कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी तिथि को रूप चौदस, छोटी दिवाली एवं नरक चतुर्दशी कहा जाता है। ऐसी मान्यता हैं कि इस दिन मालिश के तेल में इन चीजों के उबटन से स्नान करने पर अनेक पापों के दुष्फल से मुक्ति उसी तहर मिल जाती है।
जैसे- भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर वध के पाप से मुक्ति मिली थी। रूप चौदस दीपावली से ठीक एक दिन पहले मनाई जाती है। बंगाल राज्य में माँ काली के जन्म दिन के रूप में काली चौदस के तौर पर रूप चौदस पर्व मनाया जाता है।
आज की रात घर के बाहर लगायें यम दीप, मिलेगी पापों से मुक्ति
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि के दिन हर साल नरक चतुर्दशी पड़ती है और इसको छोटी दिवाली या यम दिवाली कहते हैं। यम के नाम का दीपक लगाने के अलावा इस दिन शाम के समय कुछ उपाय व दान भी किये जाते हैं।
कहा जाता है कि इन्हें करने से पूर्वजों का आशीर्वाद हमेशा परिवार पर बना रहता है औऱ घर में खुशहाली रहती है। तो आइए जानते हैं छोटी दिवाली के दिन क्या-क्या उपाय करना शुभ होता है…
नरक चतुर्दशी के दिन घरों के बाहर दीपक लगाया जाता है। जिसे यमदीप कहते हैं। कहा जाता है कि इस दिन यमदीप का दान किया जाता है।
ऐसा करने से पूर्वज प्रसन्न रहते हैं और परिवार की रक्षा करते हैं। इसके साथ ही यमराज भी घर में रहने वालों को अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं। इससे आपको अपने पापों से मुक्ति मिल जाएगी।
यम को दीपक लगाते समय इस बात का जरुर ध्यान रखें कि दीपक का मुख हमेशा दक्षिण दिशा की तरफ ही रखें। एक दीपक नाली या कूड़े के ढ़ेर के पास भी रखना चाहिए।
नरक चतुर्दशी के दिन हनुमान जयंती भी रहती है, इसलिये इस दिन हनुमान पूजा करने से सभी तरह के संकट दूर हो जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन घर को कभी सूना नहीं छोड़ना चाहिए। घर में कोई ना कोई सदस्य का रहना जरुरी होता है। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि कम होती है।
इस दिन घर के दक्षिण दिशा में एक दीपक में कौड़ी, 1 रूपये का सिक्का रखकर दीपक जलाना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है।
इस दिन तेल में इन चीजों का उबटन मिलाकर स्नान करें
रूप चौदस का दिन अपने सौन्दर्य को निखारने का दिन माना जाता है। भगवान की भक्ति व पूजा के साथ स्वयं के शरीर की देखभाल भी बहुत जरुरी होती है। रूप चौदस का यह दिन स्वास्थ्य के साथ सुंदरता और रूप की आवश्यकता का सन्देश देता है।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर शरीर पर तेल की मालिश करने का विधान हैं, कहा जाता हैं कि रूप चौदस के दिन तेल में पीली हल्दी, गेहूं का आटा एवं बेसन का उबटन बनाकर पूरे शरीर इसकी मालिश करने के बाद स्नान करने से अनेक पापों का नाश हो जाता हैं एवं शरीर की सुसंदरता में भक्षी निखार आता है।
शास्त्रों की कथानुसार जब भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और वध के बाद रूप चौदस के दिन तेल में पीली हल्दी, गेहूं का आटा एवं बेसन मिलाकर मालिश कर स्नान किया था, जिससे नरकासुर के वध के पाप से वे मुक्त हो गये थे। तभी से इस प्रथा की शुरूआत हुई थी। इस दिन यह स्नान करने वालों को नरक से भी मुक्ति मिल जाती है, इसलिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहते हैं।
नरक चतुर्दशी अर्थात रूप चौदस की कथा और इसका महत्व
दीपावली को एक दिन का पर्व कहना न्योचित नहीं होगा। दीपावली पर्व के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली, रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है।
दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।
इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दांत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारात सजाई जाती है।
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।
यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।
यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था,यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा।
तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।
तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया।
इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दिया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है।
घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दिए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं।