Respiratory All Diseases | Asthma | Lungs Infections | Aayurvedic Health Insurance
नमस्कार आज हम आपको All Ayurvedic के माध्यम से अस्थमा की बीमारी और श्वास के रोगों को ख़त्म करने वाले हल्दी के योग के बारे में बताएँगे। हल्दी के पौधे जमीन के ऊपर हरे-हरे दिखाई देते हैं। इसके पौधे 2 या 3 फुट ऊंचे होते हैं और पत्ते केले के पत्ते के समान होते हैं। हल्दी की गांठों को जमीन से खोदकर निकाला जाता है और फिर हल्दी को साफ करके मटके में रखकर ऊपर से उसका मुंह बंद करके और आग की धीमी आंच पर पकाया जाता है जिससे इसकी कच्ची गन्ध दूर की जाती है और फिर इसे सुखाकर बेचा जाता है।
हल्दी एक फायदेमंद औषधि है। हल्दी किसी भी उम्र के व्यक्ति को दी जा सकती है चाहे वह बच्चा हो, जवान हो, बूढ़ा हो चाहे वह गर्भवती महिला ही क्यों न हो। यह शरीर से खून की गंदगी को दूर करती है और रंग को साफ करती है। हल्दी वात, पित्त और कफ व अन्य रोगों को खत्म करती है। अगर खांसी हो तो हल्दी को गर्म दूध में डालकर पीते हैं। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को भी बढ़ाती है।
हल्दी से कपड़ों को रंगा भी जाता है। हल्दी और चूने को आपस में मिलाकर कुंकुम बनाया जाता है। इससे मधुमेह का रोग भी ठीक हो जाता है। यहां तक कि पुराने जमाने के गुरू, आचार्य और वैद्य तो इसे `मेहहनी´ के नाम से विभूषित करते थे। आइए जानते है हल्दी एक अद्भुत योग के बारे में जो अस्थमा और श्वास के रोगों जैसे फेफड़ो का इंफेक्शन, श्वास की एलर्जी, दमा की दिक्कत, वर्षा ऋतु में अस्थमा, छींके आना, खासी-जुकाम, नाक बहना, नजला रहना आदि में चमत्कारीक फ़ायदा करती है।
श्वास के रोग होने के कारण | Respiratory Diseases Causes
श्वास रोग एक एलर्जिक तथा जटिल बीमारी है जो ज्यादातर श्वांस नलिका में धूल के कण जम जाने के कारण या श्वास नली में ठंड़ लग जाने के कारण होती है।
दमा रोग जलन पैदा करने वाले पदार्थों का सेवन करने, देर से हजम होने वाले पदार्थों का सेवन करने, रसवाहिनी शिराओं को रोकने वाले तथा दस्त रोकने वाले पदार्थों के सेवन करने के कारण होता है।
यह रोग ठंड़े पदार्थों अथवा ठंड़ा पानी अधिक सेवन करने, अधिक हवा लगने, अधिक परिश्रम करने, भारी बोझ उठाने, मूत्र का वेग रोकने, अधिक उपश्वास तथा धूल, धुंआ आदि के मुंह में जाने के कारणों से श्वास रोग उत्पन्न होता है।
अधिक दिनों से दूषित व बासी ठंड़े खाद्य पदार्थों का सेवन करने और प्रदूषित वातावरण में रहने से दमा (अस्थमा) रोग होता है। कुछ बच्चों में दमा रोग वंशानुगत भी होता है। माता-पिता में किसी एक को दमा (अस्थमा) होने पर उनकी संतान को भी (अस्थमा) रोग हो सकता है।
वर्षा ऋतु में दमा रोग अधिक होता है क्योंकि इस मौसम में वातावरण में अधिक नमी (आर्द्रता) होती है। ऐसे वातावरण में दमा (अस्थमा) के रोगी को श्वास लेने में अधिक कठिनाई होती है और रोगी को दमा के दौरे पड़ने की संभावना रहती है। दमा के दौरे पड़ने पर रोगी को घुटन होने लगती है और कभी-कभी दौरे के कारण बेहोश भी होकर गिर पड़ता है।
श्वास में रोग होने के लक्षण | Respiratory Diseases Symptoms
क्षुद्रश्वांस : रूखे पदार्थों का सेवन करने तथा अधिक परिश्रम करने के कारण जब कुछ वायु ऊपर की और उठती है तो क्षुद्रश्वांस उत्पन्न होती है। क्षुद्रश्वांस में वायु कुपित होती है परन्तु अधिक कष्ट नहीं होता है। यह रोग कभी-कभी स्वत: ही ठीक हो जाता है।
तमस श्वांस या पीनस : इस दमा रोग में वायु गले को जकड़ लेती है और गले में जमा कफ ऊपर की ओर उठकर श्वांस नली में विपरीत दिशा में चढ़ता है जिसे तमस ( पीनस ) रोग उत्पन्न होता है। पीनस होने पर गले में घड़घड़ाहट की आवाज के साथ सांस लेने व छोड़ने पर अधिक पीड़ा होती है। इस रोग में भय , भ्रम , खांसी , कष्ट के साथ कफ का निकलना, बोलने में कष्ट होना, अनिद्रा (नींद न आना) आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। सिर दर्द , मुख का सूख जाना और चेतना का कम होना इस रोग के लक्षण हैं। यह रोग वर्षा में भीगने या ठंड़ लगने से भी हो जाता है। पीनस रोग में लेटने पर कष्ट तथा बैठने में आराम का अनुभव होता है।
ऊध्र्वश्वास या सांस को जोर से ऊपर की ओर खिंचना : ऊपर की ओर जोर से सांस खींचना, नीचे को लौटते समय कठिनाई का होना, सांसनली में कफ का भर जाना, ऊपर की ओर दृष्टि का रहना, घबराहट महसूस करना, हमेशा इधर-उधर देखते रहना तथा नीचे की ओर सांस रुकने के साथ बेहोशी उत्पन्न होना आदि लक्षण होते हैं।
महाश्वांस : सांस ऊपर की ओर अटका महसूस होना, खांसने में अधिक कष्ट होना, उच्च श्वांस, स्मरणशक्ति का कम होना , मुंह व आंखों का खुला रहना, मल-मूत्र की रुकावट, बोलने में कठिनाई तथा सांस लेने व छोड़ते समय गले से घड़घड़ाहट की आवाज आना आदि इस रोग के लक्षण हैं। जोर-जोर से सांस लेना, आंखों का फट सा जाना और जीभ का तुतलाना ये महाश्वास के लक्षण हैं।
छिन्न श्वांस : इस रोग में रोगी ठीक प्रकार से श्वांस नहीं ले पाता, सांस रुक-रुककर चलती है, पेट फूला रहता है, पेडू में जलन होती है, पसीना अधिक मात्रा में आता, आंखों में पानी रहता है तथा घूमना व श्वांस लेने में कष्ट होता है। इस रोग में मुंह व आंखे लाल हो जाती हैं, चेहरा सूख जाता है, मन उत्तेजित रहता है और बोलने में परेशानी होती है। रोगी की मूत्राशय में बहुत जलन होती है और रोगी हांफता हुआ बड़बड़ाता रहता है।
आवश्यक सामग्री | Ingredients
हल्दी की दो गांठे,
अड़ूसा (वासा) के एक किलो सूखे पत्ते,
10 ग्राम कालीमिर्च,
50 ग्राम सेंधा नमक
5 ग्राम बबूल के गोन्द
इस आयुर्वेदिक योग बनाने की विधि और सेवन का तारिक | Respiratory Diseases Ayurvedic Remedy
हल्दी को पीसकर तवे पर भूनकर शहद के साथ चाटने से श्वास रोग खत्म हो जाता है। हल्दी, किशमिश, कालीमिर्च, पीपल, रास्ना, कचूर सभी को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीस लें और फिर इन्हें थोडे़ से गुड़ में मिलाकर छोटे बेर के बराबर की गोलियां बनाकर प्रतिदिन दो गोली सुबह और शाम को खाने से दमा और श्वास की बीमारी खत्म हो जाती है।
हल्दी की दो गांठे, अड़ूसा (वासा) के एक किलो सूखे पत्ते, 10 ग्राम कालीमिर्च, 50 ग्राम सेंधानमक और 5 ग्राम बबूल के गोन्द को मिलाकर और कूट पीसकर मटर जैसी छोटी-छोटी गोलियां बनाकर रख लें। प्रतिदिन 5-6 गोलियां चूसते रहने से दमा से होने वाला कष्ट दूर हो जाता है।