★ क्या आप जानते है हाथ की कलाई पर मौलि धागा बाँधने का वैज्ञानिक रहस्य? ★
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- मौलि का शाब्दिक अर्थ है सबसे ऊपर। हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानि पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन आदि के पूर्व ब्राह्मण द्वारा यजमान के दाएं हाथ में मौली(एक विशेष धार्मिक धागा) बांधा जाता है। शास्त्रों का ऐसा मत है कि मौलि बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। विज्ञान की दृष्टि से अगर देखा जाए तो मौलि बांधना उत्तम स्वास्थ्य भी प्रदान करती है तो आइए जानें मौलि बांधने के वैज्ञानिक कारणों को
- त्रिनेत्रधारी भगवान शिव के मस्तक पर चन्द्रमा विराजमान हैं जिसे चन्द्रमौलि भी कहा जाता है। शास्त्रों का मत है कि हाथ में मौलि बांधने से त्रिदेवों और तीनों महादेवियों की कृपा प्राप्त होती है। www.allayurvedic.org
- महालक्ष्मी की कृपा से धन-सम्पत्ति, महासरस्वती की कृपा से विद्या-बुद्धि और महाकाली की कृपा से शक्ति प्राप्त होती है। शास्त्रों के अनुसार कलावा यानी मौलि बांधने की परंपरा की शुरुआत देवी लक्ष्मी और राजा बलि ने की थी।
- कलावा को रक्षा सूत्र भी कहा जाता है। माना जाता है कि कलाई पर इसे बांधने से जीवन पर आने वाले संकट से रक्षा होती है। इसका कारण यह है कि कलावा बांधने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश त्रिदेवों की कृपा प्राप्त होती है। सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती की अनुकूलता का भी लाभ मिलता है।
- शरीर विज्ञान के अनुसार शरीर के कई प्रमुख अंगों तक पहुंचने वाली नसें कलाई से होकर गुजरती हैं। कलाई पर कलावा बांधने से इन नसों की क्रिया नियंत्रित रहती है। इससे त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ का सामंजस्य बना रहता है।
- माना जाता है कि कलावा बांधने से रक्तचाप, हृदय रोग, मधुमेह और लकवा जैसे गंभीर रोगों से काफी हद तक बचाव होता है।
- शास्त्रों के अनुसार पुरुषों एवं अविवाहित कन्याओं को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए और कलावा बंधवाते समय जिस हाथ में कलावा बंधवा रहे हों उसकी मुट्ठी बंधी होनी चाहिए और दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। www.allayurvedic.org
- पर्व त्यौहार के अलावा किसी अन्य दिन कलावा बांधने के लिए मंगलवार और शनिवार का दिन शुभ माना जाता है।
- शरीर विज्ञान के अनुसार त्रिदोष का शरीर पर आक्रमण नहीं होता क्योंकि एक्यूप्रेशर चिकित्सा के अनुसार रक्त के संचार में शीतलता नहीं आती जिस कारण वात, पित्त और कफ होने का भय नहीं रहता।
- शरीर विज्ञान के अनुसार त्रिदोष का शरीर पर आक्रमण नहीं होता क्योंकि एक्यूप्रेशर चिकित्सा के अनुसार रक्त के संचार में शीतलता नहीं आती जिस कारण वात, पित्त और कफ होने का भय नहीं रहता।