हिंदू शास्त्रों में गायत्री मंत्र ‘ऊं भूर्भुव स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्’ को शास्त्रकार मंत्र कहा गया है। गायत्री मंत्र के संयोग से ही महामृत्युंजय मंत्र ‘ऊं नमः शिवाय’, संजीवनी मंत्र के रूप में परिवर्तित हो जाता है। ब्रह्म शक्ति की प्राप्ति इसी महामंत्र की साधना से होती है। लेकिन इसका अनुष्ठान करते समय विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है।
यह अत्यधिक प्रभावशाली व चमत्कारिक मंत्र है। इस मंत्र से कई तरह के रोगों का उपचार भी किया जा सकता है। जो लोग स्वयं इस मंत्र के अनुष्ठान करने में सक्षम न हों, वे किसी विद्वान पुरोहित से यह कार्य करवा सकते हैं।
- यदि छोटा बच्चा दूध न पीता हो, तो गायत्री कवच का पाठ करते हुए जल बच्चे को पिलाते रहें।
- बच्चे को उल्टी-दस्त में तीन शाम तक गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित जल एक-एक चम्मच पीने को दें। इससे बच्चा स्वस्थ हो जाएगा!
- जब भी कोई अनुष्ठान करें, माता-पिता पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। अनुष्ठान के समय मन में गायत्री मंत्र का पूरी आस्था से जप करें।
- यदि किसी को साधारण बुखार(ज्वर) हो तो थोड़े से जल को 108 बार गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर दो-दो चम्मच तीन-तीन घंटं के अंतर से रोगी को पिलाएं। यदि ज्यादा ज्वर हो तो इसी जल की पट्टी रखें। साथ में डॉक्टरी सलाह भी लें।
- यदि सिर में तेज दर्द बना रहता है, तब गायत्री मंत्र के 108 बार जप करके, रोगी को पिलाएं। इस क्रिया से सिर दर्द जल्द ठीक हो जाएगा!