चित्रक/चिता/चितउर
चित्रकः कटुकः पाके वहनिकृत पाचनो लघु:।
रुक्षोष्णो ग्रहणी कुष्ठशोथार्श्:कृमि कासनुत्।।
वातश्लेष्महरो ग्राही वातार्थ: श्लेष्मपितहृत।।भा.प्र.।।
➡ चित्रक (Rore colour leadwort) : सामान्य नाम
- लैटिन् नाम : Plumbogo Zeylanicum.
- अंग्रेजी : Rore colour leadwort.
- हिन्दी : चिता, चितउर ।
- तेलगु : चित्रमूलम।
- बंगला : चिता ।
- गुजरती : चित्रो।
- फ़ारसी : चित्रो।
- मराठी : चित्रक।
➡ चित्रक का सामान्य परिचय :
- हम आपको एक ऐसी औषधीय वनस्पति की जानकारी देने जा रहे हैं जिसे हिंदी में एक तेज तर्रार जानवर का नाम चीतासे जाना जाता है। आप सोच रहे होंगे की ऐसी कौन सी वनस्पति होगी जिसके औषधीय गुण इतने तेज होंगे। जी हाँ,चित्रक नाम की इस झाडीदार वनस्पति के गुण बड़े ही अद्भुत हैं। इसकी पत्तियां लट्टू के आकार की या आयत के रूप में होती है। इसकी दो प्रजातियाँ होती हैएक श्वेत और दूसरी लाल।प्लाम्बेगो जिलेनिकायाइंडीकालेटिन नाम से प्रचलित इस वनस्पति में ‘प्ल्म्बेगिन’ नामक रसायन पाया जाता है। इस वनस्पति की जड़ों के क्षाल का औषधीय प्रयोग किया जाता है। यह अत्यंत ही गर्म और तीखे स्वभाव की वनस्पति है जिसे आयुर्वेद में कफ़ एवं वात दोष का शमन करने वाली श्रेष्ठ औषधि माना गया है।थोड़ी मात्रा में इसका प्रयोग उत्तेजना देता है, जबकि अधिक मात्रा में प्रयोग नशे का एहसास उत्पन्न करता है। इसकी जड़ों की क्षाल का प्रयोग जननेन्द्रियों को उत्तेजित करने में किया जाता है। यदि भूख कम लगने जैसी परेशानी हो तो इसेश्रेष्ठ अग्निदीपकमाना गया है। www.allayurvedic.org
- चित्रक पुष्प भेद से तीन प्रकार का होता है सफेद ,लाल, एवं नीले ,फूल वाला सफेद चित्र बहुतायत में मिलता है ।यह देश के प्राय सभी प्रांतों में जंगली झाड़ियों में देखा जा सकता है इसका क्षुप 2 से 5 फुट तक ऊंचा होता है तथा यह बहुवर्षीय पौधा है वर्षांत में पत्ते अधिक दिखाई देते हैं ।परंतु ग्रीष्म ऋतु में बहुत ही कम होते हैं इसके तने पर लंबी धारिया होती है। पत्ते एक दूसरे के विपरीत लगे होते है।ये 1.5से 3.5 इंच तक लम्बे तथा 1 से 1.5 इंच तक चौड़े होते हे जो अंडाकार कोमल एवं स्निग्ध होते है। फल यह के आकार के कच्ची अवस्था में हरे रंग के पकने पर दूसर के रंग के हो जाते है।ये सूक्ष्म तथा चिपचिपे कणों से युक्त होते है। इस कारण तोड़ने पर आपस में चिपक जाते है । मूल भंगुर होती है औषधी में हम इसके मूल का भी उपयोग करते हैं। पुरानी चित्र के मूल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
➡ रासायनिक संगठन :
- इसके मूल मे plumbagin नामक एक रवेदार पदार्थ होता है यह है पीत वर्ण का तथा अल्कोहल ईथर मइ विलय , जल में अविलेय परन्तु खोलते हुए पानी में बहुत ही कम विलय होता।
- गुण : लघु , रुक्ष , तीक्ष्ण।
- रस : कटु।
- वीर्य : उष्ण ।
- विपाक : कटु ।
➡ चित्रक का कई रोगों में औषिधीय प्रयोग :
- चित्रक मूल पाचन संस्थान में पाचक स्त्रावो की वृद्धि करता। जिससे भूख अच्छी लगती है एवं खाया हुआ अन्न शीघ्र पचता भीहै।गर्भाशय के लिए तीव्र संकोचक का काम करता हैं।अतः गर्भिणी स्त्री को भूल कर भी भूल कर भी नहीं देना चाहिए अन्यथा गर्भपात होने की बहुत अधिक संभावना रहता है चीते की जड़ की छाल को पीसकर घाव पर लेप करें तो वह घाव पककर फूट जाता ।उसमे नस्तर लगाने की आवस्यकता नही होती है ।इसका त्वक् विस्फोट भी उतपन् करता है। अतः श्वेत कुष्ठ तथा अन्य चर्म रोग एवम गठिया के शोध पर इसके त्वक् को दूध या नमक एवम् जल के साथ पीसकर उतने समय तक बांधे रखना चाहिए । जब तक की उसमे छाला न उतपन्न हो जाए। बाद में छाले पर मक्खन लगाना चाहिए रोग ठीक हो जाता है अर्श में मूल के चूर्ण को दही या शहद के साथ देते है। www.allayurvedic.org
- आमवात ,सन्धिशुल पक्षाघात आदि वेदना जन्य शोथ में इसमें सिद्ध तैल की मालिश करनी चाहिए तब लाभ मिलता है। विषम ज्वर में यकृत पलीहा वृद्धि होने में उत्पन्न पांडू कमला रोग में सेवन करने से भी लाभ होता हैं।
- अग्निमाद्य ,अरुचि ,अजीर्ण एवम अतिसार आदि उदर विकार में वायविडंग एवंमोथा के साथ इसका प्रयोग करना चाहिए।
- चित्रक का औषधीय भाग (प्रयोज्य अंग) : मूल एवम् मूल त्वक्।
- प्रयोग की मात्रा : 0.5 से 2 ग्राम
- आयुर्वेदीक स्टोर पर उपलब्ध विशिष्ठ योग : चित्रकादि गुटकादि , चित्रक हरीतकी , चित्रक घृत ,चित्रकादि चूर्ण।
➡ आचार्य चरक ने उद्धृत किया है :
- चित्रक मूलं दीपनीय पाचनीय गुद शोथार्श:शूलहराणाम।
- यथास्वं चित्रकः पुष्पे: ज्ञेयः पीत सितासीतॆ:!
- यथोत्तरं स गुणवान विधिना च रसायनं।
- छाया शुष्कं ततोमूलं चूर्णीकृत लिहन!!
- सर्पिषा मधुसर्पिभ्याम पिबन वा पयसा यति :।
- अम्भसा वा हितान्नाशी शतं जीवति नीरुजः।
- मेधावी बलवान कान्तो व् पुष्मान दीप्त पावकः।।
- सन्दर्भ चरक संहिता सूत्र स्थान :25
- इस वनौषधि में पाया जानेवाला कटु रस भोजन को ठीक ढंग से पचाने में मदद करता है और पाचन क्रिया को उद्दीपित करता है। इसे ग्रहणी,त्वचा रोगों,सूजन कम करने ,पाईल्स एवं पेट के कीड़ों ( वर्म ) की चिकित्सा में उचित माना गया है।बुखार या किसी भी लम्बी अवधि के बाद ठीक होने के पश्चात शरीर में आयी कमजोरी को दूर करने में चित्रक से बेहतर कोई और औषधि नहीं है। खांसी हो या पुराना नजला,चित्रक इन सभी में एक रामबाण औषधि के रूप में जानी जाती है। लीवर या प्लीहा से सम्बंधित समस्याओं में भी चित्रक एक अत्यंत कारगर औषधि के रूप में काम करता है।चाहे हो सफ़ेद दाग (श्वित्र) या किसी भी प्रकार के फोड़े या फुसियाँ जैसे चर्म रोग या गुदा मार्ग में उत्पन्न सूजन चित्रक हर स्थिति में प्रयोज्य है। www.allayurvedic.org
- चित्रक के कई प्रचलित आयुर्वेदिक योग भी हैं जिनका वैद्कीय निरीक्षण में प्रयोग किया जाना उचित है : चित्राकादिगुटिका,चित्रक हरीतकी, चित्रक घृत आदि।