परहेज़ करें।
- अकेले यात्रा पर जाने, सीढ़ी चढ़ने या वाहन चलाने से बचें।
- आग व पानी से सर्वदा दूर रहें।
- रोगी से किसी तरह का विवाद न करें अन्यथा वह तनाव व क्रोध से भर जाएंगा और उसके लिए हानिकारक होगा।
- अधिक ऊंचाई पर न जाएं।
- मल-मूत्र के वेग को रोकना हानिकारक है।
नोट- किसी भी दवा का प्रयोग योग्य चिकित्सक या वैद्य के परामर्श से ही करना हितकर है।