सदाबहार पुष्प को सदाफूली, नयनतारा नामों से भी जाना जाता है। सदाबहार की कुल आठ जातियाँ हैं। इनमें से सात मेडागास्कर में तथा आठवीं भारतीय उपमहाद्वीप में पायी जाती है। सदाबहार का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस है। भारत में पायी जाने वाली प्रजाति का वैज्ञानिक नाम केथारेन्थस रोजस है। यह फूल न केवल सुन्दर और आकर्षक है, बल्कि औषधीय गुणों से भी भरपूर माना गया है। इसे कई देशों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। सदाबहार बारहों महीने खिलने वाला फूल है। कठिन शीत के कुछ दिनों को छोड़कर यह पूरे वर्ष खूब खिलता है। सदाबहार को भारत की किसी भी उष्ण जगह की शोभा बढ़ाते हुए सालों साल बारह महीने देखे जा सकते हैं। फूल तोड़कर रख देने पर भी पूरा दिन ताजा रहता है। मंदिरों में पूजा पर चढ़ाए जाने में इसका उपयोग खूब होता है। यह फूल सुंदर तो है ही आसानी से हर मौसम में उगता है, हर रंग में खिलता है और इसके गुणों का भी कोई जवाब नहीं, शायद यही सब देखकर नेशनल गार्डेन ब्यूरो ने सन् 2002 को इयर आफ़ विंका के लिए चुना। विंका या विंकारोज़ा सदाबहार का अंग्रेज़ी नाम है।सदाबहार का रंग :
- पाँच पंखुड़ियों वाला सदाबहार पुष्प श्वेत, गुलाबी, फालसाई, जामुनी आदि रंगों में खिलता है।
सदाबहार का पौधा :
- सदाबहार के अंडाकार पत्ते डालियों पर एक-दूसरे के विपरीत लगते हैं और झाड़ी की बढ़वार इतनी साफ़ सुथरी और सलीकेदार होती है कि झाड़ियों की काँट छाँट की कभी ज़रूरत नहीं पड़ती। सदाबहार छोटा झाड़ीनुमा पौधा है। इसके गोल पत्ते थोड़ी लम्बाई लिए अंडाकार व अत्यंत चमकदार व चिकने होते हैं। एक बार पौधा जमने पर उसके आसपास अन्य पौधे अपने आप उगते जाते हैं। पत्ते व फल की सतह थोड़ी मोटी होती है। इसके चिकने मोटे पत्तों के कारण ही पानी का वाष्पीकरण कम होता है और पानी की आवश्यकता बहुत कम होने से यह बड़े मजे में कहीं पर भी चलता खिलता व फैलता है।
- विकां का वर्णन ब्रिटेन औषधीय शास्त्र में सातवीं शताब्दी में मिलता है। कल्पचर नामक ब्रिटिश औषधी विशेषज्ञ ने मुंह व नाक से रक्तस्नव होने पर इसके प्रयोग की सलाह दी है। लॉर्ड बेकन ने भी अंगों की जकड़न में इसका प्रयोग बताया। वैसे स्कर्वी, अतिसार, गले में दर्द, टांसिल्स में सूजन, रक्तस्नव आदि।
- रोगों में इसके प्रयोग के विषय में लिखा है। भारत में प्राकृतिक चिकित्सक मधुमेह रोगियों को इसके श्वेत फूल का प्रयोग सुबह खाली पेट करने की सलाह देते हैं। फूल अपनी विशेषता व सुंदरता के लिए लोकप्रिय है तो औषधीय महत्त्व को लेकर इस पर शोध होना चाहिए अन्यथा सदाबहार सदाबहार ही। कठिन शीत के कुछ दिनों को छोड़कर यह पूरे वर्ष खूब खिलता है। यूरोपीय साहित्य में इसका वर्णन चॉसर ही नहीं, सातवीं सदी की औषधीय पुस्तकों में भी मिलता है। फ्रांस में इसे वजिर्न फ्लावर व इटली में फ्लावर ऑफ डेथ कहा जाता है। इटली में मृत बच्चों के कफन पर इसकी मालाएं रखी जाती थीं। इसका एक नाम सार्कर्स वायलेट भी कहा गया, क्योंकि जादू-टोने में विश्वास रखनेवाले इससे तरह-तरह के विष व रसायन बनाते थे। अमेरिका में इसे रनिंग मर्टिल व कॉमन पेरीविन्कल भी कहते हैं। ब्रिटेन के प्रसिद्ध हॉर्टीकल्चरिस्ट ई.ए. बाउल्स ने ला ग्रेव नामक स्थान पर रेलवे स्टेशन के पास एक अत्यंत आकर्षक पुष्प देखा तो छाते के हैंडिल से तोड़ लिया व ब्रिटेन में लाकर लगा दिया। उनके द्वारा लाई यही आकर्षक किस्म ला-ग्रेव व बाउल्स नाम से प्रसिद्ध हुई।
- यह पौधा अपोनसाईनसियाई परिवार का है और कनेर, प्लूमेरिया फ्रैंगीपानी, सप्तपर्णीय करौंदा, ट्रेक्लोस्पमर्म, ब्यूमेन्शया ग्रैन्डीफ्लोरा, एलामंडाकथार्टिका जैसे अत्यंत भव्य लोकप्रिय झाड़ियां, वृक्ष व लताएं इसी परिवार से संबंधित हैं। इस परिवार के पौधों की विशेषता इसे तोड़ने पर उसमें से बहने वाला श्वेत चिपचिपा गाढ़ा लेसदार तरल पदार्थ है। द्वितीय महायुद्ध में रबड़ के जंगल जब शत्रु देशों के हाथ में पहुंच गए तो इनसे ही नकली रबड़ मित्रों ने बनायी थी।
- सदाबहार छोटा झाड़ीनुमा पौधा है। इसके गोल पत्ते थोड़ी लम्बाई लिए अंडाकार व अत्यंत चमकदार व चिकने होते हैं। एक बार पौधा जमने पर उसके आसपास अन्य पौधे अपने आप उगते जाते हैं। पांच पंखुड़ियों वाला पुष्प श्वेत, गुलाबी, फालसाई, जामुनी आदि रंगों में खिलता है। पत्ते व फल की सतह थोड़ी मोटी होती है। इसके चिकने मोटे पत्तों के कारण ही पानी का वाष्पीकरण कम होता है और पानी की आवश्यकता बहुत कम होने से यह बड़े मजे में कहीं पर भी चलता खिलता व फैलता है। इसके इन्हीं गुण के कारण पुष्प प्रेमियों ने इसका नाम नयन तारा या सदाबहार रखा। फूल तोड़कर रख देने पर भी पूरा दिन ताजा रहता है। मंदिरों में पूजा पर चढ़ाए जाने में इसका उपयोग खूब होता है।
➡ सदाबहार के घरेलू उपचार :
- सदाबहार की तीन – चार कोमल पत्तियाँ चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग से राहत मिलती है।
- आधे कप गरम पानी में सदाबहार के तीन ताज़े गुलाबी फूल 05 मिनिट तक भिगोकर रखें। उसके बाद फूल निकाल दें और यह पानी सुबह ख़ाली पेट पियें। यह प्रयोग 08 से 10 दिन तक करें। अपनी शुगर की जाँच कराएँ यदि कम आती है तो एक सप्ताह बाद यह प्रयोग पुनः दोहराएँ।
- सदाबहार के पौधे के चार पत्तों को साफ़ धोकर सुबह खाली पेट चबाएं और ऊपर से दो घूंट पानी पी लें। इससे मधुमेह मिटता है। यह प्रयोग कम से कम तीन महीने तक करना चाहिए।
- सदाबहार की तीन – चार कोमल पत्तियाँ चबाकर रस चूसने से मधुमेह रोग से राहत मिलती है।
- पत्तियों और फूलों को कुचलकर बवासीर होने पर इसे लगाने से तेजी से आराम मिलता है। आदिवासी जानकारों के अनुसार, ऐसा प्रतिदिन रात को सोने से पहले किया जाना ठीक होता है।
- इसकी पत्तियों के रस को ततैया या मधुमक्खी के डंक मारने पर लगाने से बहुत जल्दी आराम मिलता है। इसी रस को घाव पर लगाने से घाव भी जल्दी सूखने लगते हैं। त्वचा पर खुजली, लाल निशान या किसी तरह की एलर्जी होने पर पत्तियों के रस को लगाने पर आराम मिलता है।
- त्वचा पर घाव या फोड़े-फुंसी हो जाने पर आदिवासी इसकी पत्तियों का रस दूध में मिला कर लगाते हैं। इनका मानना है कि ऐसा करने से घाव पक जाता है और जल्द ही मवाद बाहर निकल आता है।
- सदाबहार के फूलों और पत्तियों के रस को मुहांसों पर लगाने से कुछ ही दिनों में इनसे निजात मिल जाती है। पत्तियों और फूलों को पानी की थोड़ी सी मात्रा में कुचल कर लेप को मुहांसों पर दिन में कम से कम दो बार लगाने से जल्दी आराम मिलता है।
- डांग-गुजरात के आदिवासी लाल और गुलाबी फूलों का उपयोग डायबिटीज़ में लाभकारी मानते हैं। आधुनिक विज्ञान भी इन फूलों के सेवन के बाद रक्त में ग्लुकोज़ की मात्रा में कमी को प्रमाणित कर चुका है। दो फूल को एक कप उबले पानी या बिना शक्कर की उबली चाय में डालकर ढंककर रख दें और फिर इसे ठंडा होने पर रोगी को पिलाएं। ऐसा माना जाता है कि इसका लगातार सेवन मधुमेह में फायदा पहुंचाता है।
- अब वैज्ञानिक सदाबहार के फूलों का उपयोग कर कैंसर जैसे भयावह रोगों के लिए भी औषधियां बनाने पर शोध कर रहे हैं। डांग जिले में भी आदिवासी इस पौधे के विभिन्न हिस्सों को ल्युकेमिया जैसे रोगों के निदान के लिए उपयोग में लाते हैं। आधुनिक शोधों के अनुसार, इस पौधे की पत्तियों में पाए जाने वाले प्रमुख अल्कलायड रसायनों जैसे विनब्लास्टिन और विनक्रिस्टिन को ल्युकेमिया के उपचार के लिए उपयोगी माना गया है।
- इसकी पत्तियों को तोड़े जाने पर जो दूध निकलता है, उसे घाव पर लगाने से किसी तरह का संक्रमण नहीं होता और घाव जल्दी सूख भी जाता है।
- पत्तियों को तोड़ने पर निकलने वाले दूध को खाज-खुजली में लगाने पर जल्द आराम मिलने लगता है। दूध को पौधे से एकत्र कर प्रभावित अंग पर दिन में कम से कम दो बार लेप किया जाना चाहिए।
➡ सदाबहार अब संजीवनी बूटी कैसे बन गया है?
- शोधों से इसके एकाधिक गुणों का पता चला है। जिसमे सबसे चमत्कृत करने वाली बात है कि यह बारूद जैसे पदार्थ को भी निष्क्रिय करने की क्षमता रखता है। इसी के चलते आज विस्फोटक क्षेत्रों और भंडारण वाली हजारों एकड़ भूमि को यह निरापद बना रहा है। अपने “केंद्रीय औषधीय एवं सुगंध पौधा संस्थान” द्वारा की गयी खोजों से पता चला है कि इसमें पाया जाने वाला क्षार रक्त कैंसर के उपचार में बहुत उपयोगी होता है। इसके साथ ही यह रक्तचाप को कम करने और मधुमेह जैसी बीमारी को काबू में करने में बहुत सहायक होता है। शोधों के कारण जैसे-जैसे इसकी खूबियों का पता चलता जाता है वैसे-वैसे इस की मांग भी देश-विदेश में बढती जा रही है. इसीलिए अब इसकी खेती भी की जाने लगी है। यह अनोखा पौधा अब संजीवनी बूटी बन गया है।
- इसे लगाना या उगाना बहुत आसान है, इसके डंठल को कहीं भी रोप दिया जाए यह अपनी जिन्दगी शुरू कर देता है। जानकारों का कहना है कि सदाबहार और नीम के 7-7 पत्तों का खाली पेट सेवन करना मधुमेह में काफी उपयोगी होता है।