आयुर्वेद के अनुसार हेपेटाइटिस बी समेत लिवर से संबंधित सभी समस्याएं स्थानदुष्टि (लिवर के खराब होने के कारण) की वजह से पैदा होती हैं। सभी प्रकार की लिवर से जुड़ी बीमारियां पित्त दोष के असंतुलित या खराब होने के कारण होती हैं। अत्यधिक पित्त के उत्पादन या पित्त के स्राव में रुकावट आने की वजह से पित्त दोष असंतुलित होने लगता है।
असंतुलित पित्त दोष अग्नि (पाचन अग्नि) को प्रभावित करता है और इसकी वजह से पाचन तथा पोषण को अवशोषित करने जैसी विभिन्न चयापचय प्रक्रियाओं में दिक्कतें आने लगती हैं। ये सभी समस्याएं हेपेटाइटिस, सिरोसिस और फैटी लिवर जैसे लिवर रोगों का रूप ले लेती हैं।
लिवर से संबंधित बीमारिया:
रूधपथ कमला (लिवर में पित्त का जमना): ये त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) के खराब होने के कारण होता है। सूखे, ठंडे, भारी और मीठे खाद्य पदार्थों के सेवन, अत्यधिक व्यायाम एवं प्राकृतिक इच्छाओं जैसे कि मल त्याग तथा पेशाब को रोकने के कारण वात और कफ खराब होने लगता है जिससे लिवर की पित्त नाडियों में रुकावट आने लगती है।
बहुपित्त कमला (हेपेटाइटिस): रक्त और मम्सा धातु के खराब होने के साथ पित्त में गड़बड़ी आने पर हेपेटाइटिस रोग होता है। गर्म, कड़वा और मसालेदार खाना खाने की वजह से हेपेटाइटिस की समस्या हो सकती है। हेपेटाइटिस के लक्षणों में नाखूनों, आंखों, त्वचा, पेशाब और मल का रंग पीला पड़ना, त्वचा का रंग फीका पड़ना, कमजोरी, बदन दर्द, बुखार और स्वाद में कमी आना शामिल है।
कुंभ कामला: अगर तुरंत इस बीमारी का इलाज न किया जाए तो ये लिवर सिरोसिस का रूप ले सकती है।
लिवर की सूजन का आयुर्वेदिक इलाज:
दीपन और पाचन:
प्रमुख चिकित्सा से पहले दीपन और पाचन कर्म किया जाता है।
इसमें चयापचय अग्नि को ठीक करने के लिए जड़ी बूटियों और औषधियों का इस्तेमाल किया जाता है जिससे भूख बढ़ती है एवं पाचन प्रक्रिया में सुधार आता है।
ये शरीर से अमा (विषाक्त पदार्थ) को भी बाहर निकालता है।
दीपन या पाचन कर्म में अग्नि (पाचन अग्नि) को उत्तेजित एवं पाचन में सुधार लाने के लिए घी दिया जाता है।
भूख बढ़ाने और पाचन में सुधार लाने के लिए शुंथि, घृत, दशमूलारिष्ट, पिप्पल्यादि घृत और चित्रकादि वटी जैसी औषधियों की सलाह दी जाती है।
स्नेहन कर्म:
स्नेहन में औषधीय तेलों से शरीर को चिकना किया जाता है। हेपेटाइटिस के इलाज में बाहरी और अंदरूनी तौर पर शरीर में चिकनाहट लाई जाती है।
अंदरूनी स्वेदन में तेल पिलाया जाता है जिसे स्नेहपान के नाम से जानते हैं।
स्नेहन और स्नेहपान से शरीर की विभिन्न नाडियों से अमा को पतला कर के पाचन मार्ग में लाया जाता है। अमा और बढ़े हुए दोष को पंचकर्म थेरेपी के वमन एवं विरेचन तथा बस्ती कर्म द्वारा पाचन मार्ग से बाहर निकाल दिया जाता है।
हेपेटाइटिस के इलाज में स्नेहपान के लिए कल्याणक घृत, महातिक्त घृत और पंचतिक्त घृत का इस्तेमाल किया जाता है।
कालमेघ:
कालमेघ लंबे समय से हो रहे बुखार को ठीक करने और अत्यधिक पित्त को साफ करने में उपयोगी है।
ये दस्त लाने और कीड़ों को खत्म करने में मदद करती है। दीपन कर्म में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
ये जड़ी बूटी प्लीहा और पाचन तंत्र के कार्य में सुधार लाती है।
कटुकि के चूर्ण को पानी, शहद या गन्ने के जूस के साथ या चिकित्सक के निर्देशानुसार ले सकते हैं।
लीवर खराब होने के लक्षण
पेट में सूजन : जब भी पेट में अत्यधिक सूजन आती है तो यह लीवर खराब होने का संकेत होता है।
मुंह से दुर्गंध आना : कभी कभी मुँह की सफाई करने के बाद भी अगर मुँह से पूरी तरह बदबू आती है तो यह भी लीवर के खराब होने का गंभीर संकेत होता है।
पाचन क्रिया खराब होना : जब कभी भी खाना खाने के बाद अगर पेट में कोई गंभीर समस्या होती है, तो यह लीवर खराब होने का संकेत होता है।
चेहरे और आंखों में पीलापन : अगर आपके चेहरे पर पीलापन दिखाई दे तो यह भी लीवर के खराब होने का संकेत होता है।
यूरिन का रंग बदलना : पेशाब का रंग भी अगर थोड़ा डार्क या हल्का होता है तो यह भी लीवर के खराब होने का गंभीर संकेत होता है।
लीवर को ठीक करने के 5 घरेलू उपाय
गाजर का जूस : लीवर की सूजन को पूरी तरह कम करने के लिए रोजाना गाजर का जूस पीएं। इसके अलावा गाजर जूस में पालक जूस मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं।
मुलेठी : इसके लिए मुलेठी को अच्छी तरह पीसकर पाउडर बना लें और इसे पानी में उबालें। जब पानी ठंडा हो जाए तो इसे छान कर पूरी तरह पी लें। इससे लीवर की सूजन और गर्मी पूरी तरह दूर होगी।
सेब का सिरका : लीवर की सूजन को पूरी तरह कम करने के लिए 1 चम्मच सेब के सिरका और 1 चम्मच शहद को 1 गिलास पानी में अच्छी तरह मिलाकर पीएं। इससे शरीर से विषैला पदार्थ पूरी तरह बाहर निकलेंगे और सूजन कम होगी।
नींबू : इसके लिए 1 गिलास पानी में 1 नींबू का रस और थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर पीने से भी बहुत अधिक फायदा होता है। दिन में दो-तीन बार इसका सेवन करने से लीवर की गर्मी पूरी तरह दूर होती है।
छाछ : 1 गिलास छाछ में काली मिर्च, हींग और भूना जीरा डालकर भोजन के साथ अवश्य पीएं। इससे लीवर की सूजन और गर्मी पूरी तरह दूर होगी।
लिवर को स्वस्थ रखने का आयुर्वेदिक उपाय :
आवश्यक सामग्री : भृंगराज, भूमि-आंवला, तुलसी पत्र, कासनी, हरड़, पुनर्नवा मूल, गिलोय, आंवला, रेवतचीनी, वायविडंग, सारपुखा मूल, पितपापड़ा सत, तालीसपत्र, चित्रक छाल, कर्चूर, नीसोथ, मुलेठी, रोहिडा छाल, मकोय, कसोंदि सत, अर्जुन छाल।
लिवर केयर चूर्ण बनाने और सेवन करने की प्रयोग विधि :
ऊपर दि गयी औषधियों को एक करके बारीक़ पीस ले। फिर कपडा छान कर ले। बस हो गया आपका लिवर केयर चूर्ण तैयार। इस चूर्ण की एक चम्मच को एक कप पानी मे डालकर हिला कर छोड़ देवे।
फिर एक घंटे बाद हिलाकर पिये इस तरह दिन मे दो बार लेने से आपकी लिवर संबन्धी बीमारियों से छुटकारा मिल जाएगा। इसके सेवन से कब्ज़ हेपटाइटिस बी भी ठीक होती है।
नोट : ऊपर लिखी सभी जड़ी-बूटियाँ आप अपने नजदीकी जड़ी-बूटि की दुकान से खरीद सकते है। यदि आपको यह जड़ी-बूटि उपलब्ध नही हो पाये तो इन का बना बनाया लिवर केयर चूर्ण हम आपको उपलब्ध करवा सकते है। संपर्क सूत्र – Allayurvedic@gmail.com