एक कहावत है हींग लगे ना फ़िटकरी अर्थात यदि बिना किसी औषिधि या दवाइयों के बिना हम स्वस्थ रहे और अगर हमे कोई रोग न हो तो क्या बुरा है। अगर आप भी चाहते हो तो सिर्फ अपने हाथो की उंगलियो अर्थात हस्त मुद्राओं द्वारा यह सब संभव है अब आप खुद अचरज में पढ़ गए होंगे की यह कैसे हो सकता है? यकीन ना हो तो आजमा कर देख लीजिये लाभ अवश्य होगा लेकिन जैसा इस पोस्ट में बताया गया है ठीक वैसा ही योग करे।
हमारा शरीर अनन्त रहस्यों से भरा हुआ है। शरीर को स्वस्थ बनाए रखने की शक्ति शरीर में निहित है। बस जरूरत है उसे जानकर अभ्यास करने की। शरीर पंचतत्वों-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से मिलकर बना है। जब तक शरीर में ये तत्व संतुलित रहते हैं, तब तक शरीर निरोगी रहता है। यदि इन तत्वों में असंतुलन हो जाए तो नानाप्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इन तत्वों को हम यदि पुन: संतुलित कर दें तो शरीर निरोगी हो जाता है।हस्तमुद्रा चिकित्सा के अनुसार हाथ की पांचों अंगुलियां पांचों तत्वों का प्रतिनिधित्व करती है और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के माध्यम से इन तत्वों को बल देती रहती है। अंगूठे में अग्नि तत्व, तर्जनी में वायु तत्व, मध्यमा में आकाश तत्व, अनामिका में पृथ्वी तत्व व कनिष्ठा में जल तत्व की ऊर्जा का केन्द्र है। इस प्रकार अंगुलियों को आपस में मिलाकर मुद्राओं को बनाया जाता है। हमारे ऋषियों ने इस रहस्य को साधना के द्वारा जाना और इसका प्रचार-प्रसार किया जिसके प्रतिदिन अभ्यास से व्यक्ति रोगमुक्त होकर स्वस्थ रह सके।
ये अद्भुत मुद्राएं करते ही अपना असर दिखाना शुरू कर देती हैं। पद्मासन, स्वस्तिकासन, सुखासन, वज्रासन में करने से जिस रोग के लिए जो मुद्रा वर्णित है उसको इस भाव से करें कि मेरा रोग ठीक हो रहा है, तब ये मुद्राएं शीघ्रता से रोग को दूर करने में लग जाती हैं। बिना भाव के लाभ अधिक नहीं मिल पाता। दिन में 20-30 मिनट तक एक मुद्रा को किया जाए तो पूरा लाभ प्राप्त हो जाता है। एक बार में न हो सके तो दो-तीन बार में कर लें। किसी भी मुद्रा में जिन अंगुलियों का प्रयोग नहीं करते उन्हें सीधा करके रख लेते हैं और हथेली को थोड़ा टाइट रखते हैं। यों तो मुद्राओं की संख्या अनेक है, किन्तु यहां हम आपको कुछ उपयोगी मुद्राओं के बारे में बता रहे हैं-
विधि: अंगूठे को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगाएं व बाकी तीनों अंगुलियाँ सीधी रहेंगी।
लाभ: मस्तिष्क के स्नायु को बल देकर यह स्मरण शक्ति, एकाग्रता शक्ति, संकल्प शक्ति को बढ़ाती है, बुद्धि का विकास करती है, पढ़ाई में मन लगने लगता है, सिर दर्द व नींद न आना दूर होता है, मन की चंचलता दूर होकर क्रोध, चिड़चिड़ापन, तनाव, चिंता को दूर कर व्यक्ति को आध्यात्मिक बना देती है।
नोट: सात्विक भोजन करने से शीघ्रता से लाभ देती है।
विधि: अनामिका अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियां सीधी रखें।
लाभ: दुबर्लता को दूर कर वजन को बढ़ाती है, शरीर में स्फूर्ति, कान्ति एवं तेज बढ़ाकर जीवनी शक्ति का विकास करती है, पाचन तन्त्र स्वस्थ बनाती है।
विधि: कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे के अग्रभाग पर लगाकर बाकी अंगुलियों को सीधा रखने से बनती है।
लाभ: चर्मरोग, रक्त विकार दूर करती है, शरीर में रूखापन दूर कर त्वचा को चमकीली व मुलायम बनाती है, चेहरे की सुन्दरता को बढ़ा देती है।
नोट: कफ प्रकृति वाले व्यक्ति इसका अभ्यास ज्यादा न करें।
विधि: तर्जनी अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाकर हल्का सा दबाएं। बाकी अंगुलियां सीधी रहेंगी।
लाभ: वात रोगों में विशेष लाभकारी है। प्रकुपित वायु को शान्त कर देती है, साइटिका, कमर दर्द, गर्दन दर्द, पारकिंसन, गठिया, लकवा, जोड़ों का दर्द, घुटने का दर्द दूर करती है।
विधि: मध्यमा अंगुली को मोड़कर अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे से दबाएं व बाकी अंगुलियां सीधी रखें।
लाभ: गले के रोग व थाइराइड में लाभकारी है, दांत मजबूत होते हैं, कर्ण रोगों में लाभकारी है।
विधि: अनामिका अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाकर अंगूठे से दबाकर बाकी अगुलियों को सीधा करके रखें।
लाभ: मोटापा कम करती है, वजन को घटाने वाली है, शरीर में उष्णता बढ़ाती है, शक्ति का विकास करती है, कोलेस्ट्राल का बढ़ना, मधुमेह व लीवर के रोग में लाभ पहुंचाती है, शरीर को संतुलित बना देती है।
नोट: कमजोर व्यक्ति इसका अभ्यास न करें। गर्मी में भी ज्यादा न करें।
विधि: अनामिका तथा कनिष्ठा अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग पर लगाकर बाकी दोनों अंगुलियों को सीधा रखें।
लाभ: मन को शान्त कर शरीर की दुर्बलता को दूर करती है,रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ा देती है, नेत्र ज्योति बढ़ाती है, थकान दूर कर शरीर में तरोताजगी देती है, त्वचा व आंखों को निर्मल बना देती है, विटामिन की कमी को दूर करती है।
विधि: मध्यमा तथा अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग से लगाकर बाकी अंगुलियों को सीधी रखें।
लाभ: कब्ज, मधुमेह, किडनी विकार, वायु विकार, बवासीर को दूर करती है, शरीर को शुद्ध कर नाड़ी दोषों को दूर कर देती है, मूत्र का अवरोध दूर कर दांतों को मजबूत करती है, पसीना भी लाती है।
नोट: यह मुद्रा मूत्र अधिक लाती है।
विधि: यह मुद्रा तर्जनी अंगुली को अंगूठे के मूल में लगाकर मध्यमा व अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग पर लगाकर छोटी अंगुली को सीधा करके बनती है।
लाभ: हृदय रोगों में विशेष रूप से लाभकारी है। प्रतिदिन 10-15 मिनट इसके अभ्यास से हृदय मजबूत होता है, दिल का दौरा पड़ते ही इसको करने से आराम मिलता है, गैस बनना, सिरदर्द, अस्थमा व उच्च रक्तचाप में लाभकारी है। सीढि़यों पर चढ़ने से पहले ही अगर इसको लगाकर चढ़ा जाए तो सांस नहीं फूलती।
विधि: दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर बांधकर बाएं हाथ के अंगूठे को खड़ा रखें।
लाभ: सर्दी, जुकाम, खांसी, साइनुसाइटिस, अस्थमा, निमन् रक्तचाप को दूर कर शरीर की गर्मी को बढ़ा देती है, कफ को सुखाने का कार्य करती है।
नोटः आवश्यकता होने पर ही करें, अनावश्यक न करें।