आज हम All Ayurvedic के माध्यम से आपको हर रोज इस्तेमाल होने वाली उन तीन चीजों के बारे में बताऊंगा जिसकी वजह से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियां हो जाती हैं।
तेजी से बदलते इस आधुनिक दौर में अपनी सुख-सुविधा की सामग्री को बढ़ाने के लिए और रोजाना यूज़ में लाए जाने वाली चीजों के इस्तेमाल को और आसान बनाने के लिए लगातार नई-नई वस्तुओं का आविष्कार हो रहा है।
ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं जिनमें बनाते समय कई हानिकारक केमिकल प्रोसेसर का इस्तेमाल किया जाता है और ऐसी चीजों में केमिकल का अधिक इस्तेमाल होने की वजह से यह वस्तुएं हमारी सेहत के लिए बहुत ही हानिकारक हो जाती हैं।
परेशानी की बात तो यह है कि आजकल ज्यादातर लोग इन वस्तुओं से होने वाली बुरे परिणामों से अनजान हैं और लगातार इन चीजों का इस्तेमाल करते रहते है।
ऐसी कोई भी वस्तु जो कि प्राकृतिक नहीं है या जिन्हें मनुष्य ने केमिकल इस्तेमाल करके बनाया है वह हमारे शरीर में किसी तरह प्रवेश कर जाती है तो इनसे छोटी से लेकर कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी कि पिछले 10 सालों में किडनी, फेफड़ों और लीवर की खराबी और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां फैलने के पीछे ज्यादा इंसान द्वारा निर्मित इन्हीं केमिकलयुक्त चीजों का हाथ है।
हमारे आस पास केमिकल से बनी चीजें इतनी ज्यादा फैल चुकी हैं कि जाने अनजाने में हम इनका इस्तेमाल करते हैं. इन से होने वाले खतरनाक परिणाम इनके केवल एक बार इस्तेमाल से नजर नहीं आते हैं लेकिन समय के साथ-साथ धीरे-धीरे यह हमारे शरीर को अंदर से प्रभावित कर रहे होते हैं, जिसकी वजह से अचानक एक दिन यह किसी बड़ी बीमारी के रूप में हमारी जिंदगी से जुड़ जाते हैं।
कैंसर करने वाली इन 3 चीजों को हम हर रोज इस्तेमाल करते हैं
1. प्लास्टिक डिस्पोजेबल :
स्टायरोफोम से बने कप और डिस्पोजेबल प्लेट का इस्तेमाल आजकल बढ़ता जा रहा है। इनका चाय, कॉफी और सॉफ्ट ड्रिंक में इस्तेमाल किया जा रहा है। स्टायरोफोम पोलीस टाइम्स प्लास्टिक से निर्मित होता है।
यह प्लास्टिक की गैस से भरी हुई बहुत छोटी-छोटी बोल से मिलकर बना होता है. यह एक तरह का थर्माकोल हीं है लेकिन यह साधारण थर्माकोल से ज्यादा सख्त और मजबूत होता है।
जिन गैसेस का इस्तेमाल करके इसे हल्का बनाया जाता है और इसकी पूरी निर्माण प्रक्रिया में जिन केमिकल का इस्तेमाल होता है वह हमारी हेल्थ के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकते हैं।
इसमें पाए जाने वाले केमिकल का जब जानवरों पर परीक्षण किया गया तो इसमें कुछ ऐसे तत्व पाए गए जो कि हमारे शरीर में कैंसर पैदा कर सकते हैं।
स्टायरोफोम से बनी चीजों में जब गर्म चीज डाली जाती है तो इसमें मौजूद स्टेरिंग मटेरियल घुलने लगता है इसलिए कई देशों में से पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने इसे कई देशों में बेन भी कर रखा है. इसके इस्तेमाल से थायराइड,आंखों में इंफेक्शन, थकान, कमजोरी और त्वचा रोग होने की संभावना काफी ज्यादा होती है।
कोल्ड ड्रिंक्स, पानी और ठंडी चीजों का स्टायरोफोम से बने बर्तन में सेवन करना इतना बुरा नहीं होता है लेकिन गर्म चीजें जैसे चाय-कॉफी और शुप जैसे बहुत तेज गर्म चीजें इसमें डालने पर यह न्यूरो टॉक्सिक बन जाता है जो भी हमारे दिमाग की नसों को बहुत ज्यादा कमजोर बना देता है।
प्लास्टिक की वजह से इन्हें रिसाइकिल करना भी बहुत मुश्किल काम हो जाता है जो की हमारे साथ साथ हमारे वातावरण के लिए भी हानिकारक है।
2. अगरबत्ती :
हमारे देश में पूजा के दौरान या किसी धार्मिक काम को करते समय अगरबत्ती का इस्तेमाल होता ही है और जो लोग भगवान की रोज पूजा नहीं कर सकते वह लोग सिर्फ दीया और अगरबत्ती लगाकर ही भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा को जाहिर करते हैं।
अगरबत्तियों का इस्तेमाल भारत के अलावा चाइना, जापान, अरेबियन कंट्रीज, म्यानमार और वियतनाम जैसे कई एशियन कंट्री में किया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं अगरबत्ती से निकलने वाला धुआं सिगरेट के धुएं से भी ज्यादा खतरनाक होता है।
इटली में की गई एक रिसर्च के मुताबिक अगरबत्ती जलने पर निकलने वाले धुएं से पोलियरोमोटिक हाइड्रोकार्बन और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी खतरनाक गैस निकलती है जो की लंग कैंसर तक पैदा कर सकती हैं और हम इसे अपने घर और ऑफिस के अंदर जलाते है।
इसलिए इससे निकलने वाली खतरनाक गेस लगातार सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करते रहती हैं। जिसका असर हमारे दिमाग और त्वचा पर भी होने लगता है. चाहे अगरबत्ती जलाने से खुशबू आती हो लेकिन इससे घर के अंदर के वातावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
अगरबत्ती की खुशबू तेजी से इसलिए फैलती है क्योंकि इसमें कैथोलिक नामक केमिकल पाया जाता है और बुझने के बावजूद भी अगर बत्ती में मौजूद केमिकल्स लगभग 5 से 6 घंटे तक घर के अंदर के वातावरण में मौजूद रहते हैं।
ऐसे में जिन लोगों को लंग से संबंधित प्रॉब्लम है या जो अस्थमा के मरीज हैं उन लोगों को यह बीमारी हो और भी ज्यदा हो सकती .है जो लोग लगातार अगरबत्ती के संपर्क में रहते हैं उन्हें समय के साथ-साथ स्वास्थ्य संबंधित कोई ना कोई प्रॉब्लम होती है।
अगरबत्ती के धुएं का हमारे रेस्पिरेटरी सिस्टम पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है और साथ ही यह न्यूरोलॉजिकल और कॉर्डि लॉजिकल प्रॉब्लम भी पैदा कर सकता है।
सिगरेट के धुएं से डेढ़ गुना ज्यादा हानिकारक होने की वजह से जब इसका धुआ हमारी नाक की जरिए शरीर में प्रवेश करता है तो इससे Acute Bronchits होने का खतरा काफी ज्यादा बढ़ जाता है।
स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होने के साथ-साथ अगरबत्ती इस्तेमाल नहीं करने के पीछे एक धार्मिक पहलू भी है। बहुत सारी कंपनी अगरबत्ती बनाने में बांस का इस्तेमाल करती हैं और हिंदू धर्म में बांस को जलाया नहीं जाता है क्योंकि बांस की लकड़ी को जलाने पर निकलने वाली आग को देखना हिंदू धर्म में अपशगुन माना जाता है और उसे नाश का प्रतीक भी कहा जाता है।
इसलिए किसी भी हवन या पूजा में कभी भी बांस की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं होता है और यहां तक की चिता में भी बांस की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं होता है।
ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष सबसे बुरे दोस में से एक बताया गया है क्योंकि इसकी वजह से घर में अशांति फैलती है और जीवन के हर क्षेत्र में लगातार असफलता का सामना करना पड़ता है।
कई ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि बांस को जलाने से पितृ दोष होता है. अब ज़रा आप सोचिए एक और आप भगवान के सामने अगरबत्ती लगाकर किसी अच्छे फल की कामना कर रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ आप अपने घर में जहरीली गैस के जरिए बीमारियों और नेगेटिविटी को बढ़ा रहे हैं।
इसलिए अगरबत्ती का इस्तेमाल करने से पहले यह जरूर पता कर ले कि वह पूरी तरह से ऑर्गेनिक और केमिकल फ्री हो और उसमें बांस की लकड़ी का इस्तेमाल ना किया गया हो।
3. मच्छरों को मारने वाली कोयल और रेपेल्लेंट्स :
मच्छरों को मारने वाली कोयल और रेपेल्लेंट्स का मच्छरों के साथ-साथ हर जीवित प्राणी पर असर होता है. ज्यादातर लोगों को पता होता है कि मच्छर को भगाने वाले चीजों में जहरीले पदार्थों का इस्तेमाल होता है।
अगर आप रोजाना 5 से 6 घंटे या इससे ज्यादा समय तक मच्छर भगाने वाले रेपेल्लेंट्स या कोयल जला कर उसमें सांस लेते हैं तो उससे निकलने वाले केमिकल्स का स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
सुबह उठते ही सर में दर्द या भारीपन महसूस होना, आलस और थकान होना, रात भर लगाने वाली कोयल या रेपेल्लेंट्स में सांस लेने का नतीजा हो सकता है।
हानिकारक केमिकल होने की वजह से यह फेफड़ों में खराबी, सांस फूलना, कफ और अस्थमा जैसी बीमारियों को जन्म देता है. खासकर छोटे बच्चों की सेहत पर इसका सबसे ज्यादा बुरा असर पड़ता है।
कम उम्र के बच्चों के छोटे छोटे फेफड़े इससे होने वाले बुरे प्रभावों को सहन करने में असमर्थ होते हैं और ऐसे में उन्हें एलर्जी और कम उम्र में ही अस्थमा होने की संभावना काफी ज्यादा बढ़ जाती है। उम्मीद करते है आगे से आप इन कैंसर करने वाली चीजों के इस्तेमाल को करने से बचेगे।