नींद में पेशाब करना (असंयतमूत्रता)
यह रोग अधिकतर बच्चों में पाया जाता है। इस रोग से पीड़ित बच्चा रात को सोते समय बिस्तर पर पेशाब कर देता है। अक्सर 2 वर्ष तक के बच्चे इस रोग से ज्यादा ग्रस्त होते हैं। लेकिन अगर 3 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले बच्चों को भी इस प्रकार की शिकायत बनी रहे तो उस अवस्था को असंयतमूत्रता कहते हैं। यह अवस्था लड़कियों की अपेक्षा लड़कों तथा 3 वर्ष से 14 वर्ष की आयु वाले बच्चों में अधिक पाया जाता है। कई बच्चों में तो यह रोग इतना अधिक बढ़ जाता है कि बच्चे सोते ही बिस्तर पर पेशाब कर देते हैं तथा कुछ पहली नींद आते ही तथा कुछ आधी रात के बाद या सुबह होने से कुछ घंटे पहले ही पेशाब कर देते हैं। कुछ बच्चों में यह रोग मौसम के अनुसार होता है जैसे- सर्दियों और बरसात के मौसम में। यह रोग उन बच्चों को अधिक होता है जिन्हें नींद अधिक आती है।
• कारण : नींद में पेशाब करने के कई कारण होते है जैसे- बढ़ी हुई उत्तेजना, अधीरता या मानसिक तनाव , शरीर में खून की कमी , शारीरिक रूप से अधिक कमजोर होना तथा कुछ बच्चों को रात में पेशाब करने की आदत पड़ना आदि। इस रोग के अन्य कारण भी हो सकते है जैसे- पेट में कीड़े होना , लिंगमुण्ड की कठोरता, अतिशय अम्लता, शाम को तरल पदार्थों का अधिक सेवन करना या फिर शरीर के मसाने की पेशियों का अनुपयुक्त विकास होना आदि। यह रोग अनेक रोगों के कारण भी हो सकता है जैसे- मधुमेह , पेशाब सम्बन्धी बीमारियों, गिल्टियां, लगातार पीठ के बल लेटना या पेशाब सम्बन्धी बीमारी होना आदि।
• उपचार : इस रोग से पीड़ित रोगी के पैर के तलुवों पर सुबह के समय में मध्यमशक्ति के चुम्बक को लगाना चाहिए तथा शाम के समय में शरीर के सूचीवेधन बिन्दु Sp-6 पर तथा सूचीवेधन बिन्दु Cv-2 पर चुम्बक का प्रयोग करना चाहिए। रात को सोते समय अपने मसाने के ऊपरी भाग में लाल तेल लगाना चाहिए।
• अन्य उपचार : इस रोग से ग्रस्त बच्चे को सुबह के समय में कसरत करनी चाहिए, ताजी हवा लेनी चाहिए और सुबह के वक्त ठण्डे पानी से नहाना चाहिए। बच्चे के घर वालों को कोशिश करनी चाहिए कि उनके इस रोग से ग्रस्त बच्चे को किसी प्रकार की अधीरता तथा मानसिक तनाव न हो पाये। जिन बच्चों को नींद में पेशाब करने की आदत हो उन्हें शाम के समय में अधिक तरल पदार्थो का सेवन नहीं करने देना चाहिए। किसी व्यक्ति को मधुमेह या गिल्टियां निकलने जैसी बीमारियां हो जाये तो उसका तुरन्त इलाज करना चाहिए। रात के समय में बच्चे को भोजन में मछली तथा अण्डा खिलाना चाहिए तथा गर्म पदार्थों को अधिक मात्रा में प्रयोग करना चाहिए क्योंकि ये गर्म पदार्थ नींद में पेशाब करने को कम कर देते हैं। रोगी बच्चे को ठण्डी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।
• सुबह :- खजूर 2-3 रात में भिगोया और सुबह में चबा चबाकर खाना ।
• प्रात: का भोजन :- दाल में रार्इ की छौंक खाना
• रात मे :- खजूर + मुनक्का + शहद के साथ
• पथ्य :- तेल से मूत्र के स्थान और पेट पर मालिश, पुराना चावल, उड़द, परवल, कुम्हड़ा की सब्जी, हरड़, नारियल, सुपारी, खजूर, रात में सोने से पहले पेशाब जायें, पानी सोते समय कम पीयें।
• अपथ्य :- मिर्च, मसालेदार, भोजन, पेशाब रोकना।
★ रोग मुक्ति के लिये आवश्यक नियम ★
• पानी के सामान्य नियम :
1. सुबह बिना मंजन/कुल्ला किये दो गिलास गुनगुना पानी पिएं ।
2. पानी हमेशा बैठकर घूँट-घूँट कर के पियें ।
3. भोजन करते समय एक घूँट से अधिक पानी कदापि ना पियें, भोजन समाप्त होने के डेढ़ घण्टे बाद पानी अवश्य पियें ।
4. पानी हमेशा गुनगुना या सादा ही पियें (ठंडा पानी का प्रयोग कभी भी ना करें।
• भोजन के सामान्य नियम :
1. सूर्योदय के दो घंटे के अंदर सुबह का भोजन और सूर्यास्त के एक घंटे पहले का भोजन अवश्य कर लें ।
2. यदि दोपहर को भूख लगे तो १२ से २ बीच में अल्पाहार कर लें, उदाहरण – मूंग की खिचड़ी, सलाद, फल और छांछ ।
3. सुबह दही व फल दोपहर को छांछ और सूर्यास्त के पश्चात दूध हितकर है ।
4. भोजन अच्छी तरह चबाकर खाएं और दिन में ३ बार से अधिक ना खाएं ।
• अन्य आवश्यक नियम :
1. मिट्टी के बर्तन/हांडी मे बनाया भोजन स्वस्थ्य के लिये सर्वश्रेष्ठ है ।
2. किसी भी प्रकार का रिफाइंड तेल और सोयाबीन, कपास, सूर्यमुखी, पाम, राईस ब्रॉन और वनस्पति घी का प्रयोग विषतुल्य है । उसके स्थान पर मूंगफली, तिल, सरसो व नारियल के घानी वाले तेल का ही प्रयोग करें ।
3. चीनी/शक्कर का प्रयोग ना करें, उसके स्थान पर गुड़ या धागे वाली मिश्री (खड़ी शक्कर) का प्रयोग करें ।
4. आयोडीन युक्त नमक से नपुंसकता होती है इसलिए उसके स्थान पर सेंधा नमक या ढेले वाले नमक प्रयोग करें ।
5. मैदे का प्रयोग शरीर के लिये हानिकारक है इसलिए इसका प्रयोग ना करें ।