- अर्जुन का पेड़ आमतौर पर सभी जगह पाया जाता है। परंतु अधिकांशत: यह मध्य प्रदेश, बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और बिहार में मिलता है। अक्सर नालों के किनारे लगने वाला अर्जुन का पेड़ 60 से 80 फुट ऊंचा होता है।
- इस पेड़ की छाल बाहर से सफेद, अंदर से चिकनी, मोटी तथा हल्का गुलाबी रंग लिए होती है। छाल को गोदने पर उसमें से एक प्रकार का स्राव (द्रव) निकलता है। इसके तने गोल और मोटे होते है तथा पत्ते अमरूद के पत्तों की तरह 4 से 6 इंच लंबे और डेढ़ से दो इंच चौड़े होते हैं।
- सफेद रंग के डंठलों पर बहुत छोटे-छोटे फूल हरित आभायुक्त सफेद या पीले रंग के और सुगन्धित होते हैं। फल 1 से डेढ इंच लंबे, 5-7 उठी हुई धारियों से युक्त होते हैं जो कि कच्चेपन में हरे और पकने पर भूरे लाल रंग के होते हैं।
- इसकी गंध अरुचिकर व स्वाद कसैला होता है तथा फलों में बीज न होने से ये ही बीज का कार्य करते हैं।
कितनी मात्रा में ले:
- अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम गुड़, शहद या दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार। अर्जुन की छाल का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर। पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर।
सामग्री:
- अर्जुन की छाल का रस: 50 मिलीलीटर
- गाय के घी: 50 ग्राम
- शहद: 50 ग्राम
- मिश्री: 75 ग्राम
विधि:
- अर्जुन की छाल का रस 50 मिलीलीटर, यदि गीली छाल न मिले तो 50 ग्राम सूखी छाल लेकर 4 किलोग्राम में पकावें।
- जब चौथाई शेष रह जाये तो काढ़े को छान लें, फिर 50 ग्राम गाय के घी को कढ़ाई में छोड़े, फिर इसमें अर्जुन की छाल की लुगदी 50 मिलीलीटर और पकाया हुआ रस तथा दूध को मिलाकर धीमी आंच पर पका लें।
- घी मात्र शेष रह जाने पर ठंडाकर छान लें। अब इसमें 50 ग्राम शहद और 75 ग्राम मिश्री मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस घी को 6 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध के साथ सेवन करें।
- यह घी हृदय को बलवान बनाता है तथा इसके रोगों को दूर करता है। हृदय की शिथिलता, तेज धड़कन, सूजन या हृदय बढ़ जाने आदि तमाम हृदय रोगों में अत्यंत प्रभावकारी योग है।