जटामांसी (spikenard) : आयुर्वेद ग्रंथो में श्लोक
जटामांसी भुतजटा जटिला च तपस्विनी ।
मांसी तिक्ता कषाय च मेध्या कान्ति बलप्रदा ।।
स्वाद्वि हिमा त्रिदोषास्त्रदाहवीसर्प कुष्टनुत् ।। भा.प्र.।।
जटामांसी : सामान्य नाम
- लैटिन नाम : नार्डोस्टकिस जटामांसी डी. सी. (Nardostachys jatamansi D.C.)
- हिन्दी : जटामांसी, बालछड़।
- गुजराती और मराठी : जटामांसी
जटामांसी का परिचय :
यह हिमालय प्रदेश के 10 हजार से 18 हजार फीट की ऊँचाई तक भूटान में पाई जाती हे । इसका क्षुप बहुर्षाय होता है। इसकी जड़ कठिन तथा अनेक शाखाओ से युक्त होती हे तथा ये 6-7 अंगुल तक लम्बे सघन रोमो से आवृत रहती है। जो जटा रूप धारण कर लेती है। जड़ के अंतिम भाग में दो से सात _आठ की संख्या में पत्र होते है जो 6 से 7 इंच तक लम्बे होते है , मध्य में 1 इंच मोटा होता है । जड़ की और अत्यंत संकुचित होती है । काण्डपत्र 1 से 4 इंच तक लम्बे होते हे । डण्डियो के अंत में सफेद या कुछ गुलाबी रंग के छोटे छोटे फूलो के गुच्छे लगते हे । फल छोटे , गोल , सफेद एवम् रोयेदार होते हे । इसका भौमिक तना तथा मूल जो की रोमो से आवृत होता है एवम् शुष्क होने से गहरे धूसर रंग के या रक्ताभ भूरे रंग के हो जाते है और ये विशिष्ट सुगन्ध वाले होते हे । इनका उपयोग तेलो को सुगन्धित बनाने व रंगने के भी कम में लेते है ।
जटामांसी के 20 चमत्कारी लाभ :
- अनिद्रा : ये धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है। अनिद्रा की समस्या होने पर सोने से एक घंटा पहले एक चम्मच जटामांसी की जड़ का चूर्ण ताजे पानी के साथ लेने से लाभ होता है। जिनको भी नींद नही आने की समस्या है उनके लिए यह बहुत कारगर है जो धीरे-धीरे असर तो करेंगा लेकिन स्थाई रूप से।
- बाल काले और लंबे करना : जटामांसी के काढ़े से अपने बालों की मालिश कर सुबह-सुबह रोज लगायें और 2 घंटे के बाद नहा लें इसे रोज करने से फायदा पहुंचेगा, ये बालों को प्राकृतिक रूप से काले, लम्बे, घने और जड़ो से मज़बूत करता है।
- सूजन और दर्द : अगर आप सूजन और दर्द से परेशान हैं तो जटामांसी चूर्ण का लेप तैयार कर प्रभावित भाग पर लेप करें। ऐसा करने से दर्द और सूजन दोनों से राहत मिलेगी।
- बिस्तर पर पेशाब करना : जटामांसी और अश्वगंधा को बराबर मात्रा में लेकर पानी में डालकर काफी देर तक उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को छानकर बच्चे को 3 से 4 दिनों तक पिलाने से बिस्तर में पेशाब करने का रोग समाप्त हो जाता है।
- बेहोशी : जटामांसी को पीसकर आंखों पर लेप की तरह लगाने से बेहोशी दूर हो जाती है।
- दांतों का दर्द : यदि कोई व्यक्ति दांतों के दर्द से परेशान है तो, जटामांसी की जड़ का चूर्ण बनाकर मंजन करें। ऐसा करने से दांत के दर्द के साथ- साथ मसूढ़ों के दर्द, सूजन, दांतों से खून, मुंह से बदबू जैसी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
- पेट में दर्द : जटामांसी और मिश्री एक समान मात्रा में लेकर उसका एक चौथाई भाग सौंफ, सौंठ और दालचीनी मिलाकर चूर्ण बनाएं और दिन में दो बार 4 से 5 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करें। ऐसा करने से पेट के दर्द में आराम मिलता है।
- निद्राचारित या नींद में चलना : लगभग 600 मिलीग्राम से 1.2 ग्राम जटामांसी का सेवन सुबह और शाम को सेवन करने से इस रोग में बहुत लाभ मिलता है।
- तेज दिमाग : जटामांसी दिमाग के लिए एक रामबाण औषधि है, यह धीमे लेकिन प्रभावशाली ढंग से काम करती है। इसके अलावा यह याददाश्त को तेज करने की भी अचूक दवा है। एक चम्मच जटामांसी को एक कप दूध में मिलाकर पीने से दिमाग तेज होता है।
- रक्तचाप : जटामांसी औषधीय गुणों से भरी जड़ीबूटी है। एक चम्मच जटामांसी में शहद मिलाकर इसका सेवन करने से ब्लडप्रेशर को ठीक करके सामान्य स्तर पर लाया जा सकता है।
- हिस्टीरिया : जटामांसी चूर्ण को वाच चूर्ण और काले नमक के साथ मिलाकर दिन में तीन बार नियमित सेवन करने से हिस्टीरिया, मिर्गी, पागलपन जैसी बीमारियों से राहत मिलती है।
- ख़ून की सफ़ाई, रक्तपित्त : जटामांसी का चूर्ण 600 मिलीग्राम से 1.20 ग्राम नौसादर के साथ सुबह-शाम खाने से रक्तपित्त और खून की उल्टी ठीक होती है।
- ज्यादा पसीना आना : जटामांसी के बारीक चूर्ण से मालिश करने से ज्यादा पसीना आना कम हो जाता है।
- बवासीर : जटामांसी और हल्दी समान मात्रा में पीसकर प्रभावित हिस्से यानि मस्सों पर लेप करने से बवासीर की बीमारी खत्म हो जाती है। इसके अलावा जटामांसी का तेल मस्सों पर लगाने से मस्से सूख जाते हैं।
- मा-सिक धर्म में विकार : 20 ग्राम जटामांसी, 10 ग्राम जीरा और 5 ग्राम कालीमिर्च मिलाकर चूर्ण बनाएं। एक- एक चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार सेवन करें। इससे मा-सिक धर्म के दौरान दर्द में आराम मिलता है।
- शरीर कांपना : यदि किसी व्यक्ति के हाथ- पैर या शरीर कांपता है तो उसे जटामांसी का काढ़ा बनाकर रोजाना सुबह शाम सेवन करना चाहिए या फिर जटामांसी के चूर्ण का दिन में तीन बार सेवन करना चाहिए। इससे शरीर कंपन की समस्या दूर हो जाती है।
- मुंह के छाले : जटामांसी के टुकड़े मुंह में रखकर चूसते रहने से मुंह की जलन एवं पीड़ा कम होती है।
- शरीरिकि कमज़ोरी : यदि कोई यक्ति नपुंसकता की गंभीर समस्या से परेशान है तो जटामांसी, जायफल, सोंठ और लौंग को समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का रोजाना दिन में तीन बार सेवन करने से शरीरिकि कमज़ोरी से छुटकारा मिलता है।
- चेहरा साफ और जवाँ करना : जटामांसी की जड़ को गुलाबजल में पीसकर चेहरे पर लेप की तरह लगायें। इससे कुछ दिनों में ही चेहरा खिल उठेगा। यह प्रयोग आपको झुर्रियों से मुक्ति दिलाएगा, चेहरा गोरा और जवाँ बन जाता है।
- सिर दर्द : अक्सर तनाव और थकान के कारण सिर दर्द की परेशानी हो जाती है। इससे छुटकारा पाने के लिए जटामांसी, तगर, देवदारू, सोंठ, कूठ आदि को समान मात्रा में पीसकर देशी घी में मिलाकर सिर पर लेप करें, सिर दर्द में लाभ होगा।
जटामांसी के सेवन में महत्त्वपूर्ण सावधानियाँ :
- गुर्दों को हानि : जटामांसी का ज्यादा उपयोग करने से गुर्दों को हानि पहुंच सकती है और पेट में कभी भी दर्द शुरू हो सकता है।
- दस्त : जटामांसी का जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से बचें नहीं तो उल्टी, दस्त जैसी बीमारियां आपको परेशान कर सकती हैं।
- एलर्जी : जटामांसी के अत्यधिक उपयोग से एलर्जी हो सकती है। यदि आपकी त्वचा संवेदनशील है तो जटामांसी का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें। अन्यथा एलर्जी का खतरा हो सकता है।