योग की ये दोनों विधियां पाचन प्रणाली को स्वस्थ सबल बनाने और पाचन तन्त्र के रोगों से मुक्ति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं-
भस्त्रिका प्राणायाम
यह प्राणायाम कपाल भाती व उज्जयी प्राणायाम का समिश्रण है तथा इसकी तीन अवस्थाएं होती हैं ।पहली अवस्था – बांईं नासिका से श्वास-प्रश्वास – सुखासन में बैठकर दांईं नासिका को बन्द करके बांईं नासिका से पूरक और रेचक करें। इसमें पूरक और रेचक दोनों जोर से होता है और रेचक यानी श्वास को ताकत से बाहर फेंका जाता है यानी रेचक करते समय आवाज होती है जिससे श्वासों की गिनती की जाती है। घेरण्ड संहिता के अनुसार उदर के प्रसार एवं आकुंचन के साथ 20 बार तेज और लययुक्त पूरक-रेचककरने के बाद रूक जाएं। तत्पश्चात गहरा श्वास अन्दर भरकर मूलबन्ध व जालन्धर बन्ध लगाते हुए सामथ्र्य अनुसार कुम्भक (श्वास रोकना) करें। फिर बन्धों को शिथिल करते हुए बांईं नासिका से श्वास बाहर छोड़ दें।
द्वितीय अवस्था – दांईं नासिका से श्वास-प्रश्वास – उपरो प्रक्रियाबांईं नासिका बन्द करके दांईं नासिका से करें। 20 बार तेजऔर लयबद्ध पूरक और रेचक कर बन्ध लगाते हुए कुम्भक करें। फिर बन्धों को खोलते हुए दांईं नासिका से श्वास बाहर निकाल दे।
तृतीय अवस्था – इसमें दोनों नासिकाओं से 10 बार तेज लयबद्ध व गहरी श्वास-प्रश्वास (पूरक और रेचक) करें । फिर श्वास अन्दर भरकर बन्ध लगाते हुए कुम्भक करें व अन्त में बन्ध खोलते हुए धीरे धीरे श्वास बाहर छोड़ दें ।यह भस्त्रिका प्राणायाम की एक आवृत्ति हुए। बीच में विश्राम लेते हुए ऐसी तीन आवृत्ति करें। ध्यान रहे उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, हर्निया, पेट में छाले व मिर्ग आदि रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों को यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
अगरिसार क्रिया – इस क्रिया के अभ्यास से आंतों की कार्यक्षमता में वृद्धि होकर कब्ज से मुक्ति मिलती है और पेट की अनावश्यक चर्बी कम होती है ।
विधि – सुखासन में बैठकर पूरी श्वास बाहर निकाल दें और गर्दन को झुकाकर कण्ठकूप से लगाकर जालन्दधर बन्ध लगाएं और पेट को तेज गति से अन्दर बाहर करें। जब तक श्वास रोक सकें तभी तक इसे करें । इस क्रिया को 4-5 बार करें तथा प्रत्येक आवृत्ति के बीच में सामान्य श्वास लेते हुए एक मिनिट का विश्राम ले|