दुर्भाग्य को दूर करने के लिए ज्योतिष में कई तरह के उपाय बताए गए हैं। इन उपायों में से एक उपाय ये है कि हाथ में अलग-अलग धातुओं की और रत्नों की अंगूठी पहनना।

ज्योतिष का एक अभिन्न अंग है वास्तु और वास्तु में अंगूठी से जुड़ा एक बहुत ही खास उपाय बताया गया है, वह ये है कि दुर्भाग्य को दूर करने के लिए ऐसी अंगुठी पहनें, जिसमें कछुए की आकृति बनी हुई हो।

 

यहां जानिए कछुए की अंगूठी से जुड़ी खास बातें…

1. अंगूठी सीधे हाथ की मध्यमा या तर्जनी उंगली में पहननी चाहिए। कछुए को मां लक्ष्मी के साथ जोड़ा गया है, इसलिए इसे लक्ष्मी के दिन शुक्रवार को पहनें।

2. कछुए की अंगूठी को इस तरह बनवाएं की कछुए के सर वाला भाग पहनने वाले व्यक्ति की ओर हो। कछुए का मुख बाहर की ओर होगा तो नकारात्मक असर हो सकता है।

3. शुक्रवार को अंगूठी को खरीदें और घर लाकर लक्ष्मीजी की मूर्ति के सामने कुछ देर रख दें। दूध और पानी से धोएं। पूजा करें। इसके बाद इसे धारण करें।

4. समुद्र मंथन की कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के लिए कछुए का अवतार लिया था और देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी जो विष्णु जी की पत्नी बनी। इसलिए लक्ष्मी के साथ ही कछुए को भी धन बढ़ाने वाला माना गया है।

5. कछुए को धैर्य, शांति, निरंतरता और सुख-समृद्धि का भी प्रतिक माना जाता है। कछुए वाली अंगुठी चांदी की होगी तो ज्यादा शुभ रहेगा।

6. शास्त्रों के अनुसार कछुए को सकारात्मकता और उन्नति का प्रतिक माना गया है।

रत्नों का व्यक्ति के जीवन से हजारों वर्ष पुराना नाता

रत्नों का व्यक्ति के जीवन से हजारों वर्ष पुराना नाता है। जहां एक ओर रत्न जमीन से हजारों फुट नीचे व पहाड़ों और गुफाओं में से निकलते हैं वहीं दूसरी ओर समुद्र में तथा पहाड़ों पर जुगनुओं की तरह चमचमाते पौधों की डालियों, जड़ों व फलों की डालियों में पाए जाते हैं जैसे रत्न मूंगा व संजीवनी बूटी जो पहाड़ों पर चमचमाती दिखाई देती है।

‘रामायण’ में जब रावण के पुत्र मेघनाथ से युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तो हनुमान जी पूरा पहाड़ ही उठा लाए थे जिस पर चमचमाते प्राकृतिक ऊर्जा से भरे व जुगनुओं की तरह टिमटिमाते पौधे दिखाई देते थे।

लक्ष्मण जी का उपचार कर रहे वैद्य ने जब पहाड़ से संजीवनी बूटी निकाल कर लक्ष्मण जी को सुंघाई तो वह तुरंत मूर्छा से मुक्त हो गए थे। आज भी हमारे देश में आयुर्वेद में रोगों का इलाज जड़ी-बूटियों से किया जाता है।

आज भी पर्वतों पर व समुद्रों में कुछ ऐसे पौधे, जड़ी-बूटियां दिखाई पड़ते हैं जिनकी आकृति मनुष्य के शरीर के अंगों से मिलती-जुलती है और जो शायद इस ओर इशारा करती है कि जैसा कि इनका संबंध मनुष्य के शरीर से बहुत गहरा है।

रत्न स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद होते हैं, दवा के साथ-साथ रत्न का प्रयोग या फिर रोग से बचाव के लिए हमें रत्न अवश्य धारण कर लेना चाहिए। ये सारे रत्न स्वास्थ्य के अतिरिक्त भी हमारे जीवन की कई समस्याएं दूर करते हैं।

जैसे सूर्य रत्न हमें यश प्रदान करते हैं। चंद्र हमारे मन को ताकत देते हैं। मंगल हमें शारीरिक शक्ति प्रदान करते हैं। बुध हमें वाणी एवं बुद्धि प्रदान करते हैं, गुरु हमें ज्ञान प्रदान करते हैं। शुक्र हमें सौंदर्य प्रदान करते हैं। शनि हमें सेवा भाव से कर्म करना सिखाते हैं। इस प्रकार सारे रत्न हमारा जीवन खुशियों से भरते हैं।

आइए जाने किस रत्न से कौन सा रोग दूर रहता है 

माणिक्य (हृदय रोग/नेत्र रोग) यह सूर्य का रत्न है। इसका रंग लाल होता है जो व्यक्ति हृदय रोग अथवा निम्र रक्तचाप से पीड़ित हैं, उनके लिए माणिक्य धारण करना अच्छा रहता है। यह रत्न आंख के रोग एवं नेत्र ज्योति के लिए भी धारण किया जा सकता है।

‘दिमागी मूंगा’ रीढ़ की हड्डी की तरह का पेट के आकार जैसा मूंगा, पौरुष शक्ति बढ़ाने वाला मूंगा शरीर के अंगों जैसी आकृति के पौधों से प्राप्त किए जाते हैं और फिर इनको काट कर, मशीनों द्वारा साफ करके रत्नों का आकार दे दिया जाता है।

मोती (मानसिक रोग) यह चंद्रमा का रत्न है। यह सफेद रंग का होता है, जिनका मन बेचैन रहता है या मानसिक तनाव रहता है क्योंकि तनाव से बहुत-सी बीमारियां होती हैं इस रोग से बचने के लिए उन्हें मोती धारण करना चाहिए। निराशा, श्वास संबंधी रोग, सर्दी जुकाम के लिए मोती पहनना गुणकारी है।

मूंगा (लकवा, मिर्गी, पीलिया) यह मंगल का रत्न लाल होता है। यह व्यक्ति को ऊर्जावान बनाता है। किडनी के रोग के अलावा अन्य कई रोगों जैसे लकवा, मिर्गी, पीलिया में भी इसे धारण करना लाभकारी है। बच्चों को मूंगा पहनाने से ‘बालारिष्ट’ रोग से बचाव होता है।

पन्ना (त्वचा, दमा, खांसी, अनिद्रा टांसिल) यह रत्न बुध का है और हरे रंग का होता है। इस रत्न को धारण करने से त्वचा संबंधी रोग एवं दमा, खांसी, मिचली, अनिद्रा, टांसिल जैसे रोगों से बचाव होता है। इस रत्न के प्रभाव से लिवर एवं किडनी स्वस्थ रहते हैं और तेजी से सुधार होता है।

पुखराज (सेहत, अल्सर, रक्तचाप) यह गुरु का रत्न पीले रंग का होता है, जिसे आप मोटापे को नियंत्रित करने और सेहत में सुधार के लिए पहन सकते हैं। इसे धारण करने से रक्तचाप नियंत्रित रहता है, अल्सर एवं सन्निपात रोग के लिए भी पुखराज धारण कर सकते हैं।

हीरा (सौंदर्य, न-पुंसकता, हिस्टीरिया, क्षय रोग) शुक्र ग्रह का यह रत्न सौंदर्य में वृद्धि करता है। शरीर में रक्त की कमी, मोतियाबिंद, न-पुंसकता, एनीमिया, हिस्टीरिया, क्षय रोग आदि से बचाव करता है।

नीलम (मिर्गी, ज्वर, गठिया, हड्डी के रोग) यह शनि का नीले रंग का रत्न है जो हड्डियों के रोग, मिर्गी, ज्वर, गठिया, बवासीर में लाभकारी है। सन्धिवात से पीड़ित रोगी भी इसे धारण कर सकते हैं।

गोमेद (पेट, बवासीर, पित्त, कफ) राहू का यह रत्न शहद के समान भूरे रंग का होता है, पेट एवं पाचन के रोग, बवासीर, सर्दी, कफ, पित्त के रोगों में लाभकारी है।

लहसुनिया (संतान, मुख रोग, चेचक, बवासीर) ये केतु का रत्न है। ये रत्न खांसी, संतान सुख, मुख के रोग, चेचक, बवासीर, एनीमिया आदि रोगों में पहनना लाभप्रद होता है। ये रत्न आप किसी ज्योतिषी से सलाह लेकर ही पहनें, क्योंकि वही आपकी जन्मपत्री से बता सकेंगे कि कौन-सा ग्रह कमजोर है।

रत्नों में छुपी हुई होती है प्राकृतिक ऊर्जा

जिस प्रकार चुंबक के चारों ओर की ऊर्जा दिखाई नहीं देती लेकिन जैसे ही वह लोहे के समीप आता है, ऊर्जावान हो जाता है इसी प्रकार इन रत्नों में छुपी हुई प्राकृतिक ऊर्जा व्यक्ति के शरीर के संपर्क में आते ही अपना प्रभाव दिखाना प्रारंभ कर देती है। जहां एक ओर यह व्यक्ति के स्वास्थ्य को ठीक करती है वहीं दूसरी ओर ग्रहों से संबंधित रत्न ग्रहों से संबंधित कार्यों को प्रभावित करती हैं।

आस्ट्रल ऊर्जा से भरपूर ये रत्न जब धारण किए जाते हैं तो यह अपना चमत्कार दिखाते हैं। व्यक्ति के जीवन को पलट कर रख देते हैं। राजा को रंक व रंक को राजा बना देते हैं। अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए देवी-देवता व राक्षस इनको धारण करते थे।

कलयुग में भी इनका बहुत महत्व देखा गया। राजा-महाराजाओं व रानियों-महारानियों ने भी इन रत्नों को अपने आभूषणों व मुकुटों पर धारण किया। आज के युग में भी बड़ी-बड़ी हस्तियां अपनी हैसियत के अनुसार इनको धारण करते हैं।

यदि ये माफिक न आए तो जीवन नष्ट-भ्रष्ट कर देते हैं। आज भी लंदन के संग्रहालय में एक ऐसा हीरा व नीलम रखा है जिसने कई हस्तियों को बर्बाद कर दिया। जिसने भी उस हीरे या नीलम को पहना बस उसकी बर्बादी शुरू हो गई और उसने उसकी मौत तक उसका पीछा नहीं छोड़ा।

वर्ष 1857 में कर्नल फ्रान्सेस जब भारत वर्ष में आजादी की छिड़ी जंग को दबाने कानपुर पहुंचा तो एक मंदिर में मूर्तियों पर जड़े जेवरातों के साथ उसको एक नीलम जड़ी अंगूठी भी प्राप्त हुई। जिस दिन उसने उस नीलम को प्राप्त किया उसी दिन से उसके खराब दिन शुरू हो गए थे। उसकी अपनी सेना में बड़ी शौहरत थी लेकिन वह सब खत्म हो गई, करोड़ों की सम्पत्ति भी नष्ट हो गई तो उसने वह नीलम अपने दो मित्रों को दे दिया।

मित्रों में से एक की मौत हो गई और दूसरा बर्बाद हो गया। वह नीलम फिर से लौट कर कर्नल फ्रांसेस के घर आ गए। कर्नल फ्रांसेस की मौत हो गई उसकी मौत के उपरांत उसकी वसीयत में रत्न का जिक्र आया। यह रत्न उसके दो पुत्रों को मिला। उन पुत्रों को भी बर्बादी ने घेर लिया और वे भी बर्बाद हो गए।

उस परिवार के सदस्यों ने यह नीलम लंदन के संग्रहालय में रखवा दिया। जनवरी, 2010 में वहां उसकी नुमाइश  लगी थी लोग उस नीलम के पास जाते हुए भी घबराते थे। उस नीलम के चारों ओर एक बैंगनी रंग की पट्टी अर्थात छल्ला-सा नजर आता है। केवल  नीलम ही नहीं, एक हीरा भी इसी प्रकार की प्रवृत्ति का है जिसने उसको धारण किया उसी का ही सर्वनाश हो गया।

जानिए किस रत्न का सम्बंध किस राशि और ग्रहों से है 

जिस प्रकार से सात ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि, सात रंग : बैंगनी, गाढ़ा नीला, नीला, हरा, पीला, संतरी व लाल (स्पैक्ट्रम)। संगीत के सात सुर सा, रे, गा, मा, पा, धा, न।

सात दिन : रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार (वीरवार), शुक्रवार व शनिवार और योग के सात चक्र : सहस्रधारा, अंजना, विशुद्धि, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान और मूला।

शरीर में सात ग्रंथियां पिनियल, पीट्टूरी, थायराइड, थाईमस, पैन्क्रियास, एडरिनल और गोणडस होती हैं इसी प्रकार से सात महत्वपूर्ण रत्न हैं-मणिक, मोती, मूंगा, पन्ना, पुखराज, हीरा व नीलम।

ये सातों रत्न 12 राशियों के स्वामी ग्रहों के रत्न हैं। मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल, रत्न मूंगा, वृष-तुला का स्वामी शुक्र, रत्न हीरा, मिथुन-कन्या का स्वामी बुद्ध, रत्न पन्ना, धनु-मीन का स्वामी बृहस्पति रत्न पुखराज, मकर-कुंभ का स्वामी शनि, रत्न नीलम, सिंह राशि का स्वामी सूर्य, रत्न मणिक व कर्क राशि का स्वामी चंद्र रत्न मोती है।

जैसे व्यक्ति को खून चढ़ाते समय उसका ब्लड ग्रुप मिला लिया जाता है वैसे ही रत्नों को भी राशि के अनुसार मिलान करके ही पहनना चाहिए नहीं तो यह व्यक्ति को हानि पहुंचाते हैं।

एक ओर जहां वैज्ञानिक इन रत्नों से होने वाले लाभ व हानि को नहीं मानते वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसे वैज्ञानिक भी हैं जिन्होंने इन रत्नों के रहस्य को वैज्ञानिक तौर पर उजागर कर दिया है।