इस प्राणायाम में अभ्यास के समय हल्की भन-भनाहट के समान आवाज निकालते हुए सांस लेते हैं और भंवरे की आवाज की तरह हल्की गुनगुनाहट के साथ सांस बाहर छोड़ते हैं। इस क्रिया से मन प्रसन्न और शांत रहता है। इससे व्यक्ति में भक्ति की भावना उत्पन्न होती है। इसके लगातार अभ्यास से व्यक्ति में ध्यान और एकाग्रता की इतनी वृद्धि हो जाती है कि कभी-कभी अभ्यास के क्रम में “ओंकार” की ध्वनि सुनाई देने लगती है।
आजकल की दौड़-भाग और तनाव की जिंदगी में दिमाग और मन को शांत कर चिंता, भय, शोक, इर्ष्या और मनोरोग को दूर भगाने के लिए योग और प्राणायाम से अच्छी कोई और चीज नहीं हैं। मानसिक तनाव और विचारो को काबू में करने के लिए भ्रामरी प्राणायाम किया जाता हैं।
भ्रामरी प्राणायाम करते समय भ्रमर (काले भँवरे) के समान आवाज होने के कारण इसे अंग्रेजी में Humming Bee Breath भी कहा जाता हैं। यह प्राणायाम हम किसी भी समय कर सकते हैं। खुर्ची पर सीधे बैठ कर या सोते समय लेटते हुए भी यह किया जा सकता हैं।
भ्रमरी प्राणायाम का अभ्यास 2 विधियों से किया जा सकता है
पहली विधि :
इसका अभ्यास साफ व हवादार स्थान पर करें। इसके लिए चटाई बिछाकर पद्मासन में बैठ जाएं। पद्मासन के लिए दाएं पैर को मोड़कर बाईं जांघ पर और बाएं पैर को मोड़कर दाईं जांघ पर रखें। अब पद्मासन में बैठने के बाद अपने पूरे शरीर को सीधा रखें और पीठ, छाती व कमर को तान कर रखें। फिर अपने दोनों हाथों को नाभि के पास लाकर अंजुल बनाकर दाएं हाथ को बाएं हाथ पर रखें और हथेली वाले भाग को ऊपर की ओर करके रखें।
आंखों और मुंह को बंद करके रखें। अब अंदर कंठ से भंवरे के समान आवाज करते हुए सांस लें और पेट को बाहर फुलाएं। इसके बाद सिर को आगे की ओर झुकाकर ठोड़ी को कंठमूल में लगाएं और कंधे को हल्का सा ऊपर की ओर भींच कर आगे की ओर करें।
इस स्थिति में सांस जितनी देर रोकना सम्भव हो रोकें और फिर सिर को सीधा करके आंखों को खोलकर भंवरे के समान आवाज निकालते हुए सांस बाहर छोड़ें। इस तरह इस क्रिया को जितनी देर तक करना सम्भव हो करें या 10 से 15 बार करें।
भ्रमरी प्राणायाम में सावधानी
इस प्राणायाम के अभ्यास में सांस लेने व छोड़ने के क्रम में खून का बहाव तेज होता है। इसलिए उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) और हृदय रोगियों का इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
भ्रमरी प्राणायाम अभ्यास से रोगों में लाभ
इसके अभ्यास से मन शांत, स्वच्छ एवं विचार कोमल होते हैं तथा आवाज में मधुरता आती है। इस क्रिया से मन इतना प्रभावित हो जाता है कि कभी-कभी इसके ध्यान में ´ओम´ की ध्वनि सुनाई देने लगती है। इस क्रिया में स्वच्छ वायु के शरीर में प्रवेश होने से रक्तदोष (खून की खराबी) दूर होती है। इससे मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है और मन से चिंता दूर होकर मन नियंत्रित और प्रसन्न होता है। थाईराइड ठीक होता है।
दूसरी विधि :
इसके अभ्यास के लिए पहले की तरह ही स्थान चुनकर उसपर पदमासन की स्थिति में बैठ जाए। अपने शरीर को सीधा रखते हुए पीठ, छाती व कमर को सीधा रखें। अपनी आंखों को बंद रखें और अपने दोनों हाथों से दोनों कानों को बंद कर लें। इसके बाद नाक के दोनों छिद्रों से सांस लें और पेट को फुलाएं। फिर सांस को अंदर रोककर रखें और सिर को झुकाकर ठोड़ी को कंठ मूल पर टिकाएं।
इस स्थिति में 5 सैकेंड तक रहें और फिर सिर को ऊपर सामान्य स्थिति में लाकर दोनो दांतों के बीच हल्का फासला रखें और मुंह को बंद रखते हुए ही भंवरे की तरह लम्बी आवाज निकालते हुए धीरे-धीरे नाक से सांस बाहर छोड़ें। इस तरह इस क्रिया को 5 बार करें और धीरे-धीरे बढ़ाते हुए इसकी संख्या 10 से 15 बार करें।
भ्रमरी प्राणायाम अभ्यास से रोग में लाभ
इस प्राणायाम से मन शांत होता है और मन की चंचलता दूर होती हैं। इससे मन में अच्छे विचार आते है और मन प्रसन्न रहता है तथा मन भक्ति भावना के ध्यान में मग्न होने के योग्य बनता हैं। इसके निरंतर अभ्यास से मन के विचार इतने प्रभावित होते हैं कि ´ओम´ की ध्वनि सुनाई देने लगती है। इस प्राणायाम से गले के रोग दूर होते हैं और रक्तचाप सामान्य रहता है। यह मानसिक उन्माद को खत्म करता है तथा इसका अभ्यास गायकों के लिए अधिक लाभकारी होता है। थाईराइड ठीक होता है।
भ्रामरी प्राणायाम के अन्य लाभ
भ्रामरी प्राणायाम से निचे दिए हुए लाभ होते है- क्रोध, चिंता, भय, तनाव और अनिद्रा इत्यादि मानसिक विकारो को दूर करने में मदद मिलती हैं। मन और मस्तिष्क को शांति मिलती हैं। सकारात्मक सोच बढ़ती हैं। थाईराइड ठीक होता है।
आधसीसी / Migraine से पीडितो के लिए लाभकारी हैं। बुद्धि तेज होती हैं। स्मरणशक्ति बढ़ती हैं। उच्च रक्तचाप को के रोगियों के लिए उपयोगी हैं। भ्रामरी प्राणायाम करते समय ठुड्डी (Chin) को गले से लगाकर (जालंदर बंध) करने से थाइरोइड रोग में लाभ होता हैं। Sinusitis के रोगियों को इससे राहत मिलती हैं।
भ्रामरी प्राणायाम में क्या एहतियात बरतने चाहिए ?
कान में दर्द या संक्रमण होने पर यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए। अपने क्षमता से ज्यादा करने का प्रयास न करे। प्राणायाम करने का समय और चक्र धीरे-धीरे बढ़ाये। भ्रामरी प्राणायाम करने के बाद आप धीरे-धीरे नियमति सामान्य श्वसन कर श्वास को नियंत्रित कर सकते हैं।
भ्रामरी प्राणायाम करते समय चक्कर आना, घबराहट होना, खांसी आना, सिरदर्द या अन्य कोई परेशानी होने पर प्राणायाम रोककर अपने डॉक्टर या योग विशेषज्ञ की सलाह लेना चाहिए।