- करंजनाम से जानी जाने वाली प्रथम वृक्ष जाति कोसंस्कृत वाङ्मयमें नक्तमाल, करंजिका तथा वृक्षकरंज आदि औरलोकभाषाओंमें डिढोरी, डहरकरंज अथवा कणझी आदि नाम दिए गए हैं। इसका वैज्ञानिक नाम पोंगैमिया ग्लैब्रा (Pongamia glabra) है, जो लेग्यूमिनोसी (Leguminosae) कुल एवं पैपिलिओनेसी (Papilionaceae) उपकुल में समाविष्ट है। यही संभवत: वास्तविक करंज है।
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यद्यपि परिस्थिति के अनुसार इसकी ऊँचाई आदि में भिन्नता होती है, परंतु विभिन्न परिस्थितियों में उगने की इसमें अद्भुत क्षमता होती है। इसके वृक्ष अधिकतर नदी-नालों के किनारे स्वत: उग आते हैं, अथवा सघन छायादार होने के कारण सड़कों के किनारे लगाए जाते हैं।
सामग्री :
दवा बनाने की विधि और सेवन का तारिक :
- करंज (लता करंज) के बीजों की मींगी के 1 ग्राम चूर्ण में 3 ग्राम शहद मिलाकर, पहले दिन खायें, फिर रोजाना 1-1 ग्राम बढ़ाते हुए 11वें दिन में 11 ग्राम की मात्रा में खायें।
- 11 वें दिन से 1-1 ग्राम कम करते हुए 3 ग्राम तक खायें।
लिवर, गॉल्ब्लैडर स्टोन और किडनी स्टोन में फ़ायदेमंद :
- इसके प्रयोग से दोनों प्रकार की पथरी ठीक हो जाती हैं।
- लीवर में कीड़े होने पर 10 से 12 मिलीलीटर करंज के पत्तों के रस में वायविडंग और छोटी पीपर का चूर्ण 125 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक मिलाकर सुबह-शाम खाना खाने के बाद 7 से 8 दिन तक खाने से यकृत के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।