यूरिक एसिड का निर्माण उस समय होता है जब शरीर में प्यूरिन न्यूक्लियटाइड का निर्माण होता है जो कि ग़लत रूप से अपचय(catabolise) होती है. शरीर में यूरिक एसिड के अतिरिक्त मात्रा होने से गठिया तथा अन्य संबंधित रोग उत्पन्न हो जाते हैं.  यह रोग ख़ास तौर पर पैरों के जोड़ों में उत्पन्न होता है।

यूरिक एसिड के लक्षण :

  1. गठिया
  2. ज्वर
  3.  बुखार
  4. सूजन/ शोथ
  5. तीखा सुई के चुभने जैसा दर्द
  6. घुटनों में सूजन
  7. त्वचा की रंगत का बदलना
  8. शरीर के जोड़ों में दर्द और लालिमा

यूरिक एसिड का आयुर्वेदिक उपचार :

  • चक्रदत्त संहिता में औषधीय मिश्रण जिसमें अनेक रकतशोधक और यूरिक एसिड घटाने वाली प्राकृतिक औषधियाँ एक दूसरे की सहायता करते हुए कार्यरत होती हैं, इनका वर्णन है।
  • नवकार्षिक चूर्ण का 1 चम्मच हर रोज़ सेवन करना आवश्यक है. या फ़िर रात्रि को इसके 2 चम्मच पानी में भिगो कर रखें तथा प्रातः काल उठकर पानी को पी लीजिए।
  • नवकार्षिक चूर्ण वास्तव में रक्त की शुद्धि करने वाला है जिसमें आमला, बहेरा, हरड़, दारू हरिद्रा, बच, कुटकी, गिलोय, नीम, मंजिष्ठ इन सब प्राकृतिक औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है. यदि गठिया में दर्द भी हो तो साथ में किशोर गुग्गुलु भी चिकित्सकीय परामर्श के बाद लिया जा सकता है।

खान-पान और परहेज :

  1. डिब्बाबंद जूस का भी सेवन नही करना चाहिए।
  2. घृत कुमारी और आमले का रस रोज़ सेवन करना चाहिए।
  3. नारियल पानी का सेवन भी नियमित रूप से करें।
  4. प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का ही सेवन करें. और प्रोसेस्ड फुड और जंक फुड को मत खाएँ।
  5. इस रोग में उबले हुए सब्जी का सेवन ही श्रेष्ठ है।
  6. हल्का व्यायाम करना भी अच्छा है।
  7. जोड़ों पर हल्के कुनकुने तिल के तेल से हल्की मालिश करनी चाहिए।
  8. विटामिन ‘सी’ और ‘ए’ की प्रचुर मात्रा वाले भोजन आवश्यक रूप से लें।
  9. ठंडी और नमी युक्त स्थानों पर नही रहना चाहिए।
  10. लहसुन, अदरक, ज़ीरा, सौंफ, धनिया, एलाईची, दालचीनी का इस्तेमाल अधिक मात्रा में करें।
  11. दूध और इससे बने पदार्थ खाकर दही का सेवन न करें।
  12. तनाव और चिंता ग्रस्त होना छोड़ दें।
  13. इस बीमारी का जल्द से जल्द चिकित्सकीय विशेषज्ञ से आयुर्वेदीय इलाज करवाएँ अन्यथा यह जितनी पुरानी होगी उतनी ही असाध्य होती जाएगी।