वनस्पति घी आपको नही कैंसर कंपनियो को फायदा पंहुचा रहा है क्योंकि वनस्पति घी सेहत का दुश्मन है :
वनस्पति घी बनाने वाली कंपनियों के विज्ञापनों के जुमले सुनकर अब तक आपको तसल्ली होती रही होगी कि पैसे तो खर्च हो रहे हैं, लेकिन जिस वनस्पति में हमारा खाना पक रहा है, वह सेहत के लिए शानदार है। लेकिन जनाब, अब नज़रिया बदल लेने की जरूरत है। सेंटर फॉर साइंस ऐंड एन्वायरमेंट (सीएसई) की स्टडी तो कम से कम यही बताती है। सेंटर के लैब में एक टेस्ट के बाद जो सच सामने आया है, वह बतौर उपभोक्ता हमारे भरोसे को बुरी तरह तोड़ता है। देश में बिक रहे नामीगिरामी कंपनियों के वनस्पति घी, देशी घी और बटर को टेस्ट में शामिल किया गया। टेस्ट के बाद आए नतीजे बेहद चौंकाने वाले हैं। सेहतमंद होने का दावा करने वाले वनस्पति घी के ज़्यादातर ब्रैंड आपकी सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। आमतौर पर यह कहा जाता है कि भारत में खाने-पीने की चीजों के उत्पादन के तय मानक इंटरनैशनल मानकों के स्तर से काफी नीचे होते हैं। इसकी वजह हैं इन्हें बनाने वाली मल्टीनैशनल कंपनियां जो मिलकर ‘प्रेशर ग्रुप’ बनाती हैं, जिसके आगे सरकार राजनैतिक प्रतिबद्धता की कमी के चलते अक्सर झुक जाती है।वनस्पति घी के मामले में भी यही बात लागू होती है। सीएसई की स्टडी के नतीजों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि ज़्यादातर ब्रैंड के वनस्पति घी में ट्रान्स फैट की मात्रा इंटरनैशनल मानकों से कहीं ज़्यादा हैं। सीएसई के जानकार बताते हैं कि ट्रान्स फैट ज़्यादा होने पर हमें दिल की बीमारी और कैंसर हो सकता है। इन वनस्पतियों के ऐड में इनके ‘हेल्दी’ होने के दावे हवा-हवाई होते हैं।सीएसई के पोल्यूशन मॉनिटरिंग लैब में देश भर में बिक रहे खाने वाले ब्रैंडेड वनस्पति घी के 30 सैंपलों पर टेस्ट किए गए। टेस्ट में फैटी एसिड प्रोफाइल के 37 कंपोनेन्ट और नौ ट्रान्स फैट की एनालिसिस की गई। जांच में शामिल सैंपलों में सोयाबीन, सनफ्लावर, मस्टर्ड, कोकोनट, आंशिक तौर परहाइड्रोजिनेटेड (वनस्पति) ऑयल, देसी घी और मक्खन जैसे उत्पाद शामिल थे। टेस्ट में ठीक वह तरीका अपनाया गया जो इंटरनैशनल लेवर पर फैटी एसिड एनालिसिस के लिए किए जाने वाले असोसिएशन ऑफ ऑफिशल एनालिटिकल केमिस्ट (एओएसी) में अपनाया जाता है।
www.allayurvedic.org टेस्ट में आए नतीजे बताते हैं कि सभी वनस्पति ब्रैंड में ट्रांस फैट का स्तर डेनमार्क में बने दुनिया के एकमात्र तय मानक से 5 से 12 गुना ज़्यादा पाए गए। डेनमार्क में बने मानक में ट्रान्स फैट का स्तर दो फीसदी के करीब है। सीएसई के मुताबिक मवाना शूगर के ‘पनघट’ ब्रैंड में ट्रान्स फैट का लेवर 23.7 फीसदी और अडानी विल्मर लिमिटेड के ‘राग’ ब्रैंड 23.31 फीसदी पाया गया। यहां गौर करने वाली बात यह है कि ट्रान्स फैट का न्यूनतम स्तर मिल्क फूड्स लिमिटेड के ब्रैंड देसी घी और अमूल के ब्रैंड अमूल बटर में पाया गया। यह 3.73 फीसदी के करीब रहा। गौरतलब है कि वनस्पति घी या कुकिंग ऑयल को ज़्यादा टिकाऊ बनाने के लिए इसका हाइड्रोजिनेशन करते हैं। हाइड्रोजिनेशन के चलते ही इनमें ट्रान्स फैट का निर्माण होता है। लेकिन जानकार बताते हैं कि ट्रान्स फैट सेहत के लिए बेहद ख़तरनाक होते हैं। ट्रान्स फैट का सबसे बुरा असरदिल पर होता है क्योंकि यह गुड कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) की मात्रा को कम कर देता है। इसके अलावा ट्रान्स फैट महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर असर डालता है। इससे डायबिटीज़ जैसी बीमारियों का ख़तरा भी बढ़ जाता है। फ्रांस में हुई एक रिसर्च तो यहां तक बताती है कि ट्रान्स फैटी एसिड से ब्रेस्ट कैंसर तक हो सकता है। यही वजह है कि दुनिया भर में कुकिंग ऑयल में ट्रान्स फैटी एसिड की मात्रा को या तो सीमित कर दिया गया है या फिर ऐसे तेलों या वनस्पति घी पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। डेनमार्क के बाद अमेरिका के ज़्यादातर राज्यों में ट्रान्स फैटी एसिड पर बैन लगा दिया गया है।
www.allayurvedic.org सीएसई के मुताबिक हमारे देश में मौजूदा सरकारी मशीनरी इस बात को मानती है कि ट्रान्स फैट सेहत के लिए ख़तरनाक हैं, लेकिन माना जा सकता है कि मल्टीनैशनल कंपनियों के दबाव में इनपर रोक नहीं लग पा रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार इस मसले पर बिल्कुल सो रही है। 2004 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने ट्रान्स फैट पर एक मानक तय करने के लिए पहल की थी, लेकिन इस उपसमिति की सिफारिशें सेंट्रल कमिटी फॉर स्टैंडर्ड्स को भेजीं। लेकिन लालफीताशाही का आलम यह है कि सेंट्रल कमिटी को अब भी ज़्यादा डेटा और सूचनाएं चाहिए। इससे साफ है कि जब तक कोई कानूनी ढांचा नहीं बनता है, कंपनियां इसी तरह से लोगों की सेहत से खिलवाड़ करती रहेंगी। सितंबर, 2008 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने तेल या वनस्पति घी बनाने वाली कंपनियों के लिए यह जरूरी कर दिया कि वह तेल और वनस्पति के पैकेटों और बोतलों पर ट्रान्स फैट की मात्रा का जिक्र करें। कंपनियों ने इसका भी तोड़ निकालते हुए रेंज में ट्रान्स फैट की मात्रा का जिक्र करें। कंपनियों ने इसका भी तोड़ निकालते हुए रेंज में ट्रान्स फैट की मात्रा छाप दी। मसलन, रथ वनस्पति के पैकेट पर 8-33 फीसदी ट्रान्स फैट है। इससे साफ है कि इस प्रॉडक्ट में ट्रान्स फैट का लेवल डेनमार्क के स्टैंडर्ड से करीब 15 गुना ज़्यादा है। सीएसई की डायरेक्टर सुनीता नारायण के मुताबिक लेबल लगा देने से कंपनियों को
और आसान रास्ता मिल जाता है। इसे मंजूर करना मुश्किल है ।
टेस्ट में वनस्पति घी के दूसरे ब्रैंड में ट्रान्स फैट की मात्रा तो कम पाई गई, लेकिन वह सेहतमंद कुकिंग ऑयल के मानकों से कोसों दूर हैं। सूरजमुखी के तेल यानी सनफ्लावर ऑयल में पॉलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड यानी पीयूएफए भरपूर होता है, लेकिन इसमें ओमेगा 3 का लेवल बेहद कम होता है। हालिया रिसर्च बताती है कि दिल के दौरों को रोकने में ओमेगा 3 की भूमिका होती है। इसी तरह, कनोला या रेपसीड ऑयल जिसे ऑलिव ऑयल जितना सेहतमंद माना जाता है, पर हुई स्टडी बताती है कि यह तेल हमारे दिल से जुड़े सिस्टम पर बुरा असर डालता है। इसके अलावा यह शारीरिक विकास को भी
रोकता है। सीएसई की स्टडी यह बताती है कि इन तेलों की तुलना अगर डब्ल्यूएचओ द्वारा तय स्टैंडर्ड से की जाए तो भारत में तेल या वनस्पति
का एक भी ब्रैंड नहीं बेचा जा सकेगा।
कंपनियों के सभी दावों के बावजूद कड़वी सच्चाई यह है कि बाजार में बिकने वाले वनस्पति स्वास्थ्यकारी है या नहीं यहकोईनिश्चित रूप से नहीं कह सकता। सीएसई की विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘वास्तव में, जिस वनस्पति को आप स्वास्थ्य के लिए बेहतर समझते हुए खाते हैं उसमें ट्रांस वसा हो सकती है जिससे हृदय रोग और कैंसर जैसी गंभीर रोग हो सकते हैं।’ सीएसई के शोधकर्ताओं ने कहा कि मानक निर्धारित करने में विलंब हो रहा है।
विभिन्न वनस्पति ब्रांडों की तुलना
वनस्पति ब्रांड निर्माता ट्रांस फैट सामग्री
मानक संख्या 2
पनघट सिएल 23.70
राग अडानी विल्मर 23.31
गगन अमृत वनस्पति (बंजी) 14.82
जेमिनी कारगिल इंडिया 12.72
डालडा बंजी इंडिया 9.40